छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने माना है कि छुट्टी के लिए अकेले में मिलने की बात कहना यौन उत्पीड़न नहीं है। इसके साथ ही हाईकोर्ट ने असिस्टेंट प्रोफेसर के खिलाफ दर्ज छेड़खानी की FIR को भी रद्द कर दिया है। यह मामला बिलासपुर के डीपी विप्र कॉलेज से जुड़ा है। यहां पदस्थ असिस्टेंट प्रोफेसर मनीष तिवारी पर उनके साथ ही काम करने वाली महिला सहकर्मी ने यौन उत्पीड़न का केस दर्ज कराया था। इसे मनीष ने कोर्ट में चुनौती दी थी। हाईकोर्ट ने उस स्टेटमेंट 'मैडम, अगर आप छुट्टी चाहते हैं, तो मुझसे अकेले मिलें' को यौन उत्पीड़न का आधार नहीं माना।
मनीष ने कोर्ट में याचिका दायर की थी। इसमें उन्होंने बताया था कि उनके साथ काम करने वाली महिला कर्मी ने उनके खिलाफ यौन उत्पीड़न का झूठा केस दर्ज कराया है। याचिका में मनीष ने बताया कि महिला होने के कारण कानून का फायदा उठाने के लिए ऐसा किया गया है। याचिकाकर्ता ने बताया कि दरअसल, उन्होंने एक गवाही दी थी। लिहाजा, उन्हें फंसाने के लिए FIR दर्ज कराई गई थी। मामला कॉलेज के किसी पुराने विवाद से जुड़ा है।
FIR को झूठा मानकर निरस्त किया
याचिका में बताया गया कि महिला सहकर्मी ने छुट्टी के लिए अकेले में मिलने की बात कहकर मनीष पर केस दर्ज कराया था। इसी टिप्पणी करने के आरोपी में मनीष पर धारा 354ए के तहत प्रकरण भी दर्ज किया गया है। याचिका में कहा गया कि जबकि याचिकाकर्ता ने किसी तरह से शारीरिक संबंध बनाने या यौन शोषण उत्पीड़न करने जैसी कोई बात नहीं की है। याचिकाकर्ता के वकील के तर्कों को सुनने के बाद हाईकोर्ट ने FIR को प्रथम दृष्टि में झूठा मानकर निरस्त कर दिया है।
इस मामले में शिकायत के तथ्य को ध्यान में रखते हुए जस्टिस नरेंद्र कुमार व्यास ने कहा अगर हम देखते हैं कि शिकायत के तथ्य जिसमें शिकायतकर्ता ने कहा है कि याचिकाकर्ता ने कहा है कि "मैडम, अगर आप छुट्टी चाहते हैं, तो मुझसे अकेले मिलें" इसमें यह अनुमान नहीं लगाया जा सकता है कि उसके खिलाफ कोई यौन टिप्पणी की गई है।
एट्रोसिटी एक्ट के मामले को भी किया खारिज
याचिकाकर्ता सहायक प्राध्यापक के खिलाफ धारा 354 (ए) (iv) के साथ ही एट्रोसिटी एक्ट 1989 की धारा 3(1)(xii) के तहत भी अपराध दर्ज किया गया था। इसे भी कोर्ट ने यह कहते हुए खारिज कर दिया कि आरोपी सहायक प्राध्यापक पीड़ित महिला का यौन शोषण करने की स्थिति में नहीं है। महिला अनुसूचित जाति समुदाय से है और आरोपी दूसरे समुदाय से संबंधित है। इससे संबंधित तथ्य दिखने के लिए रिकॉर्ड में कुछ भी नहीं है। इससे यह सिद्ध नहीं होता कि अपराध याचिकाकर्ता द्वारा किया गया था।
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