छत्तीसगढ़ के जगदलपुर में सोमवार शाम भगवान जगन्नाथ, सुभद्रा और बलभद्र की रथ यात्रा निकलेगी। ऐसा पहली बार होगा कि एक ही रथ पर तीनों की प्रतिमाएं रखी जाएंगी। सालों से चली आ रही यह परंपरा कोरोना संक्रमण के चलते टूट जाएगी। हालांकि शाम करीब 4 बजे से शुरू हो रही रथ यात्रा के लिए तुपकी से सलामी देने की परंपरा जरूर निभाई जाएगी। वहीं राज परिवार के सदस्य रथ के आगे झाड़ू लगाकर इसे पूरा करेंगे।
बस्तर में गोंचा पर्व जगन्नाथ पुरी की तर्ज पर ही मनाया जाता है। 10 दिनों तक चलने वाले इस पर्व पर हर साल हजारों श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ती थी। इस साल कोरोना संक्रमण के चलते गोंचा पर्व में इस पर रोक लगा दी गई है। प्रशासन ने भक्तों को रथ यात्रा में शामिल होने की अनुमति नहीं दी है। भगवान जगन्नाथ मंदिर में भी भक्तों को प्रसाद चढ़ाने व घंटियां बजाने की अनुमति नहीं है।
भगवान का नहीं हो सका श्रृंगार
गोंचा पर्व में इस साल 120 सालों से चली आ रही परंपरा भी टूट गई है। 360 घर आरण्यक ब्राह्मण समाज द्वारा मांग के बाद भी गहनों का मेंटेनेंस नहीं होने से भगवान जगन्नाथ, सुभद्रा और बलभद्र की प्रतिमाओं का श्रृंगार नहीं हो पाया। ब्राह्मण समाज और जगन्नाथ मंदिर के पुजारियों ने टेंपल कमेटी पर नाराजगी भी जताई है।
ये है मान्यता
ऐसी लोक मान्यता है की जब देवी सुभद्रा श्री कृष्ण से द्वारिका भ्रमण की इच्छा जाहिर करती है तब कृष्ण व बलराम अलग-अलग रथ में बैठकर उन्हें द्वारिका का भ्रमण करवाते हैं। और इन्हीं की स्मृति में प्रतिवर्ष ओड़िशा के पुरी में रथ यात्रा का आयोजन किया जाता है। इसी के तर्ज पर बस्तर में भी रथ यात्रा का आयोजन होता है, जिसे गोंचा पर्व के नाम से भी जाना जाता है। हर साल तीन अलग-अलग रथ निकलते थे। लेकिन इस साल कोरोना महामारी की वजह से एक ही रथ निकलेगा।
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