बालोद में फिर चूल्हा फूंकने को मजबूर महिलाएं:घरेलू गैस सिलेंडर की कीमतों ने बढ़ाई परेशानी; जंगल से लकड़ियां लाकर खाना बनाने को मजबूर

बालोद3 महीने पहले
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चूल्हा जलाने के लिए लकड़ियां लेती महिला।

रसोई गैस सिलेंडर की बढ़ती कीमतों ने बालोद जिले की महिलाओं को फिर से चूल्हा फूंकने के लिए मजबूर कर दिया है। महिलाओं को स्वच्छ ईंधन और धुएं से मुक्ति दिलाने के लिए केंद्र सरकार की उज्ज्वला योजना बढ़ते रसोई गैस सिलेंडरों की कीमतों के आगे दम तोड़ती नजर आ रही है। सुबह 4 बजे लोग लकड़ी लेने जंगलों में पहुंच जाते हैं और सुबह 7 बजे से 8 बजे तक उनकी वापसी होती है। उन्हें जंगलों से लकड़ी लाने के लिए भी काफी मेहनत करनी पड़ती है।

घरेलू गैस सिलेंडर की कीमत इतनी बढ़ गई है कि इसमें दोबारा गैस भरवाना लोगों के लिए मुश्किल हो रहा है। उन्होंने कहा कि अगर वे सिलेंडर खरीदने में ही पैसा खर्च कर देंगे, तो फिर घर का बजट कैसे चला सकेंगे। घरेलू सिलेंडर के दाम वर्तमान में 1,145 रुपए हैं। वहीं जितना बड़ा परिवार ग्रामीण इलाकों में होता है, उसमें महीनेभर से पहले ही सिलेंडर खाली भी हो जाता है।

सिलेंडर की बढ़ती कीमतों से परेशानी।
सिलेंडर की बढ़ती कीमतों से परेशानी।

जंगल की लकड़ी पर निर्भर

बालोद से सटे जंगलों में जाने के लिए आसपास की महिलाओं को सीमित समय दिया जाता है। वन विभाग के माध्यम से एक महीने में 3 दिन वे जंगलों में जा सकती हैं। इस दौरान महिलाएं समूहों में जंगल जाती हैं और सूखी लकड़ियां लेकर आती हैं और इसी से ही उनके घर का चूल्हा जल पाता है। बाकी समय जंगलों में लकड़ी लाने के लिए लोगों का प्रवेश वर्जित रहता है।

फिर से लकड़ियां लाने को मजबूर लोग।
फिर से लकड़ियां लाने को मजबूर लोग।

लकड़ी के लिए जद्दोजहद

महिलाएं तड़के 3 से 4 बजे तक जंगलों में प्रवेश करती हैं और सुबह 7 बजे से 8 बजे के बीच जंगलों से वापस लौटती हैं। सिर पर लकड़ी का बोझा लिए वे जंगल से लंबी दूरी तय कर अपने घर पैदल लौटती हैं। उन्होंने बताया कि सूखी लकड़ियों के लिए जंगल के भीतर अंदर तक जाना पड़ता है, जहां जंगली जानवरों का खतरा बना रहता है।

जंगल से लकड़ी लाती हुई ग्रामीण महिला।
जंगल से लकड़ी लाती हुई ग्रामीण महिला।

जंगल का मिल जाता है लाभ

महिला संगीता बाई ने बताया कि हम सब ग्रामीण महिलाएं हैं। हमारे पास खेत-खलिहान नहीं हैं। यह तो अच्छा है कि बालोद जिले का एक तिहाई हिस्सा जंगलों से घिरा हुआ है, तो हमें जंगलों से लकड़ियां मिल पाती हैं और ऐसे क्षेत्र जहां 10 किलोमीटर तक जंगल नहीं है, वहां खेतों से ही लकड़ियां लानी पड़ती हैं या फिर छोटी-छोटी लकड़ियों से ही चूल्हा जलाना पड़ता है। जहां लकड़ी नहीं मिल पाती, वहां गैस सिलेंडर का उपयोग बढ़े हुए दामों पर ही सही, लेकिन करना पड़ता है।

जंगल में जाने की तैयारी करती महिलाएं।
जंगल में जाने की तैयारी करती महिलाएं।

रहवासी इलाकों में वन्यजीवों को लेकर वन विभाग का अलर्ट

वन विभाग द्वारा लगातार अलर्ट किया जाता है कि जंगलों में ज्यादा समय तक नहीं रहें, क्योंकि यहां पर जंगली जानवरों के हमले का खतरा बना रहता है। डौंडी क्षेत्र के आमाडुला में कुछ महीने पहले एक युवक जो जंगल में गया हुआ था, उस पर जंगली भालू ने हमला कर दिया था। इसके साथ ही ग्राम सिवनी की महिला रूपा बाई (50 वर्ष) पर भी भालू ने हमला किया था। मुल्ले निवासी सरिता सेवता (55 वर्ष) पर जंगली सुअर ने हमला किया था।