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काेराेनाकाल में शहर में मेंटल हेल्थ के केस भी बढ़े हैं। मुझे काेराेना हाे गया ताे फैमिली का क्या हाेगा, मैं जिंदा रहूंगा या नहीं, अगर मेरे छाेटे से बच्चे काे काेराेना हाे गया ताे उसका इलाज कैसे हाेगा, लाॅकडाउन के कारण धंधा चाैपट हाे गया है, घर कैसे चलेगा... जैसी बातें लगातार साेचने की वजह से लाेग डिप्रेशन का शिकार हाे रहे हैं। शहर के मनाेवैज्ञानिकाें और काउंसलर्स के अनुसार इन दिनों उनके पास ऐसे काफी केस आ रहे हैं जाे काेराेना संक्रमित हाेने के कारण या काेराेना हाे जाने के ख्याल से ही बेहद घबराए हुए हैं। जरूरत के अनुसार ऐसे लाेगाें की ऑनलाइन और टेलीफाेनिक काउंसिलिंग करने के अलावा फेस टू फेस काउंसलिंग भी की जा रही है। पढ़िए कुछ केस स्टडी।
काेराेना ने छीना पिता का साथ, खुद सुसाइड के बारे में साेचने लगे
48 साल के बिजनेसमैन तरुण कुमार (परिवर्तित नाम) के 75 साल के पिता का काेराेना की वजह से देहांत हो गया। पिता की देखभाल करते हुए तरुण और उनकी 7 लोगों की फैमिली भी कोरोना पॉजिटिव आ गई। पिता काे खाेने और उनका अंतिम संस्कार भी न कर पाने का तरुण काे गहरा सदमा लगा। उनके मन में सुसाइड का ख्याल आने लगा। उन्हें इस कदर टूटता देख पूरी फैमिली डिप्रेशन की शिकार हो गई। कोविड सेंटर में रहते हुए तरुण ने मनोवैज्ञानिक से फोन पर बात की। उन्हें समझाया गया कि दुनिया में कई लोगाें के साथ इस तरह की घटना घटी है। जाे चला गया उसके लिए परेशान होने के बजाय अब अपनी और फैमिली की सेहत के बारे में साेचना चाहिए । आपके पिता के जाने के बाद आपकी जिम्मेदारी बढ़ गई है। लगातार 14 दिन तक सायकाेलाॅजिस्ट से बात करने से तरुण नाॅर्मल हाे सके और फैमिली के सभी मेंबर्स की रिपाेर्ट निगेटिव आ गई ।
इनपुट: डॉ. वर्षा वरवंडकर
इलाज करते हुए खुद संक्रमित हुए ताे नींद और भूख तक उड़ गई
35 साल के डॉ. पीयूष कुमार (परिवर्तित नाम) अपना फर्ज निभाते हुए काेराेना पेशेंट का इलाज कर रहे थे। वायरस से मरीजाें की जान बचाते हुए वे खुद भी संक्रमित हाे गए। वाइफ और तीन साल की बेटी की रिपाेर्ट भी पाॅजिटिव आ गई। तीनों हॉस्पिटल में एडमिट हो गए। इस दाैरान पीयूष के मन में तरह-तरह के ख्याल आने लगे। उन्हें लगने लगा कि अगर इस बार ठीक हो भी जाएंगे तो लाेगाें का इलाज करते वक्त फिर से संक्रमित हो सकते हैं। उन्हाेंने ये तय कर लिया कि ठीक हाेने के बाद वायरस पूरी तरह खत्म हाेने तक पेशे से दूर हाे जाएंगे। डिस्चार्ज होकर घर लौटने के बाद भी पीयूष का मेंटल स्ट्रेस कम नहीं हुआ ताे उन्हाेंने मनोवैज्ञानिक से संपर्क किया। उन्हें समझाया गया कि ऐसे कई डॉक्टर हैं जाे जान की परवाह किए बिना हजारों लोगों का ट्रीटमेंट कर रहे हैं। इस दाैरान पीयूष 1 महीने तक नींद ना आने से परेशान रहे। न उन्हें भूख लगती थी, न किसी से बात करने का मन हाेता था। उन्होंने खुद को घर में ही कैद कर लिया था। काउंसलिंग के बाद वे धीरे-धीरे नॉर्मल होते चले गए। अब फिर से हॉस्पिटल जाॅइन कर काेराेना पेशेंट का इलाज कर रहे हैं।
इनपुट: डॉ. इला गुप्ता
जब निगेटिव थाॅट आएं ताे इन विचाराें से खुद काे बनाइए पाॅजिटिव
पॉजिटिव- किसी भी लक्ष्य को अपने परिश्रम द्वारा हासिल करने में सक्षम रहेंगे। तथा ऊर्जा और आत्मविश्वास से परिपूर्ण दिन व्यतीत होगा। किसी शुभचिंतक का आशीर्वाद तथा शुभकामनाएं आपके लिए वरदान साबित होंगी। ...
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