'राजभवन में कानून की उड़ाई जा रही धज्जियां':आबकारी मंत्री कवासी लखमा बोले- राज्यपाल सच्ची आदिवासी हैं, तो आरक्षण बिल पर दस्तखत करें

जगदलपुर3 महीने पहले
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हमारे नेता मुख्यमंत्री भूपेश बघेल न कभी थके हैं, न कभी ठगे हैं। सरकार बनते ही 2 घंटे के अंदर किसानों का कर्ज माफ करने वाले देश के पहले मुख्यमंत्री हैं। छत्तीसगढ़ के राजभवन में कानून की धज्जियां उड़ाई जा रही हैं। अगर राज्यपाल सच्ची आदिवासी हैं, तो वे आरक्षण के बिल पर दस्तखत करें। दरअसल, ये बातें छत्तीसगढ़ के आबकारी मंत्री कवासी लखमा ने कोंटा में मीडिया से कही है।

शनिवार को कवासी लखमा अपने विधानसभा क्षेत्र कोंटा के दौरे पर थे। यहां गौरव दिवस पर आयोजित एक कार्यक्रम में शामिल होने पहुंचे थे। इस दौरान उन्होंने मीडिया से भी बातचीत की। कवासी लखमा ने कहा कि, आरक्षण की यह लड़ाई बहुत आगे तक जाएगी। यह आदिवासी, पिछड़ा वर्ग का प्रदेश है। मैं राज्यपाल का बहुत सम्मान करता हूं। उनके पद की एक गरिमा है और वे उस पद की गरिमा को सड़क पर मत लाएं।

उन्होंने कहा कि, राज्यपाल ने बड़ी-बड़ी बातें की थी कि विधानसभा में जैसे ही आरक्षण बिल पास होगा मैं दस्तखत कर दूंगी। लेकिन, कई दिन गुजर गए उन्होंने दस्तखत नहीं किए। भाजपा ने राज्यपाल को गुमराह कर दिया। आज वे कानून की धज्जियां उड़ा रही हैं। यदि आरक्षण बिल पास नहीं होता है तो हम सड़क से लेकर सदन तक की लड़ाई लड़ेंगे।

कवासी लखमा ने कहा कि, मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के कार्यकाल को 4 साल पूरे हो गए हैं। सरकार ने भूमिहीन किसानों को पट्टा दिया। पढ़े लिखे युवाओं की पुलिस में भर्ती हुई है। केंद्र सरकार रोजगार नहीं दे रही। लेकिन हमारी सरकार ने युवाओं को रोजगार दिया है। उन्होंने भाजपा पर निशाना साधते हुए कहा कि, BJP आदिवासी और पिछड़ा वर्ग विरोधी पार्टी है। इनका चेहरा अब उजागर हुआ है।

कोरोना के समय सरकार ने किया बेहतर काम

आबकारी मंत्री ने कहा कि, कोरोना काल के समय हमारी सरकार ने बेहतर काम किए हैं। मुख्यमंत्री भूपेश बघेल बंगला में बैठक अधिकारियों को कंट्रोल किए। दिल्ली मुंबई गुजरात कर्नाटक उत्तर प्रदेश समेत अन्य जगहों पर भी छत्तीसगढ़ से ऑक्सीजन गया है। छत्तीसगढ़ की सरकार ने प्रदेश की जनता के साथ देश की जनता का भी ख्याल रखा है।

आरक्षण पर सीएम बघेल ने कही थी बड़ी बात.. नीचे पढ़ें

'BJP की कठपुतली बन गए राजभवन के अफसर'

राज्यपाल ने आरक्षण के विधानसभा से पारित प्रस्ताव पर हस्ताक्षर नहीं किए हैं। इस पर अब मुख्यमंत्री भूपेश बघेल की नाराजगी खुलकर सामने आई थी। उन्होंने मीडिया से चर्चा में कहा कि राज्यपाल की ओर से पहले कहा गया था कि वो फौरन हस्ताक्षर करेंगी। अब स्टैंड बदला जा रहा है। मुख्यमंत्री ने इस बात पर भी आपत्ति दर्ज कराई है कि विधानसभा से पारित किए जाने के बाद भी प्रस्ताव पर सवाल खड़े किए जा रहे हैं।

तीन दिनों तक मुख्यमंत्री महासमुंद जिले में भेंट मुलाकात कार्यक्रम के बाद रायपुर लौटे। उन्होंने एयरपोर्ट पर आरक्षण मसले पर राजभवन की ओर से विभागों से किए जा रहे सवालों पर कहा- उन्हें वो अधिकार ही नहीं। राजभवन के विधिक सलाहकार हैं, गलत सलाह दे रहे हैं । पहले राज्यपाल ने कहा था कि जैसे ही विधानसभा से प्रस्ताव आएगा मैं हस्ताक्षर करूंगी। आरक्षण किसी एक वर्ग के लिए नहीं होता है। सारे नियम होते हैं क्या राजभवन को पता नहीं, विधानसभा से बड़ा है क्या कोई विभाग ?

