छत्तीसगढ़ के शिमला व मिनी तिब्बत के नाम से मशहूर मैनपाट भी अब कूल नहीं रहा। अप्रैल की शुरुआत में ही यहां का तापमान 38 पार पहुंच गया है। जबकि कुछ साल पहले तक मई में भी ऐसी स्थिति नहीं बनती थी। जलवायु परिवर्तन से पूरा पठारी क्षेत्र गर्म होने लगा है।
समुद्र तल से 1085 मीटर ऊंचाई पर बसे मैनपाट में पहले लोग नौतपा में भी चादर ओढ़कर रात गुजारते थे, लेकिन अब यहां कूलर-एसी जरूरत की चीजें हो गई हैं। इस बदलाव की वजह साल-दर-साल खत्म होती हरियाली है। बॉक्साइट खदानें खुलती गईं और जंगल भी कम होते चले गए। वन अधिकार के चक्कर में जंगल कटे, जहां घने जंगल थे वहां खेती हो रही है। वहीं आग लगने से भी हरियाली खत्म हो रही है।
100 फीट पर मिलता था पानी अब 200 पर भी नहीं मिल रहा
गर्मी बढ़ने के साथ ही यहां जलस्तर भी तेजी से घट रहा है। ब्लॉक मुख्यालय नर्मदापुर में तीन साल पहले तक सौ फीट की गहराई में बारहों महीने पानी मिलता था, अब अब दो सौ फीट बोर करने पर भी हैंडपंप साथ छोड़ रहे हैं। पहले जमीन के ऊपर पानी बहता रहता था, वहां अब सूखा है। यहां छोटे-बड़े 12 से ज्यादा नदी-नाले हैं। बॉक्साइट खनन के बाद कई नालों का अस्तित्व खत्म हो गया है। घुनघुट्टा और मांड जैसी जीवनदायी नदियां भी गर्मी में साथ नहीं दे रही हैं।
तिब्बती बोले– खेती के लिए जमीन बांटना बंद करना होगा
मैनपाट में बढ़ रही गर्मी से तिब्बती शरणार्थी भी चिंतित हैं। ठंडा इलाका होने से 60 के दशक में तिब्बतियों को यहां बसाया था। तिब्बती धुनधुप टेजरिंग ने कहा कि सरकार के साथ लोगों को भी जागरूक होना होगा, तभी यहां की आबोहवा संरक्षित हो सकेगी। सरकार खुद खेती के लिए जंगलों की जमीन लोगों को बांट रही है। ऐसे में गर्मी बढ़ना स्वाभाविक है। इस पर रोक लगनी चाहिए।
ये प्रकृति से छेड़छाड़ और बेतरतीब दोहन का असर...
मौसम विज्ञानी एएम भट्ट कहते हैं कि भविष्य की परवाह किए बिना प्रकृति के बेतरतीब दोहन का असर मैनपाट की जलवायु में दिख रहा है। यहां पेड़ों का घनत्व कम होता जा रहा है। बढ़ रहे पक्के मकान, पक्की सड़क तापमान को बढ़ाने में सहायक हो रहे हैं। बॉक्साइट और अन्य खनिजों के खनन के कारण मैनपाट की भौगोलिक विशेषताओं में निरंतर विकृति आती जा रही है।
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