छत्तीसढ़ के गरियाबंद जिले में किडनी की रहस्यमय बीमारी से जूझ रहे लोगों तक आयुर्वेद की मदद पहुंची है। शासकीय आयुर्वेद महाविद्यालय रायपुर के विशेषज्ञों और गरियाबंद जिले के आयुर्वेद विशेषज्ञों ने सुपेबेड़ा स्थित उप स्वास्थ्य केन्द्र में एक शिविर लगाया। इस दौरान सुपेबेड़ा और आसपास के गांवों के किडनी रोग से पीड़ित मरीजों की जांच की। उन्हें दवाएं दी गई।
आयुर्वेद चिकित्सा विशेषज्ञ डॉ. रंजीत कुमार दास, डॉ. एस.डी. खिचारिया, डॉ. मनीष पटेल और डॉ. राजकुमार कन्नौजे ने शिविर में मरीजों का इलाज किया। सुपेबेड़ा और आसपास के गांवों के किडनी रोग से पीड़ितों के उपचार के लिए अब हर बुधवार को सुपेबेड़ा में शिविर लगाया जाएगा। शिविर में पंचकर्म विशेषज्ञ चिकित्सक, आयुर्वेद चिकित्सक एवं फार्मासिस्ट भी मौजूद रहेंगे। शिविर में मरीजों का त्वरित उपचार कर निःशुल्क दवाईयां दी जाएंगी। आवश्यकता होने पर उच्च स्तरीय उपचार के लिए मरीजों को रिफर भी किया जाएगा।
सुपेबेड़ा में 2-3 अप्रैल की रात 46 वर्षीय पुरंदर आडिल की मौत हो गई थी। पुरंदर किडनी की गंभीर बीमारी से पीड़ित थे। स्थिति बिगड़ने पर रायपुर मेडिकल कॉलेज के डॉ. भीमराव आम्बेडकर अस्पताल ने उन्हें एम्स रेफर कर दिया था। परिजन उन्हें घर ले गए, जहां उनकी मौत हो गई। सरकार रिकॉर्ड में पिछले एक दशक में किडनी की बीमारी से सुपेबेड़ा गांव में यह 78वीं मौत थी।
किडनी की क्षमता बढ़ाने के उपाय भी बताए
आयुर्वेद चिकित्सा विशेषज्ञों ने शिविर में ग्रामीणों को बताया कि किडनी को स्वस्थ रखने और कार्यक्षमता बढ़ाने के लिए आयुर्वेद वनस्पतीय गोक्षुर, पुनर्नवा, आंवला, मुलेठी, गुग्गुल आदि का प्रयोग करना चाहिए। रोजाना के आहार में आंवला, जौ, मूंग आदि का सेवन करने से किडनी की बीमारियों से बचा जा सकता है। विशेषज्ञों ने भोजन में अत्यधिक मिर्च-मसाला, इमली आदि खट्टे पदार्थों का अधिक व लगातार सेवन नहीं करने की सलाह दी।
साफ पानी अभी भी दूर की बात
रायपुर एम्स सहित कई संस्थानों के विशेषज्ञों ने अपनी जांच के बाद किडनी की बीमारी के लिए सुपेबेड़ा के भूमिगत जल को जिम्मेदार ठहराया है। बताया जा रहा है, वहां के पानी में भारी धातुओं की अधिकता है। ऑर्सेनिक उसमें प्रमुख है। इसकी वजह से क्रोनिक किडनी डिजीज हो रहा है। 2019 में राज्य सरकार ने वहां तेल नदी का पानी पहुंचाने की घोषणा की। फिल्टर प्लांट के लिए 14 करोड़ रुपए मंजूर किए गए, लेकिन वह योजना शुरू नहीं हो पाई। 78वीं मौत के बाद भी लोक स्वास्थ्य यांत्रिकी विभाग का अमला हरकत में नहीं आया है।
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