छत्तीसगढ़िया सुगंधित चावलों की खुशबू अब विदेशी हांडियों में फिर से महकने लगी है। प्रदेश के जीराफूल, दुबराज, बादशाह भोग सहित कुछ अन्य प्रीमियम क्वालिटी के सुगंधित चावलों की मांग विदेशों में बढ़ने लगी है। राज्य के सुगंधित चावल जीराफूल के बाद अब धमतरी के दुबराज को जीआई टैग मिलने के बाद अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर छत्तीसगढ़ के चावलों की पूछपरख बढ़ने लगी है, जिसमें तीन साल से भारी गिरावट आ गई थी। 2020-21 में छत्तीसगढ़ से 108 करोड़ रुपए का सुगंधित चावल एक्सपोर्ट किया गया।
तीन साल पहले हमने महज 28.23 करोड़ के चावल एक्सपोर्ट किया था। जियोलाजिकल इंडिकेशन आफ गुड्स एक्ट 1999 में पास हुआ और 2003 से यह लागू हुआ। मध्यप्रदेश से अलग होने के बाद छत्तीसगढ़ अलग पहचान और अस्तित्व बनाने की प्रक्रिया में था, लेकिन दुर्भाग्य कि खुशबूदार चावलों के लिए पहचाने जाने वाले छत्तीसगढ़ के किसी चावल को 18 साल में कोई पहचान नहीं मिली थी
2018 में प्रदेश के इंदिरा गांधी कृषि विवि ने सरगुजा में खासतौर पर उत्पादित हो रहे जीराफूल को जीआई टैग दिलाने के लिए चेन्नई स्थित संस्था के मुख्यालय को आवेदन भेजा। सभी मापदंड पूरा करने के बाद पहली बार राज्य के किसी चावल को जीआई टैग मिला। वाणिज्य मंत्रालय के अंतर्गत आने वाले डिपार्टमेंट ऑफ इंडस्ट्री प्रमोशन एंड इंटर्नल ट्रेड की ओर से यह टैग दिया गया है। यह छत्तीसगढ़ के लिए खुशी की बात है को तीन साल बाद दुबराज को भी यह टैग मिल गया।
रासायनिक खाद से उड़ गई खुशबू
धमतरी जिले के नगरी क्षेत्र के किसान परदेशी साहू के अनुसार सुगंधित धान की फसल उन्हीं खेतों में अच्छी होती है, जिसमें रासायनिक खाद का उपयोग नहीं होता। इधर, अधिक पैदावार के लिए जिन खेतों में रासायनिक खाद का उपयोग किया जाता है उनमें अगर अच्छे धान की फसल लगा भी दी जाए तो उसमें भी खुशबू भी गायब हो जाती है। इसलिए धीरे-धीरे ज्यादातर किसानों ने मोटे धान की फसल को ही अपना लिया।
दुर्ग जिले के जामगांव के किसान प्रहलाद यादव ने बताया कि अगर एक खेत में सुगंधित चावल लिया जा रहा है और वह किसान पूरी तरह उर्वरक खाद का प्रयोग कर रहा है लेकिन आसपास के खेत में रसायनिक खाद पानी के साथ उस खेत में भी पहुंच जाए तो चावल की खुशबू जाती रहती है। इसके लिए आसपास के चार-छह किसानों को एक साथ मिलकर खुशबूदार चावल की खेती करनी होगी।
बासमती की विश्व में डिमांड सबसे ज्यादा सात राज्यों को जीआई टैग, एमपी लड़ रहा
छत्तीसगढ़ में बासमती चावल की पैदावार नहीं है, लेकिन विश्व के लगभग सभी देश सुगंधित चावलों में बासमती को ही पसंद करते हैं। एक्पोर्ट होने वाले चावलों में खासतौर पर बासमती और नॉन-बासमती के नाम पर दो कैटेगरी है। पिछले साल भारत से विश्व के 153 देशों में 29850 करोड़ रुपए (4630463 टन) के बासमती चावल का निर्यात किया गया। साल 2010 में पंजाब, हरियाणा, दिल्ली, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड, उत्तरप्रदेश और कश्मीर में उगाए जाने वाले बासमती चावल को जीआई टैग मिला था।
इसी दौरान मध्यप्रदेश सरकार की ओर से भी अपने यहां उगाई जाने वाली बासमती चावल को जीआई टैग देने की मांग की गई, लेकिन एग्रीकल्चर प्रोड्यूस एक्सपोर्ट डेवलपमेंट अथॉरिटी ने इसका विरोध किया था। इसके बाद मध्यप्रदेश को जीआई टैग नहीं मिल पाया। एमपी सरकार ने इस मामले में मद्रास हाईकोर्ट में याचिका दायर की, जिसे खारिज कर दिया गया। उसके बाद एमपी सरकार ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया है। यहां उनकी अर्जी सुनवाई के लिए स्वीकार कर ली गई है।
