छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने केंद्रीय वन सचिव, राज्य के मुख्य सचिव के साथ ही 17 जिलों के कलेक्टर को नोटिस जारी किया है। यह नोटिस चीफ जस्टिस अरुप कुमार गोस्वामी की डिवीजन बेंच ने वन अभयारण्य और राष्ट्रीय उद्यानों जैसे इलाकों से राष्ट्रपति के दत्तक पुत्र कहे जाने वाले आदिवासियों को बेदखल करने के खिलाफ जारी किया है। राज्य शासन के इस निर्णय के खिलाफ कोर्ट में दायर जनहित याचिका पर सुनवाई हुई। इस मामले में कोर्ट ने 6 सप्ताह में जवाब देने के आदेश दिए हैं।
दरअसल, राज्य के विभिन्न विभिन्न राष्ट्रीय उद्यानों व अभयारण्य क्षेत्र, जैसे अचानकमार टाइगर रिजर्व, भोरमदेव वाइल्ड लाइफ सेंचुरी,बार नवापारा वाइल्ड लाइफ सेंचुरी, उदंति और बादल खोल सेंचुरी से इन आदिवासियों को बेदखल किया जा रहा है। इसके पीछे वन्य प्राणियों के संरक्षण और जंगलों की सुरक्षा कारण बताया गया। संबंधित जिलों के कलेक्टर की अध्यक्षता में जिला स्तरीय समिति भी बना दी गई। वन क्षेत्रों को चिन्हित कर यहां रहने वाले आदिवासियों को विस्थापित करने का काम शुरू हो गया।
अखिल भारतीय जंगल मंच ने लगाई है जनहित याचिका
अखिल भारतीय जंगल मंच के संयोजक देवजीत नंदी ने अधिवक्ता रजनी सोरेन के माध्यम से हाईकोर्ट में जनहित याचिका दायर की है। इसमें कहा गया है कि समुदाय के लोगों का वनों के संरक्षण, संवर्धन व पर्यावरणीय जलवायु परिवर्तन को बचाए रखने के लिए विशेष योगदान है। केंद्र और राज्य शासन ने उन्हें वन अधिकार के लिए पात्र माना है। 2006 में (वन अधिकारों की मान्यता) अधिनियम एवं संशोधित अधिनियम 2012 की धारा 3 (1) (E) के तहत हैबिटेट राइट्स दिए हैं।
संवैधानिक अधिकारों का है हनन
याचिका में बताया गया हैं कि आदिवासी समुदाय आदिम काल से ही वनों में रहते आ रहे हैं। वनों पर ही उनकी जीविका निर्भर है। इसके साथ ही वनों के संरक्षण, जंगल, वन्यप्राणियों और विशेष संरक्षित खाद्य पदार्थों, जीवों के साथ रहवास में रहने से जंगल के ईको सिस्टम की जानकारी भी समुदाय के लोग रखते हैं। इसके बाद भी इन विशेष संरक्षित समुदाय, जिन्हें राष्ट्रपति के दत्तक पुत्र भी कहा जाता है, को वन्य प्राणियों के संरक्षण के नाम पर बेदखल कर उनके संवैधानिक अधिकारों का हनन किया जा रहा है।
इन जिलों के कलेक्टर को देना होगा जवाब
याचिका में रायपुर, बिलासपुर के साथ ही गौरेला-पेंड्रा-मरवाही, कवर्धा, कोरिया, मुंगेली, राजनांदगांव, जशपुर, कोरबा, रायगढ़, धमतरी, गरियाबंद, कांकेर, कोंडागांव, महासमुंद, बलरामपुर, सरगुजा के कलेक्टर को भी पक्षकार बनाया गया है।
देश के पहले राष्ट्रपति ने दिया था संरक्षण
आदिवासियों को दत्तक पुत्र बनाने की शुरुआत देश के पहले राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद ने की थी। बताया जाता है कि आजादी की लडाई के दौरान जब अंग्रेज अफसर डॉ. राजेंद्र प्रसाद को तलाश रहे थे तो वे बचने के लिए सरगुजा पहुंचे। वहां पंडो आदिवासियों के गांव में आकर छिपे थे। वे यहां करीब दो साल रहे और इस दौरान एक शिक्षक के रूप में वे यहां कार्य करते रहे। आजादी के बाद डॉ. प्रसाद जब राष्ट्रपति बने तो साल 1952 में छत्तीसगढ़ आए। वह उन्हीं आदिवासियों के बीच पहुंचे और उन्हें दत्तक पुत्र बनाने की घोषणा की।
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