जशपुर जिले में करंट की चपेट में आकर बेसुध हुआ हाथी मंगलवार को जंगल में चला गया है। इसे सामान्य करने में वन और पशु चिकित्सा विभाग को कड़ी मशक्कत करनी पड़ी। सोमवार को हाथी 11 केवी बिजली की तार की चपेट में आ गया था, जिससे उसे करंट लग गया। इसके बाद वो एक ही जगह पर घंटों खड़ा रहा। हाथी को इस तरह देख मौके पर लोगों की भीड़ लग गई।
घटना तपकरा रेंज के बरकसपाली गांव की है। लोगों ने बताया कि जंगल की तरफ जा रहे कुछ ग्रामीणों की नजर सड़क से कुछ ही दूरी पर खड़े हाथी पर पड़ी। हाथी प्रभावित क्षेत्र होने के कारण शुरुआत में लोगों ने उस पर ध्यान नहीं दिया। लेकिन जब काफी देर तक हाथी के शरीर में कोई हलचल नहीं हुई, तब उन्होंने इस पर ध्यान दिया। पास में ही 11 केवी बिजली आपूर्ति का वायर गिरा हुआ था। ऐसे में ग्रामीणों को हाथी के करंट लगने की आशंका हुई।
लोगों ने तुरंत वन विभाग को खबर दी। जिसके बाद मौके पर बरकसपाली गांव में वन विभाग की टीम पहुंची। वन विभाग ने आशंका जताई है कि ये नर हाथी अपने दल से बिछड़ गया होगा और शरीर को खुजलाने के लिए बिजली के खंभे में अपने शरीर को रगड़ा होगा। इसी दौरान खंभे के टूट जाने से ये तार की चपेट में आ गया होगा, जिससे इसे करंट लग गया होगा। करंट का तेज झटका लगने के कारण हाथी अचेत अवस्था में एक ही जगह पर खड़ा रह गया। करीब 14 घंटे तक हाथी एक ही अवस्था में जंगल के किनारे खड़ा रहा।
हाथी को सामान्य करने में वन और पशु चिकित्सा विभाग के पसीने छूट गए। पशु चिकित्सक डॉ सुधीर मिंज ने बताया कि 11 केवी करंट का झटका लगने से हाथी शुरू में बेहोश हो गया था। कुछ देर में उसे होश तो आ गया, लेकिन दिमाग और शरीर सुन्न हो जाने से वो हिल-डुल नहीं पा रहा था। हाथी की जान बचाने के लिए सबसे ज्यादा जरूरी उसे पानी पिलाना था, ताकि उसे डिहाइड्रेशन नहीं हो।
इसलिए सबसे पहले हाथी के लिए पानी की व्यवस्था की गई। इस बीच उसे 4 दर्जन केला, केला के पत्ते और तना खाने के लिए दिया गया। केले में पानी की मात्रा अधिक होती है। इस वजह से हाथी को डिहाइड्रेशन नहीं हुआ। इसके बाद पशु चिकित्सकों ने हाथी को शॉक से बाहर लाने के लिए एविल और दर्द निवारक टैबलेट केले में मिलाकर देने का फैसला लिया। लेकिन सबसे बड़ी चुनौती हाथी को इन दवाओं को खिलाने की थी, क्योंकि वे शॉक की स्थिति में खड़ा हुआ था, पूरी तरह से बेहोश नहीं था। इसलिए दवा खिलाने के दौरान उसके आक्रमण करने का खतरा था।
वनकर्मियों ने काफी मशक्कत के बाद केले में दवाई मिलाकर हाथी को इसे जैसे-तैसे खिलाया। टैबलेट खाने के दो घंटे के बाद हाथी थोड़ा सामान्य हुआ और चिंघाड़ता हुआ वहां पास में रखे पानी के टैंकर को पलट दिया। हाथी के इस आक्रामक रूप को देख मौके पर उपस्थित वन और पशु चिकित्सा विभाग के अधिकारियों और कर्मचारियों में हड़कंप मच गया। सब जान बचाने के लिए इधर-उधर भागने लगे। इसके बाद हाथी तेजी से दौड़ता हुआ जंगल के अंदर घुस गया। किसी तरह की जनहानि नहीं हुई है।
तपकरा रेंजर निखिल पैंकरा ने बताया कि हाथी के सुरक्षित जंगल लौटने से वन और पशु चिकित्सा विभाग के अधिकारियों और कर्मचारियों ने राहत की सांस ली। उन्होंने कहा कि रविवार को नर हाथी अपने दल से अलग होकर तपकरा रेंज के बरकसपाली गांव में आ गया था।
वन विभाग का सूचना तंत्र हुआ फेल
जिले का तपकरा रेंज छत्तीसगढ़ का सबसे अधिक हाथी प्रभावित क्षेत्र है। इस क्षेत्र में साल के 12 महीने हाथियों की हलचल बनी रहती है। झारखंड और ओडिशा की अंतर्राज्यीय सीमा पर ये स्थित है। इस रेंज में घने जंगल और पानी से भरपूर जलस्रोत हैं, जो हाथियों को खूब लुभाते हैं। यही कारण है कि दोनों पड़ोसी राज्यों से हाथी तपकरा रेंज में आ जाते हैं। यहां से पत्थलगांव, सीतापुर होते हुए हाथियों का दल सरगुजा और धरमजयगढ़ होते हुए रायगढ़, कोरबा की ओर निकलते हैं।
हाथियों की लगातार बढ़ती हुई हलचल पर नजर रखने के लिए वन विभाग पूरी तरह से ग्रामीणों से मिलने वाली सूचनाओं पर निर्भर है। लेकिन बीते कुछ महीनों से यह सूचना तंत्र पूरी तरह से फेल हो चुका है। यही कारण है कि विभाग के पास न तो हाथियों के लोकेशन की जानकारी है और न तो संख्या की। विभाग की इस नाकामी से जिले में जन और संपत्ति हानि का आंकड़ा तेजी से बढ़ रहा है।
छोटे हाथी को मां से मिलाने में विफल रहा था विभाग
सूचना तंत्र की विफलता का अनुमान इसी बात से लगाया जा सकता है कि नन्हे हाथी को उसकी मां से मिलाने में वन विभाग को नाकामी हाथ लगी थी। पूरी ताकत झोंक देने के बाद भी वन विभाग के अधिकारी हाथी के बच्चे की मां को चिन्हांकित करना तो दूर उसके दल को भी नहीं खोज पाए थे। जिसके बाद वन विभाग ने नन्हे हाथी को सरगुजा के तमोर पिंगला अभयारण्य में स्थित रमकोला रेस्क्यू सेंटर भेज दिया था।
महीनेभर पहले जशपुर की बस्ती में पहुंचा था हाथी का शावक
पिछले महीने सितंबर में जशपुर जिले में अपने दल से बिछड़ गया नन्हा हाथी समडमा गांव पहुंच गया था। गांव वालों ने उसे दिनभर पंचायत भवन में रखा था और उसकी देखभाल की थी। सूचना मिलने पर वन विभाग की टीम बस्ती में पहुंची थी और इस बेबी एलीफैंट को उसके दल के पास छोड़ दिया था। इसका दल तपकरा वन परिक्षेत्र के आरएफ क्रमांक 875 में डेरा डाले हुए था।
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