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धान के पुआल का प्रबंधन किसी को सीखना हो तो उसे बलरामपुर जिले के कुसमी इलाके के श्रीकोट व कोराेधा इलाके में जाकर देखना चाहिए। यहां हर किसान खेत में ही एक जगह धान को एकत्रित कर धान की मिझाई करता है और खेत में ही मचान बनाकर उसके ऊपर पुआल को सुरक्षित करता है। वहीं पूरे गर्मी के मौसम में मवेशी खेत में ही रहते हैं और किसान मचान से पुआल निकालकर उन्हें खिलाते हैं जबकि प्रदेश के गाेठानों तक में इस तरह चारा का प्रबंधन देखने को नहीं मिलता है। वहीं दूसरे राज्यों के किसान खेतों में ही हार्वेस्टिंग कर पुआल को जला देते हैं जिससे खेत के महत्वपूर्ण कीट मर जाते हैं तो प्रदूषण भी होता है। दूसरी तरफ मवेशियों के खेत में रहने व इस इलाके के पहाड़ों से बरसात में खेत में बहकर आने वाला पानी खेतों को उपजाऊ बनाता है और यहां के किसान पचास फीसदी रासायनिक खाद का ही उपयोग धान की खेती में करते हैं। कोरोंधा गांव के किसान रामेश्वर ने बताया कि हमारे इलाके में गर्मी के दिनों में मवेशियों के लिए चारा की दिक्कत होती है। इसलिए पुआल को अच्छे से हम लोग रखते हैं। यहां बोरवेल नहीं हैं और भू जलस्रोत काफ़ी नीचे है। इसके कारण खेतों में सिर्फ धान की खेती करते हैं। वहीं गर्मी के दिनों में कोई फ़सल नहीं ले पाते हैं। पुआल को खेत में मचान बनाकर रखने से वह खराब नहीं होता है और धान काटने के बाद उसे दूर खलिहान में नहीं ले जाना पड़ता है इससे ढुलाई का खर्च बचता है। किसान सागर उरांव का कहना है कि खेत में पहाड़ों का पानी आने और गोबर के खेत में सड़ने से हम लोगों को नाइट्रोजन, पोटास, फ़ास्फोरस, जिंक बहुत कम डालना पड़ता है। दस साल पहले तो कोई भी रासायनिक खाद नहीं डालते थे और उपज अच्छी होती थी, लेकिन जब से हाईब्रीड बीजों का चलन शुरू हुआ है तब से हल्का खाद डाल रहे हैं, क्योंकि बिना खाद हाईब्रीड धान की किस्मों की उपज कम होती है।
जैविक खेती के लिए करेंगे प्रोत्साहित
बलरामपुर कलेक्टर श्याम धावडे कहते हैं कि वाकई में वहां के किसान जागरूक हैं और उस इलाके के किसान खेतों में रासायनिक खाद का भी उपयोग कम करते हैं क्योंकि उनके खेतों में पहाड़ का पानी व मिट्टी बहकर आता है जो खेतों काे प्राकृतिक रूप से उपजाऊ बनाता है। हम इस इलाके के किसानों काे जैविक खेती के लिए भी प्रोत्साहित करेंगे।
स्वास्थ्य के लिए लाभकारी
क़ृषि विशेषज्ञ विनायक पांडे का कहना है कि कुसमी इलाके में पहाड़ों में पेड़ों के जो सूखे पत्ते सड़ते हैं, उससे जैविक खाद प्राकृतिक रूप से बनता है और किसान मवेशियों को खेत में ही पुआल का मचान बनाकर चारा खिलाता है तो मवेशियों का गोबर खेत को प्राकृतिक रूप से उपजाऊ बनाता है। इससे जो उपज होगी उसे जैविक खेती कह सकते हैं और इससे होने वाली उपज स्वास्थ्य के लिहाज से बेहतरीन है।
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