प्रसिद्ध रूसी लेखक लियो टॉलस्टॉय की लिखी लोकप्रिय कहानी है, ‘दो गज जमीन’। इस कहानी का सार है कि किस तरह शहरी सुख-सुविधा की बातें सुनकर एक ग्रामीण के मन में जमीन का लालच घर कर जाता है। इस हद तक कि वह अपना और परिवार का चैन-सुकून खो देता है। अधिक संपत्ति हथियाने की चाह में अपनी जान गवां बैठता है और आखिरकार उसे दो गज जमीन ही मिल पाती है। आपने देखा होगा, कुछ ऐसी ही अंधी दौड़ इन दिनों हमारे आसपास भी चल रही है। ऐसी दौड़, जिसमें जीत रसूख या पैसेवालों की ही होती है।
हाल के कुछ वर्षों में हमारे जिले में जमीन से जुड़े फसाद, विवाद, झगड़े अचानक से बढ़ चले हैं। कमजोर, छले गए लोग रोज आपको अफसरों की चौखट पर अर्जी लिए खड़े या मिन्नतें करते दिखाई दे जाएंगे। एक बड़ा वर्ग है जिसके पास न जमीन या संपत्ति है और न ही इनसे कोई सरोकार। एक वर्ग अपनी जरूरत के हिसाब से संपत्ति हासिल कर खुश है। लेकिन एक और वर्ग भी है, जिसकी नजर सिर्फ रिक्त या दूसरों की संपत्ति पर होती है।
अधिकतर लोग इसी वर्ग के लोगों से थर्राए हुए हैं। और इस काम में इस वर्ग की मदद कर रहे हैं हमारे सिस्टम में शामिल वे लोग, जिन्हें पैसे कमाने के लिए शॉर्टकट रास्ता पसंद है। अब सामान्य वर्ग के लोगों को चिंता होने लगी है कि कहीं, किसी कोने में उनकी खाली पड़ी जमीन किसी और के नाम न चढ़ जाए। यह चिंता जायज भी है, क्योंकि ऐसे सैकड़ों लोग हैं जिनकी उम्र बीत गई, लेकिन हथियाई गई जमीन वापस हासिल न कर सके।
दरअसल, जमीन तो वहीं है, सारा खेल कागजों पर जो हो रहा है। नंबर बदले, नक्शे पर आड़ी-तिरछी लकीरें खींची... और बस किसी की उम्रभर की कमाई से खरीदी गई संपत्ति किसी और के नाम चढ़ गई। न जाने कितने अफसर, कर्मचारी इस काले खेल के माहिर खिलाड़ी बने, जीते और आज भी बेदाग बनकर ऐशो-आराम की जिंदगी जी रहे हैं। हद तो तब हो जाती है जब कई अहम प्रोजेक्ट के लिए सरकारी जमीन न मिल पा रही हो और दूसरी ओर जिले में सैकड़ों एकड़ सरकारी जमीन निगल जाने के मामलों से जुड़ी फाइलें कार्रवाई के लिए दफ्तरों और राजस्व अदालतों की टेबलों पर धूल फांक रही हैं। तमाम जांच, पुष्टि, अनुशंसाओं के बाद भी कार्रवाई करने में अफसरों के हाथ कांप जाते हैं। हालिया एक ऐसा ही मामला सुर्खियों में है, जिसमें एक रिक्शा चालक को मोहरा बनाकर जेल भेज दिया गया और पर्दे के पीछे बैठे रसूखदारों को बचाने के लिए सिस्टम में शामिल चंद लोगों ने पूरी ताकत लगा रखी है। काश... दूसरों का चैन-सुकून छीनने वालों को यह समझ आता कि आखिर में हासिल आएगी सिर्फ ‘दो गज जमीन’।
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