वरुण कुमार|कोंटा. आंध्रप्रदेश के ईस्ट गोदावरी जिले के पोलावरम में लिफ्ट इरिगेशन परियोजना पूरी होने को है। इससे ईस्ट, वेस्ट गोदावरी, कृष्णा जिले के लाखों लोगों और हजारों हेक्टेयर जमीन को पानी मिलेगा। लेकिन इससे छत्तीसगढ़, ओडिशा व तेलंगाना के हजारों ग्रामीणों को जमीन छोड़नी पड़ेगी। सबसे ज्यादा असर दोरला जनजाति पर पड़ेगा। ऐसे में पोलावरम बांध में पानी रोकने से इलाका डुबान में आ जाएगा पर आंध्र सरकार ने छत्तीसगढ़ के करीब 550 प्रभावितों को न तो मुआवजा दिया है न ही पुनर्वास नीति स्पष्ट की है।
जानिए, क्या है पोलावरम परियोजना
देश में बनने वाले सबसे बड़ी बहुद्देश्यीय परियोजना पोलावरम बांध के निर्माण की शुरुआत 1978 में हुई। 1985-86 में निर्माण का आंकलन 2665 करोड़ था, 2011-12 में लागत 16 हजार करोड़ आंकी गई। वर्तमान में लागत तकरीबन 40 से 50 हजार करोड़ है। इनमें मुअावजा, पुनर्वास आदि शामिल हैं। बांध की ऊंचाई 45 मीटर होगी और सड़क के साथ ऊंचाई 55 मीटर से ज्यादा होगी, जिसमें 50 लाख क्यूसेक पानी जमा करने की क्षमता होगी। 36 लाख क्यूसेक पानी डिस्चार्ज की योजना भी बनाई है।
दो नहरों से भेजा जाएगा बांध का पानी
बांध बनाने कंपनियों को वनभूमि के क्लीयरेंस और मुआवजा-विस्थापन के आंकलन में सबसे ज्यादा समय लगा। परियोजना के जरिए रोके हुए पानी को राइट व लेफ्ट केनाल से गोदावरी नदी में भेजा जाएगा।
कोंटा के कुछ हिस्से सहित 7 गांव डुबान में
छत्तीसगढ़ के सुकमा जिले के कोंटा नगर के कुछ हिस्से के साथ सहित 7 गांव प्रोजेक्ट से प्रभावित हो रहे हैं। प्रोजेक्ट से सुकमा के 545 किसानों का करीब 1390 हेक्टेयर रकबा प्रभावित होगा। 1400 लोग विस्थापित होंगे।
थोड़ी राहत... इस साल नहीं रोकेंगे पानी
बांध निर्माण की समय सीमा जून 2022 है। जब तक प्रभावितों को मुआवजा देकर विस्थापित नहीं किया जाता, तब तक बांध शुरू नहीं होगा। प्रोजेक्ट के एसई नरसिम्हा मूर्ति ने बताया इस साल बांध में पानी नहीं रोकेंगे।
सुप्रीम कोर्ट में दो सरकारों की याचिकाएं लंबित : छग सरकार ने 2011 में समझौते का शत-प्रतिशत पालन न करने की बात कहते हुए याचिका दायर कर रखी है। ओडिशा सरकार ने 2007 में याचिका दायर कर कहा था कि बांध से हमे कोई फायदा नहीं है इसलिए ये बनना ही नहीं चाहिए।
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