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चिटफंड कंपनी में अपने और परिजन के पैसे गंवाने के बाद 2012 में पामगढ़ के मुड़पार निवासी शिवनाथ लहरे ने 10 दोस्तों के साथ मछली पालन(फिशरी) का काम शुरू किया। खेत पर तालाब बनवाने के बाज मछली का बीज रोहू और कतला डाले, लेकिन शुरुआत में अनुभव की कमी के चलते काम में नुकसान हुआ। उनके सभी दोस्तों ने साथ छोड़ दिया। शिवनाथ को ढाई लाख रुपए नुकसान हुआ। नुकसान से वे भी दूसरा काम करना चाहते थे, पर खेत तालाब बन चुके थे। तालाब को पटवाने में उतना ही खर्च था, इसलिए शिवकुमार ने प्रशिक्षण लेकर मछली के बीच तालाब में डाले और सफल हो गए। उसके बाद वे रूके नहीं बल्कि काम बढ़ाते चले गए। वर्तमान में उनके पास पौने चार एकड़ में 7 तालाब है। सभी तालाब में वे मछली का बीज तैयार करते हैं, और हर तीन महीने में रोहू कतला म्रिगल वैरायटी के 6 से 7 क्विंटल बीज तैयार करते हैं। इसे बाजार में अभी पांच सौ रुपए प्रति किलो में बेच रहे हैं। इससे उन्हें चार लाख रुपए मिल रहे हैं। अब वे अपने काम से खुश है,और इसके साथ-साथ कड़कनाथ के बीज, डक बीज और प्पल बेर की खेती भी शुरू कर दी है। उन्होंने बताया कि इस काम में उन्हें कृषि विज्ञान केंद्र के वरिष्ठ विशेषज्ञ डॉ. आरएल शर्मा और शस्य विशेषज्ञ शशीकांत सूर्यवंशी से सहयोग मिला है। उनके मार्गदर्शन पर उन्हें इस काम में सफलता मिली है।
कोलकाता वेयर इंड्रस्ट्रीज में 15 लाख का नुकसान
साल 2012 से पहले वे कोलकाता वेयर इंडस्ट्रीज नामक कंपनी के एजेंट के रूप में काम कर रहे थे। अपने और अपने नाते रिश्तेदारों के करीब 15 लाख रुपए उन्होंने अपने भरोसे पर कंपनी पर निवेश कराए थे, लेकिन कंपनी बीच में ही काम छोड़कर भाग गई। इसके बाद शिवनाथ लहरे तनाव में रहने लगे, लेकिन इस काम के साथ अब लोगों के पैसे वापस दिलाने के लिए न्यायालय तक लड़ाई लड़ रहे हैं।
गाइडेंस मिलने के बाद नुकसान बिल्कुल नहीं
शिवनाथ लहरे बताते है कि उन्हें इस काम में करीब 7 साल हो गए, शुरुआत में नुकसान हुआ, फिर इस कारोबार को समझने में एक साल लग गए। 2015 से कारोबार सतत जारी है। इस बीच उन्होंने छत्तीसगढ़, भुवनेश्वर, हैदराबाद से प्रशिक्षण भी लिया है। अपना अनुभव बांटते हुए बताया कि यदि सही तकनीकी गाइडेंस मिले तो इस काम में नुकसान बिल्कुल नहीं है।
1 महीने में की कड़कनाथ के 500 चूजों की सप्लाई
मछली के साथ-साथ अपनी जमीन पर इन्होंने 50 चूजों से कड़कनाथ मुर्गे का कारोबार भी शुरू किया था, जो वर्तमान में 400 तक पहुंच गए हैं। इनकी बीडिंग से सप्ताह दो सौ अंडे और महीने में इन अंडों से 500 चूजे तैयार हो रहे हैं। इनकी डिमांड बहुत ज्यादा है, इसलिए तैयार होते ही सारे बिक जाते हैं। 70 रुपए प्रतिनग के हिसाब से हर माह 35 हजार रुपए प्राप्त हो रहे हैं, वहीं इनकी देखरेख में 20 से 22 हजार खर्च होते हैं।
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