छत्तीसगढ़ में बिजली कंपनियों से निकलने वाली फ्लाई ऐश (राख) के पहाड़ खड़े होते जा रहे हैं। वर्तमान में 450 लाख टन फ्लाई ऐश जमा हो चुकी है, इसकाे डिस्पोजल करना छत्तीसगढ़ स्टेट पावर जेनरेशन कंपनी के लिए चुनौती बन गया है। हाल ही में मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने भी अधिकारियों को ऐश को जल्द से जल्द डिस्पोजल करने के निर्देश दिए थे। आखिर यह राख के पहाड़ कैसे तैयार हो गए, जब इसके पीछे की वजह को खोजा गया तो चौंकाने वाली बात सामने आई। पहले सीमेंट कंपनियां मुफ्त में राख ले जाती थी, पिछले कई सालों से उन्होंने लेना बंद कर दिया है।
उनका कहना है कि फैक्ट्री तक राख पहुंचाई जाए, या पैसा दिया जाए तब ही लेंगे। ऐसे में बिजली कंपनी अलग से बजट देने पर भी विचार कर रही है। वहीं दूसरी तरफ एनएच में इस राख का उपयोग होता है, लेकिन नेशनल हाई-वे अथॉरिटी भी इस राख को लेने में अपना रुझान कम दिखा रही है। उसकी डिमांड भी यह है कि जहां हाई-वे बन रहे हैं, बिजली कंपनी वहां तक ऐश पहुंचाए या ट्रांसपोर्टेशन खर्च दे।
जहां फ्लाई ऐश खपा सकते हैं, वहां दिक्कतों को ऐसे समझें
तीन प्लांट में इतनी राखड़ हुई इकट्ठा
राख निकलने का गणित
बिजली बनाते समय कोयले से 35-40 प्रतिशत तक फ्लाई ऐश निकलती है। वर्तमान में छत्तीसगढ़ स्टेट पावर जेनरेशन कंपनी के तीन प्लांट चालू हैं। तीनों में हर दिन 45 हजार टन कोयले की खपत है, जिससे लगभग 18 हजार टन फ्लाई ऐश रोज निकल रही है। कोरबा में स्थित प्लांट में 1980 से फ्लाई ऐश जमा हो रही है, जिसे समय-समय थोड़ा बहुत डिस्पोजल भी किया जाता है। यही वजह है कि कोरबा में 4 राखड़ के पहाड़ खड़े हो गए हैं। अभी तक 554.57 लाख टन ऐश खत्म की जा चुकी।
हमारे प्लांट सीमेंट फैक्ट्रियों से दूर हैं, इसलिए परिवहन खर्च बहुत आता है। इसलिए उन्हाेंने ऐश लेना बंद कर दिया है। बातचीत चल रही है, जल्दी ही फैसला हो जाएगा। अभी नेशनल हाईवे और खदानों में फ्लाई ऐश भेज रहे हैं।
-एसके कटियार, एमडी-पाॅवर जेनरेशन
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