छत्तीसगढ़ में कोरोना संक्रमण की वजह से डेढ़ साल के बच्चे की मौत के बाद लोगों की चिंता बढ़ गई है। अनुमान है कि हर दिन मिलने वाले मरीजों में करीब 15% बच्चे हैं। इनकी उम्र 18 वर्ष से कम है। विशेषज्ञों का कहना है कि ऐसा पहली बार हो रहा है कि संक्रमण की चपेट में आए बच्चों में बीमारी के लक्षण भी दिख रहे हैं। इस मुद्दे पर दैनिक भास्कर ने रायपुर के दो बाल रोग विशेषज्ञ डॉ. अतुल जिंदल और डॉ. निलय मोझारकर से बातचीत की।
रायपुर एम्स में बाल रोग विभाग के एडिशनल प्रोफेसर डॉ. अुतल जिंदल ने बताया, बच्चों के लिए यह तीसरी लहर पहली दो लहरों से अपेक्षाकृत अलग है। कोरोना की पहली लहर ने बच्चों को प्रभावित नहीं किया था। दूसरी लहर में बहुत से बच्चे संक्रमण की चपेट में आए। लेकिन अधिकतर में कोई लक्षण नहीं दिखे। कॉटैक्ट ट्रेसिंग अथवा सीरो सर्वे में यह पकड़ में आया कि बच्चों को भी कोरोना ने संक्रमित किया था।
इस बार मामला अलग है। अधिकतर बच्चों में संक्रमण के लक्षण दिख रहा है। हालांकि यह बेहद माइल्ड (हल्का) है। बुखार, खांसी की सामान्य दवाओं से वे ठीक भी हो जा रहे हैं। अभी तक उनके पास एक बच्चा ऐसा आया था जिसको भर्ती करने की जरूरत पड़ी थी। वह बच्चा भी दूसरी समस्याओं से जूझ रहा था। इसकी वजह से बेहद कमजोर था।
दूसरी लहर से कम खतरनाक
रायपुर जिला अस्पताल में बाल रोग विशेषज्ञ और रायपुर आयुर्वेदिक कॉलेज परिसर में बनाए गए कोरोना प्रभावित बच्चों के अस्थायी अस्पताल के प्रभारी डॉ. निलय मोझारकर इसे पहली दो लहरों से बेहतर स्थिति बता रहे हैं। डॉ. निलय ने बताया, पहली लहर से बच्चे अप्रभावित रहे। दूसरी लहर में बच्चों के संक्रमित होने के केस आए थे। लेकिन अभी बच्चों में जिस तरह का संक्रमण मिल रहा है वह दूसरी लहर की अपेक्षा कम खतरनाक है। बहुत थोड़े से केस हैं। उसमें भी बेहद मामूली लक्षण है। वह घर पर ही सामान्य इलाज से ठीक भी हो जा रहा है।
अभी तक ऐसे किसी बच्चे को भर्ती कर इलाज करने की नौबत नहीं आई है। डॉ. निलय ने बताया, मंगलवार को एक बच्चे के निधन की सूचना मिली है, लेकिन मेरा मानना है कि केवल कोरोना संक्रमण की वजह से ऐसा नहीं हुआ होगा।
बच्चों में किस तरह के लक्षण
डॉ. अतुल जिंदल और डॉ. निलय मोझारकर ने बताया, तीसरी लहर में बच्चों को खांसी, बुखार, सिर दर्द, पेट दर्द, उल्टी और दस्त जैसे लक्षण दिख रहे हैं। खांसी, बुखार और दर्द तो वयस्कों में भी कॉमन है, लेकिन उल्टी और दस्त जैसे लक्षण केवल बच्चों में देखे गए हैं।
क्या है इसका इलाज
डॉ. अतुल जिंदल ने बताया, इस वायरस का अभी कोई इलाज नहीं है। लक्षण के आधार पर दवा दी जा रही है। यही उपचार है। दर्द-बुखार, खांसी, पेट दर्द, उल्टी और दस्त की सामान्य दवाएं दी जा रही हैं। इसी से बच्चे ठीक हो रहे हैं। स्थिति गंभीर होने पर अस्पताल में भर्ती कराया जा सकता है। यहां परिस्थितियों के मुताबिक इलाज का प्रोटोकॉल तय है।
अभी चुनौतियां क्या हैं
डॉ. अतुल जिंदल ने बताया, अभी तक अधिकतर बच्चों और वयस्कों में हल्के लक्षण ही दिख रहे हैं। लेकिन दूसरी शारीरिक-मानसिक समस्याओं से जूझ रहे बच्चों के लिए यह संक्रमण खतरनाक भी हो सकता है। कमजोर लंग्स वाले, सिकल सेल से पीड़ित, जन्म से कमजोर और दूसरी गंभीर बीमारियों से जूझ रहे बच्चों के लिए अभी रिस्क ज्यादा है।
बच्चों को कैसे बचाना है
बड़ों को क्या करना है
सरकारी स्तर पर यह तैयारी
कोरोना के संभावित खतरे से बच्चों को बचाने के लिए सरकार ने अपनी ओर से तैयारी की है। सभी जिलों में विशेष कोविड अस्पताल बनाए गए हैं। यहां बच्चों और नवजात शिशुओं के उपचार की व्यवस्था है। रायपुर के आयुर्वेदिक कॉलेज परिसर स्थित अस्थायी अस्पताल के शिशु वार्ड में 50 बेड की सुविधा है। इसमें 30 बेड सामान्य वार्ड में है। 10 क्रिटिकल केयर के लिए और 10 नवजात बच्चों के उपचार के लिए विशेष यूनिट में। फिलहाल यहां कोई बच्चा भर्ती नहीं है।
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