गणगौर माता की पूजा अर्चना की:गणगौर प्रतिमा की पूजाकर दी विदाई

बाराद्वार2 महीने पहले
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पूजा के बाद गणगौर की प्रतिमा को विदाई देती महिलाएं व युवतियां। - Dainik Bhaskar
पूजा के बाद गणगौर की प्रतिमा को विदाई देती महिलाएं व युवतियां।

नगर में गणगौर माता की पूजा अर्चना शुक्रवार को हर्षोल्लास के साथ आयोजित की गई। होली के दूसरे दिन से ही मारवाड़ी व ब्राह्मण समाज की युवती व महिलाएं अपने घरों में गणगौर माता की मूर्ति बनाकर पूजा अर्चना करती रही। 16 दिन तक चलने वाली इस पूजा में युवतियां सुयोग्य वर की प्राप्ति व महिलाएं अपने सुहाग की लंबी उम्र की कामना करती हैं।

गणगौर माता की पूजा कर रही कंचन शर्मा और प्रीति शर्मा ने बताया कि होली की राख व गोबर से पिंड बनाए जाते हैं। गणगौर भगवान शंकर पार्वती का रूप हैं। उन्होंने बताया कि मान्यता है कुंवारी कन्याएं सुयोग्य वर की प्राप्ति व महिलाएं अपने सुहाग की लंबी आयु के लिए यह पूजा नियम व श्रद्धापूर्वक करती हैं। मारवाड़ी व ब्राह्मण घरों में गणगौर की पूजा का विशेष महत्व हैं, विवाह के बाद लड़की पहली गणगौर पूजा अपने मायके में आकर ही करती है। महिलाएं, कुंवारी लड़कियां मिलकर सुबह पूजा करती हैं।

सुबह एवं शाम को पानी का अर्क दिया जाता हैं और रात में मंगल गीत गाए जाते हैं। अपने-अपने घरों से गाजे बाजे के साथ बनोरा भी निकालती हैं और घर पर सभी परिवार वालों तथा अपनी सहेलियों को बुलाकर सभी को तिलक लगाकर उत्सव का आयोजन किया जाता है। 16 वें दिन की पूजा खास होती हैं, इस दिन सभी महिलाएं और युवतियां अपने हाथों में मेहंदी व पारंपरिक नये परिधान पहनकर सोलह श्रृंगार के साथ सोलह प्रकार के फल फूल के साथ इस पूजा में शामिल होती हैं एवं विधि-विधान के अनुसार व श्रद्धापूर्वक पूजन, गणगौर माता के गीत व अन्य पूजा के समय माहौल पूर्णतः गणगौर मय हो जाता हैं। नगर में 20 से अधिक युवतियों एवं महिलाओं द्वारा गणगौर माता की पूजा अर्चना पूरे श्रद्धा भाव से की गई।

गणगौर पूजा कर प्रतिमा का किया विसर्जन
24 मार्च शुक्रवार को गणगौर माता को सजाकर युवती और महिलाएं बस स्टैण्ड स्थित तालाब पहुंची। यहां पूजा अर्चना के साथ गणगौर माता का विसर्जन किया गया, जिसके साथ ही 16 दिन की गणगौर पूजा संपन्न हुई। कंचन शर्मा और प्रीति शर्मा ने बताया कि गणगौर माता की पूजा को लेकर नगर की युवतियों व महिलाओं में काफी उत्साह देखा गया।

गणगौर त्योहार पूरी तरह से कुंवारी कन्याओं और महिलाओं का होता हैं। गणगौर मनाने के प्रति कुंवारी कन्याओं की यह धारणा हैं कि उसे अच्छा पति व परिवार मिले। गणगौर पूजन को गौरी उत्सव, गौरी तृतीया, ईश्वर गौरी के नाम से भी जाना जाता हैं।