छत्तीसगढ़ के जांजगीर-चांपा में बोरवेल में फंसे राहुल को 106 घंटे बाद सुरक्षित बाहर निकाला गया। सेना और NDRF के जवानों ने इस सबसे बड़े और सफल रेस्क्यू ऑपरेशन कर इतिहास रच दिया है। इस दौरान हर बार एक नई मुश्किल चट्टान के रूप में सामने खड़ी थी, लेकिन उसका सीना चीर कर जवान राहुल तक पहुंचे। सेना के अफसर भी मानते हैं कि यह अब तक का सबसे मुश्किल और कठिन रेस्क्यू ऑपरेशन था। इस ऑपरेशन के रियल हीरो की तीसरी कहानी उन्हीं सेना और NDRF के जवानों की, जिसे दैनिक भास्कर के रिपोर्टर सुरेश पांडेय लेकर आए हैं..
पिछले पांच दिन से चल रहे इस रेस्क्यू ऑपरेशन का नेतृत्व सेना के कर्नल पारिक कर रहे थे। उन्होंने बताया कि पूरे देश ने देखा कि 63 फीट बोर में फंसे राहुल को बाहर निकालने के लिए कैसे इस ऑपरेशन को अंजाम दिया गया। हमें और हमारी टीम को किन मुसीबतों का सामना करना पड़ा। ऑपरेशन में सबसे अहम था, मासूम राहुल को सुरक्षित बाहर निकालना। सुरंग बनाने के लिए बड़ी-बड़ी चट्टाने थीं, जिसे काटना संभव नहीं हो रहा था। फिर भी NDRF सहित सभी एजेंसियों ने साझा प्रयास किया और इस ऑपरेशन को सफल बनाया।
जब सभी रास्ते बंद हो जाते हैं, तब उतरती है सेना
इंडियन आर्मी देश का अंतिम विकल्प है। सभी रिसोर्सेज खत्म हो जाते हैं, तब सेना कमान संभालती है, वही इस ऑपरेशन में भी हुआ। कर्नल पारीक कहते हैं कि NDRF के साथ सभी एजेंसियां बेहतर काम कर रही थीं। सुरंग बनाकर राहुल तक पहुंच भी गई थीं। हमने उनका उत्साह और मनोबल बढ़ाने का काम किया और अंतिम दौर में अपनी टीम को उतारकर संयुक्त ऑपरेशन को अंजाम दिया।
NDRF और सेना को और संसाधन जुटाने होंगे
देश के इस सबसे बड़े रेस्क्यू ऑपरेशन और चुनौतियों को लेकर कर्नल पारीक ने कहा कि इस तरह की आपदा से निपटने NDRF व सेना को और तैयारी करने की जरूरत है। इस तरह के गहरे गड्ढे में फंसे बच्चे या कोई भी व्यक्ति को बाहर निकालने के लिए उपकरणों की जरूरत होगी, ताकि पत्थरों के बीच हम ट्रैक करने के लिए देख सकें और ऑपरेशन को बेहतर बना सके।
प्रिंस को सुरक्षित बाहर निकाला, ये उससे भी बड़ा ऑपरेशन
उन्होंने कहा कि इससे पहले 2006 में हरियाणा के कुरूक्षेत्र में 50 फीट गहरे बोरवेल में फंसे प्रिंस को इंडियन आर्मी और NDRF ने सुरक्षित बाहर निकाला था। तब वहां मिट्टी और रेत की खुदाई की गई थी। उसके बाद यह दूसरा बड़ा और सक्सेसफुल ऑपरेशन रहा। इसमें जो दिक्कतें आई, वह सबके सामने हैं। बड़े-बड़े डोलोमाइट पत्थर को काटकर बच्चे तक पहुंचना था। यही वजह है कि यह सबसे मुश्किल ऑपरेशन रहा।
100 घंटे से हम डटे रहे, पर हार नहीं मानी
NDRF के ओडिशा कटक के हेड कांस्टेबल सुबोजीन मैके ने कहा राहुल को बचाने के लिए A और B प्लान बनाया गया। प्लान A पर काम करने के साथ-साथ प्लान B पर भी काम शुरू कर दिया। प्लान A के फेल हो गया। इसलिए प्लान B के तहत काम करते हुए गहरी खाई की खुदाई की गई। फिर टनल बनाकर सुरंग की खुदाई की गई। इस दौरान राहुल को ऑब्जर्व किया।
उन्होंने कहा कि वैसे तो NDRF ने इस तरह से कई तरह का रेस्क्यू किया है, लेकिन, यहां चट्टान और पत्थरों को काटकर राहुल को बाहर निकालना मुश्किल हो गया था। हम किसी भी तरह का ब्लास्ट नहीं कर सकते थे। हर बार एक नई चट्टान बाधा बन रही थी। फिर भी हमारी टीम ने हार नहीं मानी और आखिरकार ऑपरेशन सफल हो गया।
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