गोंचा महापर्व की तैयारियों में 360 घर आरण्यक ब्राह्मण समाज जुटा हुआ है। वहीं अभी भगवान जगन्नाथ का औषधियुक्त काढ़ा अर्पित कर उनका उपचार चल रहा है। वर्तमान में चल रहे अनसर काल में जहां भगवान जगन्नाथ स्वास्थ्य लाभ ले रहे हैं, ऐसे में उनका दर्शन करना वर्जित है। 29 जून तक चलने वाले अनसर काल में भगवान का अभिषेक करने के दौरान वे बीमार पड़ गए, जिसके चलते अब उनका उपचार जारी है।
30 जून को नेत्रोत्सव के साथ वे स्वस्थ्य होकर भक्तों के बीच दर्शन के लिए पहुंच जाएंगे। इसके बाद 1 जुलाई को रथयात्रा होगी और गोंचा पर्व मनाया जाएगा। रथ पर सवार होकर वे श्री मंदिर से जनकपुरी अपनी मौसी के घर पहुंचेंगे। इसके बाद 9 जुलाई को वे वापस श्री मंदिर लौटेंगे, जहां भक्त बाहुड़ा गोंचा मनाएंगे।
613 सालों से चली आ रही परंपरा
बताया जाता है कि गोंचा महापर्व की परंपरा 613 सालों से लगातार चली आ रही है। हर साल भगवान जगन्नाथ भ्राता बलभद्र व बहन सुभद्रा के साथ भक्तों को दर्शन देने के लिए रथ में सवार होकर शहर की परिक्रमा करते हैं। इसके बाद वे अपने मौसी के घर चले जाते हैं। गोंचा रथयात्रा के दौरान लोग भगवान को बांस की बनी तुपकियों में पेंग फल भरकर चलाते और उन्हें सलामी देते हैं।
जड़ी-बूटियों से बना काढ़ा दिया जा रहा
360 घर आरण्यक ब्राह्मण समाज के नरेंद्र पाणिग्रही ने बताया कि अनसर काल के दौरान भगवान को औषधियुक्त काढ़ा दिया जाता है, जिसमें काली मिर्च, सौंठ, मिश्री और जड़ी-बूटियों को शामिल किया जाता है। भगवान को अनसर काल में इसी काढ़े का भोग लगाकर इसका प्रसाद भक्तों को दिया जाता है। उन्होंने बताया कि अनसर काल में भगवान जगन्नाथ के दर्शन वर्जित रहते हैं। नेत्रोत्सव के बाद जब भगवान अनसर काल से बाहर आएंगे, उनका श्रृंगार किया जाएगा, जिसके बाद वे भक्तों को दर्शन देंगे।
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