छत्तीसगढ़ में आज माताओं ने हलषष्ठी व्रत किया। गौरेला-पेंड्रा-मरवाही जिले में भी संतान की लंबी आयु और सुख-समृद्धि की कामना के साथ मांओं ने हलछठ का व्रत रखा। इसे हरछठ या खमरछठ के नाम से भी जाना जाता है। पेंड्रा में भी महिलाओं ने सुबह स्नान कर व्रत का संकल्प लिया। इसके बाद कई माताओं ने घर, तो कुछ ने बाहर दीवार पर भैंस के गोबर से छठ माता का चित्र बनाया। उन्होंने भगवान गणेश और मां पार्वती की पूजा-अर्चना की।
पौराणिक मान्यता है कि इस दिन श्रीकृष्ण के बड़े भाई बलराम का जन्म हुआ था. मान्यता यह भी है कि इस व्रत को विधि-विधान से करने पर संतान से जुड़ी समस्याएं दूर हो जाती हैं. पेंड्रा में कई महिलाओं ने घर में ही गोबर से प्रतीक के रूप में तालाब बनाया और एक साथ हलषष्ठी व्रत की कथा सुनी। माताओं ने बर्तन में बनाए तालाब में कांसे के फूल लगाए। भाद्र कृष्ण पक्ष की षष्ठी पर हलषष्ठी माता की पूजा की जाती है। छत्तीसगढ़ में इस पूजा को लेकर कई मान्यता प्रचलित हैं। इस व्रत में दूध, घी, सूखे मेवे, लाल चावल का सेवन किया जाता है, लेकिन इस दिन गाय के दूध और दही का सेवन नहीं करना चाहिए। इसलिए अधिकतर महिलाएं भैंस के दूध का प्रयोग करती हैं।
बिना हल चली जमीन पर उपजे पसहर चावल का उपयोग
हलषष्ठी की पूजा में बिना हल चली जमीन पर उपजे पसहर चावल, लाई, महुआ, चुकिया का उपयोग किया गया। पूजा के बाद दीर्घायु और सुखी भविष्य के लिए माताओं ने संतान के माथे पर तिलक लगाकर उनकी पीठ पर पोता लगाया और उन्हें दूध-दही मिश्रित पसहर चावल का प्रसाद खिलाया। शाम को व्रती महिलाएं पसहर चावल और मुनगा भाजी खाकर व्रत का पारण करेंगी।
आज बलराम जयंती
बलराम जी का मुख्य शस्त्र हल और मूसल है, इसलिए उन्हें हलधर भी कहा जाता है। उन्हीं के नाम पर इस पावन पर्व का नाम हल षष्ठी पड़ा है। नवविवाहित स्त्रियां भी संतान की प्राप्ति के लिए यह व्रत करती हैं। इसके साथ ही बलराम जयंती होने के कारण इस दिन खेती में उपयोग होने वाले उपकरणों की पूजा भी की जाती है।
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