मनुष्य सदा संपत्ति की खोज में व्याकुल रहा है, इस कारण वह और विपत्तियों में डूबता चला गया। अधिक संपत्ति ही विपत्ति का कारण बनती है। कंस, रावण,शिशुपाल सभी सम्पतियों के कारण ही प्रभु द्रोही बन बैठे। अति संपत्ति मनुष्य के विवेक को नष्ट कर देती है और वह प्रजा, स्वजन का विरोधी हो जाता है। परिणाम स्वरूप सभी का विनाश हो जाता है।
संपत्ति और सन्मति एक संग नहीं रह पाते यह भी एक सत्य है। उक्त बातें पं अनिल शर्मा ने ग्राम बुंदेला में आयोजित संगीतमय श्रीमद भागवत कथा के चौथे दिन कही। राम चरित्र पर चर्चा करते हुए कहा श्री शर्मा ने कहा कि श्रीराम जी मर्यादा के भीतर ही सारा कार्य करते हैं, उनका हास्य भी मर्यादित होता है। श्री शर्मा ने बताया कि राम की तपस्या से भरत का तप श्रेष्ठ है।
भरत जी सभी साधनों का त्याग कर नंदीग्राम में गोमुख वायक व्रत करते हुए 14 वर्षों तक भगवान की वापसी हेतु तप करते रहे। चौथे दिन भगवान कृष्ण के अवतार की कथा भी सुनाई गई। कृष्णावतार पर आचार्य शर्मा ने कहा - ब्रह्म सदा अंधेरे में ही आता है, क्योंकि हम जितने गहन अंधेरे में होते हैं, सुबह उतनी ही निकट होती है । जीवन के गहरे तमस में उतरने वाले दीपशिखा का नाम ही कृष्ण है जो अपनी प्रत्यंचा पर अंधकार को दूर कर शर संधान कर जीव को आलोक की ओर ले जाता है।
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