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पाठ्य पुस्तक निगम (पापुनि) में वर्ष 2017-18 और 2019 के दौरान स्वेच्छानुदान के नाम पर 98 लाख के गोलमाल का खुलासा हुआ है। निगम के जिम्मेदार अफसरों ने किसी को भी निजी उपयोग के लिए पैसे बांट दिए। किसी को इलाज के नाम पर तो किसी को सामान खरीदने के लिए पैसे दे दिए। पैसे जिन्हें दिए गए, उनका न तो पापुनि से कोई संबंध है और न ही उन्होंने निगम के लिए कोई योगदान दिया है। स्थानीय निधि संपरीक्षा (लोकल ऑडिट) विभाग ने अब निगम के अफसरों को पैसों की वसूली का नोटिस जारी किया है। लोकल ऑडिट की ओर से जारी चिट्ठी में कहा गया है कि वसूली उन्हीं अफसरों से की जाए, जिन्होंने इस तरह पैसे बांट दिए। दरअसल राज्य में सत्ता परिवर्तन के साथ ही पापुनि में स्वेच्छानुदान के नाम पर चल रहे गोलमाल की चर्चा शुरु हो गई थी। कई बिंदुओं पर जांच के बाद अब स्थानीय निधि संपरीक्षण विभाग से वसूली के संबंध में पत्र जारी किया गया है। पापुनि के फर्जीवाड़े खुलासा भास्कर में हुआ था। रिपोर्ट में बताया गया था कि जिस संस्था का गठन केवल पाठ्य सामग्री और परीक्षा में पठन से संबंधित सामग्री के प्रकाशन के लिए किया गया है, उस संस्था में स्वेच्छानुदान के नाम पर गोलमाल चल रहा है। लोगों पैसे बांटे जा रहे हैं, जबकि यह निगम का न तो काम है और न ही अधिकार। इस मामले की शिकायतकर्ता विनोद तिवारी ने भी की थी। उन्होंने पापुनि के तत्कालीन जीएम अशोक चतुर्वेदी पर आरोप लगाते हुए शिकायत की थी कि उन्होंने अपने नाते-रिश्तेदारों और परिचितों के लिए इस राशि का उपयोग किया है।
इसलिए पापुनि द्वारा चतुर्वेदी से ही इसकी पूरी वसूली की जानी चाहिए और उन्हें शासकीय सेवा से बर्खास्त किया जाना चाहिए। चतुर्वेदी के खिलाफ ईओडब्लू में भी अलग-अलग मामले को लेकर शिकायत की गई है। वहां उनके खिलाफ हुई शिकायतों की जांच के बाद भ्रष्टाचार का केस भी दर्ज कर लिया गया है। खबर है कि ईओडब्लू जल्द ही उनके खिलाफ चालान पेश करने की तैयारी में है।
तीन बिंदुओं पर सवाल
सादे पर्चे में लिख दिया आवेदन बस उसी आधार पर दे दिए पैसे
निगम के अफसरों ने सादे पर्चे में लिखकर दिए आवेदन के आधार पर पैसे बांट दिए। किसी को 5 हजार तो किसी को 10, किसी को 8 हजार और दो हजार तक रकम दी गई थी। इलाज के नाम पर जिन्हें पैसे जारी किए गए उनके भी सादे पन्ने पर आवेदन थे। आवेदन के साथ न तो डाक्टर की पर्ची थी, और न ही उसमें बीमारी लिखी गई थी। नाम और पता भी स्पष्ट नहीं था। पैसे जिन्हें दिए गए थे, उनकी लिस्ट तो बनायी गई थी, लेकिन उसमें भी न तो पूरा पता लिखा गया था और न ही किसी का मोबाइल नंबर ही लिखा था। इस वजह से पैसों का आवंटन ही सवालों के दायरे में था।
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