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10 मार्च से अब तक राजधानी में लगभग 50 हजार से लोगों ने कोरोना सैंपल दिए, जिनमें लगभग 10 हजार पाजिटिव आ गए। लेकिन हेल्थ और प्रशासनिक अमला उन लोगों के लिए बेचैन हैं, जो पाजिटिव तो आ गए लेकिन पते पर नहीं मिल रहे हैं और फोन भी नहीं लग रहा है। इन लोगों ने दरअसल कोरोना जांच सैंपल देते समय ही नाम-पता और मोबाइल नंबर गलत लिखवाया था।
राजधानी में कोरोना की पहली लहर में छह माह में ऐसे लोगों की संख्या बमुश्किल 800 पहुंची थी, लेकिन इस बार केवल 25 दिन में ही ऐसे 2 हजार से ज्यादा मामले सामने आ चुके हैं। प्रशासन और पुलिस ने ऐसे लोगों के खिलाफ एफआईआर की चेतावनी भी दे दी है, इसके बावजूद ये लोग सामने नहीं आ रहे हैं। गलत जानकारी देने वालों के खिलाफ अफसरों को एफआईआर करवाने के निर्देश हैं। लेकिन मुश्किल यह हैै कि नाम-पता ही गलत है तो एफआईआर किनके नाम से होगी।
इसीलिए अब तक ऐसे लोगों के खिलाफ आज तक एक भी एफआईआर नहीं हुई है। कांटेक्ट ट्रेसिंग और सर्विलांस टीम के लोग ऐसे लोगों को लगातार ढूंढ रहे हैं, लेकिन पहुंच नहीं पाए हैं। कलेक्टर डॉ. एस भारतीदासन समेत आला अफसरों ने लोगों से अपील की है कि वे सैंपल देते समय सभी तरह की जानकारी सही और सटीक दें। इससे कोरोना फैलने से रोका जा सकेगा।
सरकारी सुविधाएं नहीं मिलेंगी
कांटेक्ट ट्रेसिंग की नोडल अफसर पद्मिनी भोई साहू ने बताया कि गलत नंबर और एड्रेस लिखाने वाले लोगों को कोरोना पॉजीटिव आने के बाद सरकारी सुविधाएं भी नहीं मिल पाती है। राज्य सरकार की ओर से कोरोना पॉजीटिव मरीजों का कोविड सेंटरों में इलाज कराया जाता है। होम आइसोलेशन में रहने वाले लोगों को फोन पर डॉक्टरों की मॉनटिरिंग में रखा जाता है।
हालात बिगड़ने पर अस्पताल ले जाने की भी व्यवस्था रहती है। लेकिन जो लोग गलत नाम-पता लिखवाते हैं उन्हें यह सारी सुविधाएं नहीं मिलती है और वे दूसरों की जान भी जोखिम में डालते हैं। प्रशासन को इस बात की भी जानकारी नहीं हो पा रही है कि ऐसे लोग इलाज करवा रहे हैं या नहीं। इसलिए कोरोना सैंपल देने वाले लोग सभी जानकारी ऐसी लिखवाएं जिससे उन तक पहुंच आसान हो।
वार्ड का नाम लिखवाते हैं
सैंपल लेने वाले शिविर में मौजूद अफसर और कांटेक्ट ट्रेसिंग में लगे कर्मचारियों ने बताया कि उनके पास इस तरह के भी मामले आ रहे हैं, जो सैंपल देने के दौरान केवल वार्ड का नाम लिखवा देते हैं। नाम भी पूरा नहीं लिखवाते हैं। ऐसे में एक बड़े वार्ड में उस व्यक्ति के घर कैसे पहुंचा जा सकता है।
इसी तरह गलत मोबाइल नंबर लिखाने की वजह से सैंपल की रिपोर्ट गलत व्यक्ति को जा रही है। इससे वह भी परेशान हो रहा है, जिसने सैंपल दिया ही नहीं। अभी कोरोना जांच शिविरों में अनिवार्य रूप से आधार कार्ड या पहचान पत्र नहीं मांगे जाते हैं। अफसरों का कहना है कि अगर यही चला तो सरकारी पहचान पत्र दिखाना अनिवार्य कर देंगे।
केयर सेंटर से कोरोना मरीज को वापस भगाया, बाद में किया गया भर्ती
राजधानी के आउटर में उरला के प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र में पॉजिटिव आए एक शख्स को आयुर्वेदिक कॉलेज के केयर सेंटर में भर्ती नहीं किया गया। प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र में जांच रिपोर्ट आने के बाद ये शख्स देर शाम करीब साढ़े 6 बजे भर्ती होने खुद से चला गया। पास में पॉजिटिव आई रिपोर्ट नहीं होने के कारण उसे भर्ती नहीं किया गया। दरअसल, केयर सेंटर या अस्पताल में भर्ती होने का सिस्टम जो उसमें पहले पॉजिटिव रिपोर्ट की ऑनलाइन एंट्री की जाती है, उसके बाद उसे अस्पताल या केयर सेंटर अलाट किया जाता है। उरला प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र में इसके पहले भी पॉजिटिव आ रहे लोगो को बिना किसी एंट्री के ऐसे ही जाने दिया गया।
जिसको लेकर काफी बवाल भी मचा। सवाल ये है कि पॉजिटिव आने के बाद कोई भी इस तरह आसानी से शहर में किस तरह घूम फिर रहा है। हेल्थ विभाग के आला अफसरों के मुताबिक इस तरह की खामियों पर सख्त एक्शन लिया जाएगा। देर रात करीब साढ़े 9 बजे इस शख्स को रिपोर्ट आने के बाद आयुर्वेदिक कॉलेज के ही केयर सेंटर में भर्ती कर लिया गया।
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