छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने अपने महत्वपूर्ण फैसले में राज्य शासन के मेडिकल एजुकेशन के उस नियम को रद्द कर दिया है, जिसमें दिव्यांग स्टूडेंट्स के लिए कैटेगरी तय करते हुए ऊपरी हिस्से के अपंगता वाले बच्चों को मेडिकल एजुकेशन से वंचित कर दिया गया था। जस्टिस गौतम भादुड़ी और जस्टिस एनके चंद्रवंशी की डिवीजन बेंच ने NEET क्वालीफाई छात्रा को दिव्यांग कोटे में मेडिकल कॉलेज में एडमिशन देने का आदेश भी दिया है। दरअसल, मेडिकल एजुकेशन डिपार्टमेंट ने उनके हाथ में करंट लगने और दिव्यांगता के कारण एडमिशन देने से मना कर दिया था, जिससे परेशान होकर उन्होंने हाईकोर्ट में याचिका दायर की थी।
बसंतपुर की रहने वाली अंजली सोनकर 12वीं की परीक्षा उत्तीर्ण करने के बाद NEET की एग्जाम दी थी। इसमें उन्हें दिव्यांग कोटे से महासमुंद का मेडिकल कॉलेज आवंटित किया गया। NEET क्वालिफ़ाइड होने के बाद भी जब वह काउंसलिंग के लिए पहुंची, तब मेडिकल एजुकेशन के नियमों का हवाला देते हुए उनके ऊपरी हिस्से में अपंगता बताकर एडमिशन के लिए अयोग्य घोषित कर दिया गया। इससे परेशान होकर अंजली सोनकर ने राज्य शासन के मेडिकल एजुकेशन डिपार्टमेंट में आवेदनपत्र प्रस्तुत की। लेकिन, उनकी कोई सुनवाई नहीं हुई। तब उन्होंने अपने एडवोकेट धीरज वानखेड़े के माध्यम से हाईकोर्ट में याचिका दायर की और दिव्यांग कोटे से एडमिशन देने की मांग की।
शासन ने जवाब में कहा- नियम में है प्रावधान
हाईकोर्ट ने इस मामले की सुनवाई के दौरान राज्य शासन के मेडिकल एजुकेशन डिपार्टमेंट को नोटिस जारी कर जवाब मांगा था। इस दौरान शासन की तरफ से कोर्ट को बताया गया कि छत्तीसगढ़ चिकित्सा, दंत चिकित्सा एवं भौतिक चिकित्सा स्नातक प्रवेश नियम-2018 के नियम 5 1(ब) में प्रावधान है कि ऊपरी अंग में अपंगता होने पर मेडिकल चिकित्सा की पात्रता नहीं दी जा सकती। साथ ही यह भी बताया कि याचिकाकर्ता छात्र को राज्य शासन ने दिव्यांगता प्रमाणपत्र नहीं दिया है। इसलिए उन्हें दिव्यांग कोटे से एडमिशन नहीं दिया जा सकता।
हाईकोर्ट ने नियम को किया रद्द
याचिकाकर्ता के अधिवक्ता धीरज वानखेड़े ने बताया कि अंजली सोनकर को 2013 में बिजली करंट लगा था, जिससे उनका दाएं हाथ में विकलांगता आई। इसी आधार पर उन्हें दिव्यांगता प्रमाणपत्र दिया गया है। यह अलग बात है कि शासन के बजाए उन्हें जिला स्तर पर प्रमाणपत्र दिया गया है। लेकिन, इसका मतलब यह नहीं है कि वह दिव्यांग नहीं है।
याचिकाकर्ता की तरफ से यह भी तर्क दिया गया कि केंद्र सरकार ने दिव्यांगता प्रमाणपत्र सभी दिव्यांगों को देने का प्रावधान तय किया है। इसमें किसी तरह से ऊपरी और निचले स्तर की अपंगता का कोई उल्लेख नहीं है। ऐसे में शासन के मेडिकल एजुकेशन डिपार्टमेंट की ओर से दिव्यांग स्टूडेंट्स के लिए बनाए गए यह नियम भी अवैधानिक है। इस केस की सुनवाई करते हुए जस्टिस गौतम भादुड़ी और जस्टिस एनके चंद्रवंशी की डिवीजन बेंच ने दिव्यांगों के लिए तय किए गए नियम को ही रद्द कर दिया है। साथ ही याचिकाकर्ता छात्रा को दिव्यांग कोटे से मेडिकल कॉलेज में एडमिशन देने का आदेश दिया है।
हाईकोर्ट ने फॉर्मेसी काउंसलिंग कराने का आदेश दिया
फॉर्मेसी कॉलेजों में प्रवेश के एक मामले में छत्तीसगढ़ उच्च न्यायालय की डिविजन बेंच ने महत्वपूर्ण फैसला सुनाया है। अदालत ने तकनीकी शिक्षा विभाग को मौजूदा नियमों के आधार पर 31 दिसम्बर से पहले डी. फॉर्मा और बी. फॉर्मा के लिए काउंसलिंग पूरा कराने का आदेश दिया है। तकनीकी शिक्षा विभाग ने सात सितम्बर को काउंसिलंग के लिए अधिसूचना निकाला था। उच्च न्यायालय के एक फैसले से आरक्षण कानून रद्द होने के बाद यह काउंसलिंग टाल दी गई थी।
काउंसिलंग में हो रही देरी से प्रभावित विद्यार्थियों ने उच्च न्यायालय में एक याचिका दायर की। उनका कहना था, सर्वोच्च न्यायालय ने मेडिकल और फार्मेसी कॉलेजों में प्रवेश के लिए 31 दिसंबर तक की डेडलाइन तय की है। इस तिथि से पहले यदि काउंसलिंग शुरू नहीं हो पाई तो सत्र को शून्य घोषित करना पड़ेगा। यानी इसके बाद कॉलेजों में प्रवेश बंद हो जाएंगे और फिर इसे अगले सत्र में ही शुरू किया जा सकेगा। विभाग ने काउंसलिंग प्रक्रिया रोक दी है। ऐसे में उनका साल खराब हो जाएगा। सभी पक्षकारों को सुनने के बाद न्यायमूर्ति गौतम भादुड़ी और एन.के. चंद्रवंशी की डिविजन बेंच ने 19 दिसम्बर को यह फैसला सुना दिया। इसमें कहा गया, 31 दिसंबर से पहले हर हाल में बी.-फार्मेसी और डी.-फार्मेसी की काउंसलिंग प्रक्रिया पूरी की जाए। शासन स्तर पर यदि आरक्षण के नियमों में कोई पेंच फंसा है तो वर्तमान में जो आरक्षण सिस्टम लागू है उसी हिसाब से काउंसलिंग की जाए।पढ़ें पूरी खबर
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