दंतेवाड़ा जिले की झिरका की पहाड़ी पर लगभग 11वीं शताब्दी की गणेश जी की लगभग 3-4 फीट ऊंची प्रतिमा स्थापित है। यह ढोलकल की पहाड़ी पर विराजे गणपति की प्रतिमा की तरह ही है। प्राचीन काल में इस प्रतिमा को यहां किसने स्थापित किया और इसके पीछे की पूरी कहानी क्या है? फिलहाल यह जानकारी अब तक किसी के पास नहीं है। हालांकि, इलाके के लोगों की बड़ी मान्यता इससे जुड़ी हुई है। ग्रामीण मानते हैं कि सदियों पहले पूर्वजों के समय स्थापित किए गए गणेश भगवान हमारी रक्षा करते हैं।
वहीं जिस इलाके में भगवान गणेश की ये प्रतिमा स्थापित है, वह इलाका पूरी तरह से नक्सलियों के कब्जे में हैं। लोगों को यहां तक पहुंचने के लिए काफी कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है। तब जाकर बप्पा के दर्शन होते हैं। इस इलाके में जंगली जानवार भी बहुत हैं। बताया जाता है कि अब तक इस स्थान पर ज्यादातर इस पहाड़ी के नीचे बसे गांव भांसी और धुरली के लोग ही पहुंच सके हैं।
काले ग्रेनाइट से बनी भगवान गणेश की यह प्रतिमा बेहद आकर्षित है। इस ऐतिहासिक प्रतिमा के पीछे भी कई किवदंतियां जुड़ी हुई हैं। कइयों का मानना है कि, कई सालों पहले बस्तर राजा जंगल में जब शिकार के लिए जाते थे, उस दौरान वे गणेश जी के दर्शन कर ही निकलते थे। राजा की भी भगवान गणेश के प्रति बड़ी आस्था थी। इलाके के ग्रामीण अरविंद, दिलीप व मुकेश ने बताया कि, पूर्वजों के समय से झिरका की पहाड़ी में गणेश भगवान विराजमान हैं। साल में एक दो बार हम यहां जाकर पूजा अर्चना करते हैं। गणेश भगवान हमारी सारी मनोकामना पूरी करते हैं।
ऐसे पहुंच सकते हैं श्रद्धालु
दंतेवाड़ा जिला मुख्यालय से बचेली जाने वाले मार्ग पर लगभग 18 किमी की दूरी पर धुरली गांव बसा है। यहां तक बाइक या अन्य कोई भी बड़ी वाहन से पहुंचा जा सकता है। फिर धुरली व भांसी गांव के बीच से एक कच्चे रास्ते से होते हुए पुजारी पारा तक बाइक से जाना पड़ता है। यहां गांव में ही बाइक खड़ी कर फिर रेलवे ट्रैक को पैदल पार करते हैं। रेलवे ट्रैक को पार करने के बाद कुछ दूर पैदल सफर तय कर झिरका (झारालावा) की पहाड़ी तक पहुंचा जाता है।
गणपति बप्पा के दर्शन करने के लिए मुश्किल सफर की शुरुआत यहीं से होती है। यहां सबसे पहले झिरका की खड़ी पहाड़ी की चढ़ाई करनी होती है। लगभग 5 से 7 किमी की फिसलन भरी पहाड़ी पर जान जोखिम में डाल कर चढ़ना पड़ता है। ऊपरी छोर तक पहुंचने के बाद फिर वापस लगभग 3 किमी दूसरी दिशा में स्थित पहाड़ी में उतरना पड़ता है। कुछ दूरी और तय करने के बाद यहां पहाड़ी के किनारे खाई से पहले खुले आसमान के नीचे गणेश जी की प्रतिमा स्थापित की गई है। भक्त अपने स्तर का चढ़ावा कर सकते हैं। आने-जाने में सुबह से देर शाम तक का वक्त लग जाता है।
नक्सली और जानवर दोनों का है खौफ
यह इलाका पूरी तरह से बीहड़ है। ग्रामीण बताते हैं कि, जिस जगह गणपति बप्पा विराजमान है उसे बोल-चाल की भाषा में वीरान गांव कहा जाता है। यह इलाका पूरी तरह से नक्सलियों के कब्जे में है। इसके साथ ही भालू, तेंदुए व अन्य जानवरों से इलाका भरा पड़ा है। यही वजह है कि यहां पहुंचने के लिए बड़ी हिम्मत जुटानी पड़ती है। धुरली और भांसी गांव के ग्रामीणों को छोड़ अन्य कोई भी व्यक्ति आज तक यहां नहीं पहुंच पाया है।
वहीं ठीक इसी तरह की मूर्ति दंतेवाड़ा जिले के बैलाडीला की पहाड़ी में 3000 फीट की ऊंचाई पर भी स्थित है। उसे ढोलकल गणेश के नाम से जाना जाता है। भगवान गणेश की 3 फीट की काले ग्रेनाइट पत्थर से बनी मूर्ति 10 वीं और 11 वीं शताब्दी के बीच नाग वंश के दौरान स्थापित की गई थी।
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