भास्कर इंटरव्यू534 फिल्में... और अनुपम खेर की कहानी:पहली बार रिजेक्ट हुए तो महेश भट्ट को दिया था श्राप, NSD में झाड़ू भी लगाई;जानिए उनका सफर

रायपुर2 महीने पहलेलेखक: सुमन पांडेय
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अनुपम खेर का जन्म 7 मार्च 1955 को शिमला में हुआ था। इनके पिता पुष्कर नाथ एक कश्मीरी पंडित थे। - Dainik Bhaskar
अनुपम खेर का जन्म 7 मार्च 1955 को शिमला में हुआ था। इनके पिता पुष्कर नाथ एक कश्मीरी पंडित थे।

ऑल इंडिया स्टील कॉन्क्लेव में शामिल होने बॉलीवुड एक्टर अनुपम खेर रायपुर पहुंचे थे। इस दौरान उन्होंने दैनिक भास्कर से खास बातचीत की। कॉन्क्लेव में प्रदेश के उद्योगपतियों के बीच अपनी जिंदगी के मोटिवेशनल किस्से साझा किए। अनुपम खेर 534 फिल्मों में काम करने वाले एक्टर हैं। इस सफर से जुड़ी यादों को उन्होंने लोगों को बताकर उन्हें इंस्पायर किया। अपनी लाइफ के बुरे और मुश्किल दौर के बारे में खुलकर बात की।

कार्यक्रम में अनुपम खेर ने कुछ भी हो सकता है का पॉजिटिव मैसेज दिया।
कार्यक्रम में अनुपम खेर ने कुछ भी हो सकता है का पॉजिटिव मैसेज दिया।

जब पहली फिल्म के डायरेक्टर को दिया श्राप
अनुपम खेर की पहली फिल्म सारांश थी। उनके फिल्मी करियर में सबसे अहम यह फिल्म मानी जाती है। इस पहली फिल्म की शुरुआत में कुछ दिलचस्प घटनाएं घटी। करीब 6 महीने तक फिल्म के किरदार की तैयारी अनुपम कर रहे थे। अचानक अनुपम खेर को इस फिल्म से हटा दिया गया। उनकी जगह संजीव कुमार को यह रोल दे दिया गया। अनुपम खेर ने बताया कि प्रोडक्शन कंपनी ने सोचा कि नए लड़के पर रिस्क नहीं लिया जा सकता।

उद्योगपतियों को मोबाइल से दूर रहकर जीवन को जीने का संदेश भी खेर ने दिया।
उद्योगपतियों को मोबाइल से दूर रहकर जीवन को जीने का संदेश भी खेर ने दिया।

फिल्म में एक और बुजुर्ग का किरदार था, निर्देशक महेश भट्ट ने वह रोल खेर को दे दिया। इस बात से दुखी होकर अनुपम खेर ने मुंबई शहर छोड़ने का फैसला कर लिया। टैक्सी में सामान रखा और वापस लौटते हुए महेश भट्ट से मिलने पहुंचा। और फिर उन्हें खिड़की के नीचे खड़ी टैक्सी दिखाकर बताया कि, इस टैक्सी में मेरा सामान है। और मैं शहर छोड़कर हमेशा के लिए जा रहा हूं। आप फ्रॉड हैं आप चीटर हैं आप पाखंडी हैं मैं आपको श्राप देता हूं। मेरा गुस्सा देखकर महेश भट्ट ने राजश्री प्रोडक्शन वालों को फोन किया और कह दिया कि अब वो रोल अनुपम खेर ही करेगा।

अनुपम खेर ने बताया कि बाल न होने की वजह से कुछ वक्त उन्हें काम ही नहीं मिला था।
अनुपम खेर ने बताया कि बाल न होने की वजह से कुछ वक्त उन्हें काम ही नहीं मिला था।

NSD के दिनों में झाड़ू भी लगाई
रंगमंच के सफर को याद करते हुए अनुपम खेर ने बताया कि,- नेशनल स्कूल ऑफ ड्रामा में पहले साल तो मुझसे झाड़ू लगवाया। उससे अपनी औकात का अहसास होता है। पहले साल झाड़ू लगवाओ एक लाइन दो और बुलवाओ। तब मैं और सतीश कौशिक एक लैला मजनू के नाटक में दरबान बने हुए थे। हमें बोलने को कुछ मिला नहीं था। तो खड़े-खड़े मैं अपना मुंह टेढ़ा कर लिया करता था। और सतीश अपनी एक आंख बंद कर लिया करता था, ताकि लगे कि हम कुछ एक्टिंग तो कर रहे हैं। हमें गाने की एक लाइन दी गई जब उसे गाया तो मेरा तेरा मुंह सीधा हो गया। और सतीश की आंख खुल गई इस तरह से हमारी शुरुआत हुई।

