छत्तीसगढ़ के रायपुर जिले के किसान जमीन अधिग्रहण की मुआवजा के लिए पिछले 10 साल से भटक रहे हैं। वहीं, इसके लिए उन्हें अदालती लड़ाई भी लड़ना पड़ रहा है। अब किसानों की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने NHI, बलौदाबाजार के कलेक्टर और SDM सहित अन्य पक्षकारों को नोटिस जारी कर जवाब मांगा है। केस की अगली सुनवाई 13 जनवरी को होगी।
साल 2011-12 में रायपुर-बिलासपुर नेशनल हाईवे में फोर लेन बनाने के लिए सिमगा के किसान नंदकिशोर भोसले सहित अन्य की जमीनों को NHAI ने अधिग्रहित किया था। इस दौरान कई किसानों को सड़क से लगे छोटे प्लाट का वर्ग मीटर की दर से मुआवजा दिया गया। जबकि, उनके बाजू वाले किसानों की बड़ी जमीन के लिए प्रति हेक्टेयर के हिसाब से मुआवजा राशि तय किया गया। इसके कारण छोटी जमीन वाले किसानों को 20 गुना राशि अधिक मुआवजा मिला। वहीं, बड़ी जमीन वाले किसानों को कम मुआवजा मिला।
एक समान मुआवजा देने की मांग को लेकर लगाई याचिका
मुआवजा राशि निर्धारण करने के इस नियम का विरोध करते हुए किसानों ने नए सिरे से मुआवजा राशि देने की मांग को लेकर न्यायालय में केस कर दिया। तब फिर से राशि निर्धारण करने का आदेश हुआ था। तब SDM ने कोर्ट के आदेश को मानने से इंकार कर दिया। इस पर किसानों ने हाईकोर्ट के आदेश पर जिला जज के समक्ष फिर से केस लगाया।
12 फरवरी 2021 को जिला जज ने सामने की जमीन का वर्ग मीटर और पीछे की जमीन का प्रति हेक्टेयर के हिसाब से मुआवजा राशि तय करने का आदेश दिया और मुआवजा राशि बढ़ा दी। लेकिन, इस बार NHAI ने तकनीकी आधार पर इस केस को चुनौती देते हुए हाईकोर्ट में अपील कर दी और कहा कि जिला जज को मुआवजा राशि तय करने का अधिकार नहीं है। हाईकोर्ट ने केस में पहले स्टे दे दिया और फिर बाद में जस्टिस दीपक तिवारी ने बढ़े हुए मुआवजा देने के आदेश को निरस्त कर दिया। साथ ही किसानों को आर्बिटेशन में जाने की छूट दी।
हाईकोर्ट के आदेश को सुप्रीम कोर्ट में दी है चुनौती
किसानों ने हाईकोर्ट के आदेश को सीनियर एडवोकेट प्रशांत सेन, सुदीप श्रीवास्तव और प्रणव सचदेवा के माध्यम से सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी है। उन्होंने कोर्ट को बताया कि जिला जज ने हाईकोर्ट के निर्देश पर मुआवजा निर्धारित किया था। तब NHI ने 2018 में जिला जज के आदेश और 2021 के आर्बिट्रेटर के अवॉर्ड को चुनौती नहीं थी और पूरी प्रक्रिया में हिस्सा लिया था। इसके बाद भी हाईकोर्ट ने साल 2021 के जिला जज और आर्बिट्रेटर के आदेश को निरस्त कर दिया। इससे केस फिर से 2012 की स्थिति में शून्य पर पहुंच गई है। उनकी तर्कों को सुनने के बाद सुप्रीम कोर्ट ने सभी पक्षकारों को नोटिस जारी कर जवाब मांगा है।
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