छत्तीसगढ़ में बढ़ते अपराध को देखते हुए यहां नार्को टेस्ट की सुविधा शुरू की गई है। अब पुलिस को इसके लिए दूसरे राज्यों के चक्कर नहीं लगाने पड़ेंगे। राज्य के गृह मंत्री ताम्रध्वज साहू ने विधानसभा में इसकी जानकारी दी। उन्होंने कहा कि बड़े अपराधों को सॉल्व करने के लिए आरोपियों का नार्को टेस्ट कराना पड़ता था, जिसके लिए छत्तीसगढ़ में सुविधा नहीं थी।
ताम्रध्वज साहू ने कहा कि दूसरे राज्यों में जाकर टेस्ट कराने के कारण जांच में देरी होती थी, लेकिन अब नार्को टेस्ट में छत्तीसगढ़ आत्मनिर्भर हो गया है। राज्य सरकार ने इसके लिए जरूरी औपचारिकताएं पूरी कर ली हैं। गृह विभाग और रायपुर एम्स के साथ मिलकर इसके लिए जरूरी मशीनें भी मंगा ली गई हैं।
इसके अलावा गृहमंत्री ताम्रध्वज साहू ने विधानसभा में अनुदान मांगों पर चर्चा करते हुए बताया कि छत्तीसगढ़ पुलिस अपराधियों पर लगाम लगाने के लिए लगातार नई तकनीकों का प्रयोग कर रही है। बढ़ते हुए साइबर अपराधों को कंट्रोल करने के लिए सभी पांच रेंज मुख्यालयों में साइबर थानों की स्थापना की जा रही है। जल्द अपराधों पर लगाम लगे, इसके लिए दुर्ग में फॉरेंसिक साइंस लेबोरेट्री और कॉलेज की स्थापना की जाएगी।
इसके बाद उन्होंने बताया कि वर्तमान में प्रदेश के 11 जिलों में डायल 112 की सुविधा है। अब इसमें 17 अन्य जिलों को भी शामिल कर लिया गया है। इस तरह से अब डायल 112 की सुविधा 28 जिलों में होगी।
इन मामलों में हुआ नार्को टेस्ट
1. डॉ. जीके सूर्यवंशी व उनकी पत्नी डॉ. ऊषा की मर्डर मिस्ट्री में आरोपी की तलाश के लिए संदिग्धों का नार्को टेस्ट किया गया। ये वारदात करीब 2017 की कवर्धा की है।
2. करीब 2 साल पहले अमलेश्वर के 4 लोगों के कत्ल खुड़मुड़ा हत्याकांड में आरोपियों तक पहुंचने के लिए पुलिस ने 11 लोगों के नार्को टेस्ट की अनुमति मांगी थी।
नार्को टेस्ट के बारे में विस्तार से जानिए
शातिर क्रिमिनल्स खुद को बचाने के लिए अक्सर झूठी कहानियां बनाते हैं। पुलिस को गुमराह करते हैं। इनसे सच उगलवाने के लिए नार्को टेस्ट किया जाता है। नार्को टेस्ट में साइकोएस्टिव दवा दी जाती है, जिसे ट्रुथ ड्रग भी कहते हैं। जैसे- सोडियम पेंटोथल, स्कोपोलामाइन और सोडियम अमाइटल। सोडियम पेंटोथल कम समय में तेजी से काम करने वाला एनेस्थेटिक ड्रग है। इसका इस्तेमाल सर्जरी के दौरान बेहोश करने में सबसे ज्यादा होता है।
ये केमिकल जैसे ही नसों में उतरता है, शख्स बेहोशी में चला जाता है। बेहोशी से जागने के बाद भी आरोपी आधी बेहोशी में ही रहता है। इस हालत में वो जानबूझकर कहानी नहीं गढ़ सकता, इसलिए सच बोलता है। नार्को टेस्ट में जो ड्रग दिया जाता है, वो बेहद खतरनाक होता है। जरा सी चूक से मौत भी हो सकती है या आरोपी कोमा में भी जा सकता है। यही वजह है कि नार्को टेस्ट से पहले आरोपी की मेडिकल जांच की जाती है।
अगर आरोपी को मनोवैज्ञानिक, ऑर्गन से जुड़ी या कैंसर जैसी कोई बड़ी बीमारी है, तो उसका नार्को टेस्ट नहीं किया जाता। नार्को टेस्ट अस्पताल में इसलिए करवाया जाता है, ताकि कुछ गड़बड़ होने पर इमरजेंसी की स्थिति में तत्काल इलाज किया जा सके। व्यक्ति की सेहत, उम्र और जेंडर के हिसाब से नार्को टेस्ट की दवाइयां दी जाती है।
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