CM ने तीखे अंदाज में कहा- विधानसभा से पारित होने के बाद किसी विभाग से जानकारी नहीं लनी जाती। भाजपा के लोगों के इशारों पर राजभवन का खेल हो रहा है। राज्यपाल की ओर से स्टैंड बदलता जा रहा है। फिर कहती हैं कि केवल आदिवासियों के लिए बोली थी, आरक्षण सिर्फ उनका नहीं सभी वर्गों का है। आरक्षण की पूरी प्रक्रिया होती है।

विवाद क्यों बढ़ा

2 दिसंबर को मंत्रियों ने विधानसभा में पास किया गया आरक्षण का प्रस्ताव राज्यपाल को दिया। उनके हस्ताक्षर के बाद प्रदेश में नई आरक्षण व्यवस्था लागू होगी। मगर अब राजभवन ने राज्य सरकार से वो आधार पूछा है, जिसके अनुसार 76 प्रतिशत आरक्षण व्यवस्था बनाई गई। बता दें कि 2 दिसंबर को विशेष सत्र में आरक्षण विधेयक पारित होने के बाद से राज्यपाल विधि विशेषज्ञों से इस संबंध में चर्चा कर रहीं थी। उन्होंने हस्ताक्षर करने से पहले राज्य सरकार से 10 बिंदुओं पर जानकारी मांगी है। राजभवन सचिवालय की मानें तो इन 10 सवालों के जवाब आने के बाद ही आरक्षण विधेयक पर आगे कोई कार्रवाई हो सकेगी।

साइन से पहले राज्यपाल के सरकार से 10 सवाल

  • संशोधित विधेयक में क्रमांक 18-19 पारित करने के पूर्व अनुसूचित जनजाति और अनुसूचित जाति के संबंध में मात्रात्मक विवरण (डाटा) संग्रहित किया गया था?
  • सुप्रीम कोर्ट में इंद्रा साहनी मामले के अनुसार 50 प्रतिशत से अधिक विशेष एवं बाध्यकारी परिस्थतियों में ही आरक्षण दिया जा सकता है। अत: उक्त विशेष बाध्यकारी परिस्थिति का विवरण क्या है?
  • राज्य शासन ने हाईकोर्ट में 19 सितंबर 2022 को 8 सारणी में विवरण भेजा था, जिस पर कोर्ट ने कहा था कि ऐसा कोई विशेष प्रकरण निर्मित नहीं है, कि 50 प्रतिशत से अधिक आरक्षण दिया जाए। इस निर्णय के बाद ऐसी क्या विशेष परिस्थिति उत्पन्न हो गई, जिसके कारण आरक्षण की सीमा बढ़ाई गई?
  • सुप्रीम कोर्ट में इंद्रा साहनी के मामले में कहा गया था कि एससी-एसटी सामाजिक, आर्थिक और शैक्षणिक रूप से पिछड़े हुए नागरिकों में आते हैं। इस संबंध में राज्य के एससी-एसटी व्यक्ति किस प्रकार पिछड़े हुए हैं?
  • मंत्री परिषद में महाराष्ट्र, तमिलनाडु और कर्नाटक राज्य के आरक्षण के प्रतिशत का उल्लेख है। इन राज्यों में आरक्षण 50 प्रतिशत से अधिक किए जाने से पहले आयोग का गठन किया गया था। छत्तीसगढ़ में इसके लिए कौन सी कमेटी गठित की गई?
  • सामान्य प्रशासन विभाग ने क्वांटिफाइबल डाटा आयोग के गठन का उल्लेख किया है, जिसकी रिपोर्ट शासन के पास है। यह रिपोर्ट राजभवन में प्रस्तुत क्यों नहीं की गई?
  • सामान्य प्रशासन विभाग ने विभागीय प्रस्ताव अर्थात प्रस्तावित संशोधन के संबंध में शासन के विधि एवं विधायी कार्य विभाग का अभिमत अपेक्षित होना लिखा है। छत्तीसगढ़ लोक सेवा अधिनियम में प्रस्तावित संशोधन में शासन के विधि एवं विधायी कार्य विभाग का क्या अभिमत है?
  • विधेयक में नवीन धारा स्थापित कर आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग को 4 प्रतिशत आरक्षण दिये जाने का प्रावधान किया गया है। क्या शासन को आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग के लिए संविधान के अनुच्छेद 16(6) के तहत पृथक से अधिनियम लाना चाहिए था?
  • हाईकोर्ट में राज्य शासन ने बताया है कि एससी-एसटी के व्यक्ति कम संख्या में चयनित हो रहे हैं। ऐसे में यह बताएं कि एससी-एसटी राज्य की सेवाओं में क्यों चयनित नहीं हो रहे हैं?
  • एसटी को 32, ओबीसी को 27, एससी को 13, इस प्रकार कुल 72 प्रतिशत आरक्षण का प्रावधान किया गया है। यह आरक्षण लागू करने से प्रशासन की दक्षता का ध्यान रखा गया और क्या इस संबंध में कोई सर्वेक्षण किया गया है? पूरी खबर पढ़िए
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