कोरोनाकाल में यूपीआई का चलन बढ़ा है। शहर में बड़ी दुकानें हों या छोटे ठेले, यहां तक कि ऑटो चालक भी इसका उपयोग कर रहे हैं। जेब में कैश की कमी होने के बावजूद दैनिक आवश्यकता के काम नहीं रूक रहे हैं। बड़े प्रतिष्ठानों ने इसमें अपना थोड़ा सा योगदान देकर इस मुहिम को और गति दे दी है।
सब्जी बेचने वाले से लेकर पानी-पूरी, चाय, समोसे वालों ने अब यूपीआई पर अपना खाता बना रखा और क्यू-आर कोड दुकान या तराजू पर ही चस्पा कर रखा है। अगर आप इनके पास से कुछ लेते हैं तो सबसे पहले इनकी ओर से यूपीआई कर ना भाई, का जवाब सुनने को मिलता है, लोग भी इसमें दिलचस्पी दिखा रहे हैं। शहर के औसतन 70 प्रतिशत छोटे दुकानदारों ने कैश-लेस प्रणाली को अपनाकर एक रिकाॅर्ड जैसा बना दिया है। इसके तमाम फायदे भी साफताैर पर नजर आ रहे हैं।
बैंकों के जरिए लेनेदेन से सुधरेगी वित्तीय व्यवस्था
ये मुहिम इतनी लंबी क्यों हैं इसे ऐसे समझा जा सकता है, आप सब्जी या अन्य सामान लेने गए और यूपीआई से भुगतान किया तो पैसा सीधा दुकानदार के खाते में जाएगा। दुकानदार जिस बड़े दुकानदार से सामान लाएगा तो उसका भुगतान भी यूपीआई से करेगा। ऑटो चालक भी फ्यूल का भुगतान इस माध्यम से करेंगा तो न केवल छुट्टे पैसों की जरूरत कम होगी बल्कि एक नंबर का लेनदेन होगा।
ऑटो वाले भी आगे आए
कैशलेस प्रणाली की मुहिम में ऑटो वाले भी आगे आ गए हैं, शहर में संचालित 50 प्रतिशत से अधिक ऑटो चालकों ने यूपीआई का क्यू-आर कोड ऑटो पर चस्पा कर रखा है। यात्रियों को अब पर्स नहीं बल्कि मोबाइल निकालकर कोड स्कैन करते हुए किराए का भुगतान करना है।
बैंक यूपीआई इस्तेमाल करें
प्रचलित यह ट्रेंड बेहद अच्छा व कोविड के दौर में कारगर है, हर छोटी जरूरत के लिए लोगों को बैंक नहीं आ रहे जिससे भीड़ की समस्या नहीं हो रही लेकिन लोगों को इसमें सजगता की जरूरत है, जहां तक हो सके मान्य बैंकों के यूपीआई का उपयोग करें। कृष्णा सिंकू, प्रबंधक अग्रणी बैंक
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