90 के दशक का दौर था। कांकेर जिले में परलकोट के पीवी-56 गांव के रहने वाले मनोरंजन ब्यापारी आजीविका के लिए 1996 में कांकेर मुक्तिधाम में चौकीदारी करने लगे। डेढ़ सालों तक यहां काम किया। इसी दौरान पालिका से अनबन हो गई तो नौकरी छोड़ वापस अपने गांव चले गए। अगले पांच सालों तक कापसी-बड़गांव में रहे। स्कूल कभी गए नहीं थे तो पढ़ना-लिखना नहीं आता था। एक बार मारपीट के मामले में जेल गए।
वहीं पर लिखना-पढ़ना सीखा। यहां से साहित्य में रुचि हुई। इसके बाद रोजगार के लिए 2003 में पश्चिम बंगाल के हुगली में बालागढ़ पहुंचे। रोजी-रोटी के लिए रिक्शा चलाने लगे। रिक्शा चालकों की समस्या को देखते हुए रिक्शा यूनियन बना दिया। एक बार मनोरंजन बालागढ़ में एक कॉलेज के पास किसी सवारी के इंतजार में खड़े थे। तभी साड़ी पहने एक महिला आई और रिक्शा पर बैठ गई। कॉलेज नजदीक में ही था। मनोरंजन को लगा कि वह महिला कोई प्रोफेसर हैं। रास्ते में महिला से मनोरंजन की कुछ बात हुई। बात आगे बढ़ी, तो हिम्मत करते हुए मनोरंजन ने एक शब्द का अर्थ जानना चाहा।
वह शब्द था- जिजीविषा। महिला ने सवाल का जवाब तो दिया, लेकिन उसके चेहरे पर सवाल पूछने के पीछे का कारण जानने की उत्सुकता साफ दिखी। उसके पूछने पर मनोरंजन ने सवाल की वजह बताई और यह भी बताया कि वे कभी स्कूल नहीं गए। महिला जब रिक्शे से उतरी, तो उसने मनोरंजन से कहा कि यदि तुम अपनी कहानी के बारे में कुछ लिखना चाहते हो, तो तुम्हारा स्वागत है। यह कहकर महिला ने मनोरंजन को एक कागज के टुकड़े पर अपना नाम और पता लिख कर दिया। नाम पढ़कर मनोरंजन अचंभित रह गए। उसकी सवारी कोई सामान्य महिला नहीं, बल्कि प्रख्यात साहित्यकार महाश्वेता देवी थीं।
दशकों पहले घटी उस छोटी-सी घटना के बाद मनोरंजन की जिंदगी बदल गई। उनकी प्रेरणा से मनोरंजन ने किताबें लिखनी शुरू कर दी। इसके पहले तक पत्रिकाओं में लिखते थे। धीरे-धीरे मनोरंजन की 26 किताबें प्रकाशित हो गईं। कभी मुक्तिधाम के चौकीदारी करने वाले मनोरंजन को अब देश-विदेश से अनेकों पुरस्कार मिलने लगे। आज वे बांग्ला साहित्य में बड़ा नाम हैं। वक्त बीतता गया। साल 2021 में बंगाल के चुनाव आ गए। मनोरंजन शुरू से वामपंथी विचारधारा प्रभावित रहे, लेकिन बालागढ़ में किसी दल विशेष से नहीं जुड़े थे।
मुक्तिधाम पहुंचे, पुराने दोस्तों से मिले
विधायक बनने के बाद सोमवार को मनोरंजन फिर उसी कांकेर जिले में पहुंचे जहां कभी चौकीदारी की थी। पुराने दोस्त माकपा नेता नजीब कुरैशी और अन्य के साथ मुक्तिधाम पहुंचे। इसके बाद दूधनदी देखने पहुंचे। मनोरंजन कहते हैं कि कांकेर मेरी कर्मभूमि रही है। यहां से लगाव हमेशा बना रहेगा।
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