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ॉलकवा पीड़ितों को अब इलाज के लिए भटकना नहीं पड़ेगा उनके उपचार की व्यवस्था जिला आयुर्वेदिक अस्पताल में की जा रही है। अभी तक लकवे के इलाज के लिए पीड़ित को आयुर्वेदिक पद्धति से उपचार करवाने रायपुर, विशाखापटनम व अन्य शहरों के चक्कर लगाने पड़ते थे। जिसमें उसके काफी पैसे खर्च होते थे और समय भी लगता था लेकिन अब जिला प्रशासन ने अायर्वुेदिक तरीके से इस बीमारी के इलाज के लिए संभाग मुख्यालय के जिला आयुर्वेदिक हास्पिटल में इसकी व्यवस्था करने जा रहा है। इसके लिए कोशिश शुरू कर दी गई है। 30 बिस्तर वाले इस हास्पिटल में अब इस बीमारी का इलाज पंचकर्म से किया जाएगा। यहां इस बीमारी के उपयोग में आने वाले समानों की व्यवस्था की गई है। इलाज के लिए डाक्टर व अन्य स्टाफ की व्यवस्था भी की गई है। जिला आयुर्वेदिक अधिकारी डॉ जेआर नेताम ने बताया कि इस बीमारी के इलाज के लिए कई महीनों से कोशिश की जा रही थी जो अब जाकर सफल हो पाई है। एक महीने के अंदर पंचकर्म के जरिए इस बीमारी का इलाज शुरू हो जाएगा। नेताम ने कहा कि किसी व्यक्ति का एक हाथ कमजोर या सुन्न हो और बोली अस्पष्ट न हो तो उसे लकवा का अटैक हो सकता है।
कोरोना का डर खत्म, अस्पताल पहुंचे रहे मरीज
काेरोना संक्रमण और समय पर उपचार की सुविधा नहीं मिलने के चलते जिला आयुर्वेदिक हास्पिटल में इलाज कराने के लिए मरीज काफी संख्या में आते थे। हास्पिटल प्रबंधन ने कोरोना के समय तक केवल ओपीडी के माध्यम से मरीजों का उपचार करने की व्यवस्था की थी। लेकिन अब जैसे -जैसे कोरोना का संक्रमण कम हो रहा है वैसे ही यहां पर इलाज के लिए पहुंचने वाले मरीजों की संख्या में बढ़ोत्तरी हो रही है। मरीजों को इलाज कराने में कोई परेशानी न हो इसके लिए इस समय उन्हें नाश्ते के साथ ही भोजन भी दिया जा रहा है।
पंचकर्म में है लकवा का पूरा इलाज
आयुर्वेद चिकित्सक डॉ आर के भार्गव ने कहा कि पंचकर्म के जरिए इस बीमारी को पूर्ण रूप से दूर किया जा सकता है। उन्होंने कहा कि मरीजों का इलाज करने के लिए दशमूल क्वाथ, एकांकगी रस, वात वजालकोष रस, एरंड तेल और उसके पत्ते का उपयोग किया जा सकता है। पंचकर्म में करीब एक महीने तक लगातार इलाज कराने से यह रोग दूर हो जाता है। उन्होंने बताया कि हर साल करीब 50 से अधिक लकवा मरीज आते हैं। जिनका इलाज महारानी में चल रहा है। अब जिला आयुर्वेदिक हास्पिटल में सुविधा मिलने से मरीजों को इसका ज्यादा फायदा मिलेगा। इस बीमारी में पुरूषों की संख्या ज्यादा है। इसमें अधिकतर मरीजों की उम्र 40 साल से 60 साल के बीच है।
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