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शहर के वार्ड- 27 रेवाबंद पारा में चल रहे श्रीमद्भागवत ज्ञान यज्ञ सप्ताह के चौथे दिन महर्षि दधीचि के दान, भगवान के परम भक्त प्रह्लाद व भगवान नृसिंह के अवतार की कथा सुनाई गई। यहां 3 फरवरी से कथा की शुरुआत हुई है, जिसकी पूर्णाहुति 11 फरवरी को हवन-पूजन के साथ होगी।
पं. केदार ने गुरु महिमा बताते हुए कहा कि कभी गुरु का अपमान नहीं करना चाहिए। जाने-अनजाने भी गुरु व भगवान के भक्त के प्रति अपराध न करें। उन्होंने महर्षि दधीचि की कथा सुनाते हुए कहा कि महापुरुष परम कृपालु होते हैं, वे सर्वहित के लिए अपना शरीर तक न्यौछावर कर देते हैं। वृत्तासुर नामक राक्षस को मारने के लिए देवताओं को शस्त्र की आवश्यकता थी, तो महर्षि दधीचि ने अपने शरीर की हड्डी तक दान में दे दी। उनके शरीर की हड्डी ब्रम्हदेव ने देवशिल्पि विश्वकर्मा को दी। विश्वकर्मा ने उनकी हड्डी से वज्र बनाया, जिससे वृत्तासुर का अंत हुआ।
दक्ष की कथा सुनाई
पं. केदार प्रसाद तिवारी ने प्रजापति दक्ष की कथा सुनाई। उन्होंने बताया कि दक्ष को पहले 11 पुत्र हुए। जब वे 5 वर्ष के हुए तो राजा दक्ष ने उन्हें भगवान की तपस्या के लिए भेजा। मार्ग में उन्हें देवर्षि नारद मिल गए, उनके सभी पुत्रों ने नारद से भगवान के नाम का मंत्र लेकर तपस्या के लिए निकल पड़े और कभी नहीं लौटे। इसके बाद दक्ष के 11 हजार पुत्र हुए, वे भी देवर्षि नारद से मंत्र लेकर भगवान के नाम में रम गए और सन्यासी हो गए। राजा दक्ष देवर्षि नारद पर कुपित हो उन्हें श्राप दे दिया कि वे 2 घड़ी से ज्यादा कहीं ठहर नहीं सकेंगे।
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