बात बेबाक:सुस्त-भ्रष्ट सिस्टम पर रसूखदार हावी हो जाएं, तो सामने आते हैं भोंदूदास जैसे मामले…

बिलासपुर4 महीने पहलेलेखक: हर्ष पांडेय
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बिलासपुर अब भूमाफियाओं के लिए स्वर्ग बनता जा रहा है। - Dainik Bhaskar
बिलासपुर अब भूमाफियाओं के लिए स्वर्ग बनता जा रहा है।

जुलाई 2022 की बात है, जब विधानसभा में बिलासपुर जिले का एक बहुचर्चित मामला उछला था। सवाल था कि मोपका-चिल्हाटी में करोड़ों रुपए की जमीन एक गुमनाम रिक्शा चालक भोंदूदास के नाम कैसे दर्ज हुई और बिक गई? तब राजस्व मंत्री का जवाब आया कि मामले की जांच जारी है, आगे और भी बड़ी कार्रवाई होगी। इस बात को 5 महीने बीतने को हैं।

एक कार्रवाई और हुई है। यह है अमलदास नाम के व्यक्ति की गिरफ्तारी की। झोपड़ी में रहने वाला एक 65 वर्षीय वृद्ध, चल-फिर पाने में असमर्थ। चंद वर्दीधारी उसे लेकर राजस्व दफ्तर पहुंचते हैं। तहकीकात की औपचारिकता निभाते हैं और चलते बनते हैं, लेकिन सदन में उछला सवाल अब भी वहीं का वहीं रह जाता है? आखिर सैकड़ों एकड़ जमीन की गड़बड़ी कर करोड़ों रुपए डकार चुके रसूखदारों के गिरेबान तक जिम्मेदारों के हाथ क्यों नहीं पहुंच पा रहे हैं? मुख्यमंत्री ने संज्ञान लिया तो इस मामले में अब तक करीब 10 एफआईआर हो चुकी, लेकिन भोंदूदास, अमलदास जैसे चंद गरीबों की गिरफ्तारी के अलावा पुलिस के पास सफलता के नाम पर बताने के लिए कुछ भी नहीं है।

दरअसल, शुरुआती दौर में 4 एकड़ जमीन की अफरा-तफरी सामने आई, फिर अब निजी-सरकारी मिलाकर 200 एकड़ से अधिक जमीन की गड़बड़ी के संकेत मिले हैं। प्रशासन से ही नियुक्त अफसरों की टीम ने जांच की। पुलिस ने एक के बाद एक एफआईआर दर्ज की। कुछ गिरफ्तारियां भी की। कहां, किस स्तर पर, किसने और कैसे गड़बड़ी की? दस्तावेजों में कैसे काट-छांट की गई? इस मामले के तार कहां-कहां जुड़े हैं? इन सारे सवालों के जवाब जांच एजेंसी के पास है। पुलिस को ऐसी आठ फोरेंसिक रिपोर्ट मिल चुकी है, जिनमें दस्तावेजों में काट-छांट की पुष्टि होती है।

जांच कमेटी ने सरकारी दस्तावेजों में की गई गड़बड़ी के लिए रजिस्ट्री दफ्तर और कलेक्टोरेट की नकल शाखा को घटनास्थल माना था, लेकिन हैरान करने वाली बात यह है कि पुलिस-प्रशासन उन लोगों तक पहुंचकर भी नहीं पहुंचना चाहता, जो इन सारी गड़बड़ियों के लिए जिम्मेदार हैं। हद तो तब हो जाती है, जब इन कथित दोषियों को जेल भेजने के लिए उन अफसरों को प्रार्थी बनाया जाता है, जिनके कार्यकाल में ये सारी गड़बड़ियां हुईं थीं। जबकि उन्हें बराबर का भागीदार मानकर आरोपी बनाना चाहिए। दरअसल, सिस्टम में रसूखदारों की गहरी पैठ जब तक बरकरार रहेगी, इस केस से पर्दा उठ पाना मुश्किल होगा। अगर निर्दोषों को बचाना और दोषियों को सलाखों के पीछे भेजना मकसद होगा तो समय रहते इस पूरे फर्जीवाड़े की जांच किसी निष्पक्ष एजेंसी को सौंप देना ही सही निर्णय होगा। वरना आने वाले दिनों में कुछ और मोहरे पकड़कर जेल भेज दिए जाएंगे।