बेटों की संख्या के मुकाबले जन्म लेने वाली बेटियों की संख्या कम हैं, चार सालों में लड़कों की तुलना में औसतन 500 लड़कियां कम पैदा हो रही। दावा तो यह किया जाता है कि जिले के किसी भी सोनोग्राफी सेंटर में प्रसव पूर्व लिंग परीक्षण नहीं होता, अस्पतालों में यह बोर्ड भी लगा रहता है, लेकिन बड़ा सवाल यह भी है कि यदि टेस्ट नहीं हो रहे तो फिर बेटे और बेटियों के जन्म में अंतर क्यों आ रहा है।
इतना अंतर यदि है तो निश्चित रूप से सोनोग्राफी सेंटरों में चोरी छिपे लिंग परीक्षण हो रहे हैं, चूंकि यहां लगे ट्रैकर डिवाइस को ऑपरेट करने का जिम्मा जिले के सीएमएचओ को नहीं है, इसलिए इसका पता नहीं चल पा रहा है। जांच के नाम पर भी औपचारिकता निभाई जा रही है। लेकिन यह चिंता का विषय है। जिले में पिछले कुछ सालों से जन्म लेने वाले बच्चों में लड़कियों की तुलना में लड़के ज्यादा हैं। पिछले चार सालों में 1 लाख 23 हजार 778 बच्चों को जन्म का जन्म हुआ है। इनमें से 62 हजार 955 बालक हुए जबकि 60 हजार 822 बच्ची का जन्म हुआ है।
इस हिसाब से औसतन प्रत्येक वर्ष 500 लड़कियां कम पैदा हुई है। इस तरह से अचानक बेटियों की संख्या का कम होना चौकाता है। सुप्रीम कोर्ट के निर्देश पर कन्या भ्रूण हत्या और गिरते लिंगानुपात को रोकने के लिए 10 सदस्यीय टीम का गठन किया गया है। इस समिति का अध्यक्ष जिपं सीईओ हैं। इस समिति की एक बैठक 27 अक्टूबर को फिर बुलाई गई है।
एनएचएस की रिपोर्ट भी बढ़ा रही चिंता
वर्ष 2001 की जनगणना में जिले में 1000 पुरुष की तुलना में जिले में महिलाओं की संख्या 998 थी, जबकि वर्ष 2011 की जनगणना में इनकी संख्या में घटकर 986 तक आ पहुंची, इसी तरह नेशनल हेल्थ सर्वे रिपोर्ट के अनुसार वर्ष 2015-16 हुए सर्वे रिपोर्ट के अनुसार जिले में 1000 पुरुषों की तुलना में 1038 महिलाएं थी, लेकिन वर्ष 2019-21 में हुए रिपोर्ट के अनुसार इसकी संख्या में घटकर 999 तक आ पहुंची, वहीं यदि फिर से सर्वे किए जाए तो इसकी संख्या में और भी कम होगी, जो चिंता का विषय है।
जानिए... क्या कहते हैं एक्सपर्ट
टीसीएल कॉलेज के समाजशास्त्र विभाग के डॉ. केपी कुर्रे बताते है कि केंद्र व राज्य सरकार द्वारा बेटियों को सामन अधिकारी दिया जा रहा है, बावजूद इसके ग्रामीण क्षेत्रों मेंं लोगों की मानसिकता नहीं बदल पा रही है। लाेगों में अब भी वंश आगे बढ़ाने की चाह में बेटियों के बजाय सिर्फ बेटे की चाह रखते हैं, हालांकि शहरी क्षेत्रों को स्थिति तो कुछ सुधरी है, यहां ज्यादातर लोग छोटे परिवार की चाह रखते हैं और बेटा हो जाने के बाद वे परिवार बढ़ाना नहीं चाहते। लोगों को अपनी सोच बदलने की जरूरत है।
सीधी बात, डॉ. आरके सिंह, सीएमएचओ - एंटी ट्रैकर डिवाइस की मॉनिटरिंग सीधे महाराष्ट्र के पुणे से होती है
हर साल लिंगानुपात क्यों घट रहा है?
- जिले में कन्या भ्रूण हत्या जैसी कोई शिकायत अब तक नहीं मिली है। लिंगानुपात राष्ट्रीय मानक स्तर पर है।
सोनोग्राफी सेंटरों के एंटी ट्रैकर डिवाइस की नियमित मानिटरिंग क्यों नहीं होती?
- सोनोग्राफी सेंटरों में एंटी ट्रैकर डिवाइस की मानिटरिंग सीधे महाराष्ट्र के पुणे से होती है, शिकायत मिलने के बाद वे संबंधित सीएमएचओ कार्यालय को शिकायत करते हैं, लेकिन अब तक ऐसी कोई शिकायत नहीं मिली है।
सेंटरों की जांच किस तरह से की जाती है तो भ्रूण परीक्षण की जानकारी कैसे लेते हैं?
- सेंटरों में पहुंची गर्भवती महिलाओं को डाटा कलेक्ट किया जाता है, डाटा के आधार पर रैंडम जांच कर पेशेंट के मोबाइल नंबर से कांटेक्ट कर की जाती है। साथ ही स्वास्थ्य विभाग द्वारा गर्भवती महिलाओं के पंजीयन और बीसीजी टीका के आधार पर महिलाओं का वेरिफिकेशन भी किया जाता है।
सोनोग्राफी सेंटरों की जांच अंतिम बार कब हुई और क्या-क्या कार्रवाई की गई है?
- सोनोग्राफी सेंटरों की नियमित जांच की जाती है, पिछले माह चांपा और मालखरौदा के सेंटरों की जांच भी गई है। वहीं पीसीपीएनडीटी शाखा में पदस्थ क्लर्क का ट्रांसफर हो गया है, जिसके कारण कुछ दिक्कतें हुई है। शीघ्र ही व्यवस्था सुधारकर जांच की जाएगी।
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