इस तरह डिप्रेशन से दूर होगा युवा
अनुपम खेर ने देश के युवाओं के मेंटल हेल्थ पर कहा- मेरे ख्याल से पेरेंट्स को वक्त गुजारना चाहिए। यूथ को पढ़ना चाहिए। मैंने बहुत किताबे पढ़ी। पढ़ने से आपकी इंद्रियां जागती हैं। बाहर निकल के बैठना चाहिए। थोड़ी देर के लिए डी टॉक्स भी करना चाहिए। सोशल मीडिया और मोबाइल फोन से। सप्ताह में 2 बार परिवार के साथ खाना खाना चाहिए। बातचीत करनी चाहिए।

टॉक शो में अनुपम खेर ने ये भी कहा कि बिना मेहनत के किस्मत भी काम नहीं आती।
टॉक शो में अनुपम खेर ने ये भी कहा कि बिना मेहनत के किस्मत भी काम नहीं आती।

भीगा हुआ आदमी बारिश से नहीं डरता
अनुपम खेर स्ट्रगल के दिनों के बारे में बताते हुए बोले- 3 साल तक मैं काम मांगता रहा। 37 रुपए लेकर मुंबई आया था। 27 दिन रेलवे प्लेटफॉम में बिताया मैंने। मुझे बहुत बेइज्जती सी फीलिंग आती थी। लगता था ये कोई जीवन है। मैंने अपने दादा को खत लिखा- मैं यहां नहीं रह सकता। कहीं और चला जाता हूं। यहां कोई डिग्निटी नहीं है। मैं गोल्ड मेडलिस्ट था NSD का। दादा ने मुझे खत लिखा तेरे मां पापा ने बहुत कुछ किया है। जेवर बेचे हैं। तुमने भी बहुत कुछ किया। एक बात याद रख भीगा हुआ आदमी बारिश से नहीं डरता। यानी इसमें मैसेज था कि जो समस्या में जी रहा है उसे क्या समस्या परेशान करेगी। अपना काम बेहतर करो तो कुछ भी हो सकता है।

स्कूल में बेंच पर बैठने नहीं दिया था लड़के ने
स्कूल के जमाने में मेरा दोस्त हुआ करता था सहगल.. वो पढ़ाई में अच्छा था, और मैं पढ़ाई में ठीक नहीं था, मैंने उससे पूछा मैं तेरे साथ बेंच पर बैठ जाऊं। वो बोला तू बहुत बुरा है पढ़ाई में। मैं बोला- अपना नाम हिस्ट्री में चाहता है तो मुझे बैठने दे। मैं स्कूल की बेंच पर राउंडर से लिखता था यहां अनुपम खेर बैठा था। छोटे शहर में लोग सपने बहुत देखते हैं। मैं भी देखता था। कि कभी कुछ बन जाउंगा।

पैदल ही स्कूल जाता था। मेरा बचपन वैसे ही गुजरा है जैसे गुजरना चाहिए।
आजकल का दौर बदल गया है। आज वैसा नहीं हैं। लोग मिलते हैं तो कहते हैं 3 साल की बच्ची है यूट्यूब पर। खेर ने कहा, बच्चों को बच्चे की तरह रहने दो। गूगल केवल सूचना देता है नॉलेज नहीं। जिंदगी को जीकर जो नॉलेज मिलता है। वो गूगल नहीं दे सकता।

किराये के मकान में रहते हैं खेर
अनुपम खेर ने बताया- मैं किराए के मकान में रहता हूं। 7 साल पहले डिसाइड किया कि घर खरीदना ही नहीं है। एक दिन मां से पूछा क्या चाहिए। मां बोली पूरी जिंदगी शिमला में किराए के मकान में रहे हैं। मुझे वहां घर चाहिए। मैं मकान मालकिन बनना चाहती हूं। तो उनके लिए वहां घर लिया। घर बेचने वाले ने देखा कि मां के लिए ले रहा हूं तो 50 प्रतिशत डिस्काउंट में घर दिया। मैं किराए के मकान में आजाद होकर रहता हूं।

बंद घड़ी दो बार सही वक्त बताती है
अनुपम खेर ने बताया कि मैं आशावादी आदमी हूं। मैं हर हालात में ये देखने का प्रयास करता हूं कि अच्छा क्या है। आपके घर में कोई घड़ी बंद पड़ी है तो वो भी दिन में दो बार सही वक्त बताती है। इस तरह से जीवन को मैंने देखा है। हर इंसान स्पेशल है। आपका फिंगर प्रिंट दूसरे से नहीं मिलता है। हम सब लोग यूनिक हैं तो कुछ यूनिक क्यों न करें।