साल 2025 तक भारत को टीबी मुक्त बनाने के प्रयास किए जा रहे हैं, लेकिन मरीजों की संख्या में कमी नहीं हो रही। पिछले 2 सालों में लॉकडाउन और कोरोना संक्रमण के चलते टीबी की जांच प्रभावित हुई, इसलिए मरीजों के आंकड़े भी कम हो गए, लेकिन इस बार जैसे ही जांच बढ़ी है। टीवी के मरीजों की संख्या भी बढ़नी शुरू हो गई है। बीते तीन साल में जिले की टीबी संक्रमण दर भी बढ़ने लगी है। स्थिति यह है कि औसतन हर दिन 5 टीबी मरीजों की पहचान हो रही है।
प्राइवेट अस्पतालों की अपेक्षा सरकारी अस्पतालों में ज्यादा मरीज चिह्नांकित हो रहे हैं। केंद्र सरकार टीबी मुक्त करने के लिए मुहिम चला रही है, जिले में लगातार मरीजों की संख्या में इजाफा हो रहा है। कोरोना के बाद संख्या लगातार बढ़ोतरी हुई है।
साल भर में सबसे ज्यादा नवागढ़ ब्लाक में टीबी में मरीज चिह्नांकित किए गए हैं, जबकि सबसे कम बलौदा क्षेत्र में टीबी के मरीज मिले हैं। डॉक्टरों के अनुसार कोरोना संक्रमण का असर चेस्ट पर होता है, जबकि टीबी की बीमारी भी सीधे चेस्ट को प्रभावित करती है। ऐसे में जिन्हें कोरोना हो चुका है उन्हें टीबी होने की भी संभावना अधिक है। डॉक्टरों के अनुसार जिले में टीबी की संख्या का कारण प्रदूषण भी है। जिले में स्टील प्लांट, क्रशर, राइस मिल आदि से निकलने वाले धूल, डस्ट उड़ना भी टीबी का कारण बन रहा है।
निक्षय योजना के तहत मात्र 71 लोगाें ने 80 मरीज लिया गोद
टीबी मरीजों को कम्युनिटी सपोर्ट देने के लिए केंद्र सरकार द्वारा निक्षय योजना के तहत मरीजों को गोद लेने शुरुआत की है। मरीजों को लोगों के माध्यम से हर माह पूरक पोषण मिले, ताकि मरीज खुद को अकेला न समझे और जल्द की स्वस्थ्य हो सके। वर्तमान में केवल 71 लोगांे ने 80 मरीजों को ही गोद लिया है।
लोगों में जागरूकता की कमी
"लोगों में जागरूकता का अभाव है, जिसके कारण टीबी की बीमारी बढ़ रही है। टीबी के लक्षण होने के बाद भी इलाज कराने में लापरवाही बरतते हैं और संक्रमण फैलता है। लंबे समय तक खांसी या अन्य लक्षण दिखाई देने पर उन्हें तत्काल स्वास्थ्य जांच करानी चाहिए। समय रहते इलाज मिलने पर वे स्वयं की और अपने परिवार की जान बचा सकते हैं। टीबी मरीजों को पोषण आहार की जरूरत होती है। सभी सरकारी अस्पतालों में मरीजों को निशुल्क इलाज कर उन्हें मुफ्त में दवाइयां दी जाती है।" - डॉ. अनिल जगत, सीएस, जिला अस्पताल जांजगीर
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