सुगंधित चावल का कांट्रैक्ट प्रोडक्शन
सुगंधित चावलों का निर्यात करने वाले कारोबारियों का कहना है कि राज्य में मोटे तौर पर सुगंधित चावलों की पैदावार ज्यादा मात्रा में नहीं होती। होती भी है तो वह प्रीमियम क्वालिटी की नहीं होती, जिसे विदेशों में खरीदा जाए। इसलिए यहां कांट्रैक्ट प्रॉडक्शन हो रहा है। किसानों या उनके समूहों को डिमांड बताया जाता है। वे उत्पादन करते हैं और उसे ही निर्यात किया जाता है।
इसके बावजूद ज्यादा अच्छी क्वालिटी नहीं होने के कारण छत्तीसगढ़ के ज्यादातर चावल साउथ अफ्रीका, श्रीलंका, नेपाल, भूटान, बांग्लादेश आदि देशों में ही होती है। जबकि विश्व के 153 देशों में चावलों की डिमांड है। अब जीराफूल को जीआई टैग मिल गया है। इसलिए इसकी डिमांड विश्व के अन्य प्रमुख देशों में भी होने की उम्मीद है।
सामान्य चावल में भी होगी खुशबू
प्रदेश के कृषि वैज्ञानिकों ने धान में खुशबू फैलाने वाली जीन विकसित की है। अब तक चावल के खुशबूदार होने के पीछे जो कारक मानते जाते थे उनमें एसेटिलाइट और पायरोलिन प्रमुख है। इंदिरागांधी कृषि विवि के वैज्ञानिकों ने इस मान्यता को तोड़ा है। कृषि वैज्ञानिकों को यहां सफलता तब मिली, जब वे सबसे बेहतरीन सुगंधित चावल की खोज में लगे हुए थे। उसमें देश-दुनिया से सुगंधित चावलों की करीब साढ़े पांच सौ किस्मों को शामिल किया गया। इनमें छत्तीसगढ़ की भी करीब 76 प्रजातियां शामिल हैं।
सुगंधित चावल पर 2008 में रिसर्च
छत्तीसगढ़ समेत देशभर के सुगंधित चावलों पर 2008 में चौधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि विवि से संबंध कृषि महाविद्यालय की छात्रा उमा आहूजा, एससी आहूजा, रोशनी ठक्कर और शोभारानी ने शोधपत्र प्रस्तुत किया। इसमें 315 (छत्तीसगढ़ के 33) वैरायटी के सुगंधित चावल का पता लगाया है। सबसे ज्यादा 65 वैरायटी असम में पाई गई। बिहार में 42, ओडिशा व एमपी में 33-33, यूपी में 20, कर्नाटका में 19, प.बं. में 15 तथा अन्य जिलों में पांच से 10 वैरायटी हैं।
क्यों बढ़ रहा
छत्तीसगढ़ के जीराफूल को जीआई (जीयोलाजिकल इंडिकेशन) टैग मिला था
अब धमतरी के दुबराज को भी जीआई टैग, यानी दो प्रीमियम क्वालिटी राइस
सालभर में साढ़े 4 हजार हेक्टेयर बढ़ गया रकबा, अभी करीब 14000 हेक्टेयर
33 किस्में, अलग क्षेत्रों में नाम भी खास
छत्तीसगढ़ में सुगंधित चावल की 33 किस्में हैं। इनमें बादशाह भोग- बस्तर, चिंदी कपूर - रायगढ़, चिरना खाई-बस्तर, दुबराज-रायपुर, दुर्ग, राजनांदगांव, धमतरी, बिलासपुर, महासमुंद, जांजगीर, कोरबा, कांकेर, गंगाप्रसाद-राजनांदगांव, कपूरसार-रायपुर, दुर्ग, राजनांदगांव, कुब्रीमोहर-रायपुर, दुर्ग, लोक्तीमांची-बस्तर, मेखराभुंडा-दुर्ग, समोदचीनी-बिलासपुर, सरगुजा, शक्कर चीनी-सरगुजा, तुलसीमित्र-रायगढ़, जीराफूल-सरगुजा प्रमख हैं।
23 हजार से ज्यादा किस्में
राज्य में चावल की 23 हजार से ज्यादा किस्में हैं। प्रदेश के कृषि विवि में इन किस्मों का जर्मप्लाज्म सुरक्षित रखा है। हालांकि ज्यादातर किस्में सिर्फ रिकार्ड के रूप में रखी गई हैं। छत्तीसगढ़ में लगभग दर्जनभर ऐसी किस्में हैं, जिनकी फसल ली जा रही है।
दूसरे राज्य आगे: कृषि विवि
कृषि वैज्ञानिकों का कहना है कि दूसरे राज्यों ने एक्सपोर्ट क्वालिटी के चावल की पैदावार बढ़ाई है, जबकि हम ऐसा करने में असफल रहे हैं। तरुण भोग, बादशाह भोग, दुबराज और विष्णु भोग छत्तीसगढ़ की खास किस्में हैं, अब कृषि विभाग बीज के सुधार में लगा है।
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