देश की बेटियों को सशक्त बनाने एवं उनके अधिकारों के प्रति विधिक रूप से जागरूकता बढ़ाने के उद्देश्य से सोमवार को जिला विधिक प्राधिकरण ने राष्ट्रीय बालिका दिवस मनाया है। जिला एवं सत्र न्यायाधीश राजेश श्रीवास्तव ने ऑनलाइन वीडियो कांफ्रेंसिंग के माध्यम से संबोधित किया।
न्यायाधीश ने कहा कि बालिका दिवस को मनाने का सबसे बड़ा कारण समाज में लोगों को बेटियों के प्रति जागरूक करना है। बालिकाओं के अधिकारों और शिक्षा के महत्व के साथ स्वास्थ या उनके पोषण के बारे में जानकारी दी। लड़कियों का बाल विवाह करना अपराध की श्रेणी में आता है। नियम के तहत बाल विवाह को दंडनीय अपराध माना गया है। अधिनियम के तहत दो वर्ष के कठोर कारावास या 1 लाख रुपए का जुर्माना या दोनों सजा से दंडित किया जा सकता है। बाल विवाह समाज की जड़ों तक फैली बुराइयां लैंगिक असमानता और भेदभाव का ज्वलंत उदाहरण है। देश की बेटियों की हर क्षेत्र में हिस्सेदारी है, लेकिन एक दौर ऐसा थाए जब लोग बेटियों को कोख में ही मार दिया करते हैं। बेटियों का जन्म हो भी गया तो बाल विवाह की आग में धकेल देते थे। बेटियों और बेटों में भेदभाव उनके साथ होने वाले अत्याचार के खिलाफ देश की आजादी के बाद से ही भारत सरकार प्रयासरत हो गई थी। बेटियों को देश की प्रथम पायदान पर लाने के लिए कई योजनाएं और कानून लागू किए गए। इसी उद्देश्य से राष्ट्रीय बालिका दिवस मनाए जाने की शुरुआत हुई। न्यायाधीश ने पॉक्सो कानून की जानकारी दी। बच्चों के साथ किसी तरह का गलत व्यवहार उनके जीवन को अंधेरे में धकेल सकता है। अपराधी नियम कानून को ताक पर रखकर मासूमों की जिंदगी के साथ खिलवाड़ करते हैं। बच्चों के साथ छेड़छाड़,यौन उत्पीड़न,यौन शोषण और पोर्नोग्राफी जैसे जघन्य अपराधों पर रोक लगाने के लिये राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग की शुरुआत की गई है।
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