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गर्मी की शुरुआत में ही जलाशय 30 प्रतिशत से अधिक सूख चुके हैं। केलो को छोड़ छोटे और मध्यम स्तर के जलाशय पूरी तरह सूख चुके हैं। इस दौरान किसानों को रबी की फसल के लिए सबसे ज्यादा पानी की आवश्यकता होती है। अभी जलाशयों में इतना पानी ही नहीं बचा है कि वे किसानों के लिए दे सके।
अप्रैल के पहले ही पखवाड़े में डेम में जलभराव की स्थिति चिंताजनक है। केडार, पुटका, किंकारी, खम्हार पाकुट जैसे जिले के चार मुख्य बांधों में अब 30 प्रतिशत से भी कम पानी रह गया है। केलो डेम की स्थिति दूसरों जलाशयों से बेहतर है, यहां 60 प्रतिशत से अधिक जल शेष है। सबसे ज्यादा खराब स्थिति तो 135 माइनर तालाबों की है, जो पूरी तरह से सूख चुके हैं। विभाग ने इसे सूखा घोषित कर दिया है। यह हाल गर्मी की शुरुआत में है। शहर व गांव के तालाब भी सूख चुके हैं। पेयजल व सूखे तालाबों को भरने का इकलौता विकल्प बांध है।
ग्रामीण कर रहे पानी के लिए फरियाद
बांधों के गेट बंद हैं। महानदी और मांड समेत केलो नदी सूख गई है। अनेक गांवों के लोगों की निस्तारी बांध के पानी से होती है। कुछ दिन पहले ही जलसंसाधन के दफ्तर में किंकारी क्षेत्र के लोगों ने नहर में पानी छोड़ने की मांग की थी लेकिन जलाशय में पानी 3% शेष है।
नहरों की लाइनिंग टूटी खेतों तक नहीं पहुंचता पानी
1 लाख 79 हजार 475 एकड़ खेती भूमि को इन्हीं बांधों से पानी मिलता है। जिले में रबी फसल के लिए 2 लाख 23 हजार एकड़ सिंचित भूमि है। लेकिन समय से पहले सूख जाने की वजह से जलाशयों में इतना पानी नहीं है कि उन्हें नहर के जरिए खेतों तक पहुंचाया जा सके।
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