छत्तीसगढ़ में अन्य पिछड़ा वर्ग-OBC और सामान्य वर्ग के गरीबों की गणना का काम लगभग पूरा हो चुका है। इस बीच सूचना है कि OBC वर्गों की गिनती का काम उम्मीद के मुताबिक आगे नहीं बढ़ पाया है। कई शहरों में तो कोई नया पंजीयन ही नहीं हुआ है। सर्वे का काम कर रहे क्वांटिफायबल डाटा आयोग ने इसके लिए नगरीय निकायों की ढिलाई को जिम्मेदार ठहराया है।
क्वांटिफायबल डाटा आयोग के सचिव बी.सी. सचिव ने पिछले दिनों नगरीय प्रशासन विभाग को एक पत्र लिखा था। इसमें कहा गया है कि आयोग की समीक्षा में यह सामने आया है कि नगरीय क्षेत्रों में सर्वे की प्रगति बहुत कमजोर है। अनेक नगरीय निकायों में मॉप-अप-राउंड के तहत नये पंजीयन की स्थिति शून्य है। क्वांटिफायबल डाटा आयोग की इस चिट्ठी के बाद नगरीय प्रशासन विभाग ने सभी नगर आयुक्तों, नगर पालिका अधिकारियों को पत्र लिखा है। इसमें OBC और सामान्य वर्ग के गरीबों के सर्वे के काम को सर्वोच्च प्राथमिकता देने का निर्देश दिया गया है। क्वांटिफायबल डाटा आयोग का कार्यकाल सितम्बर में ही खत्म हो गया था। बाद में सरकार ने इसका कार्यकाल 31 अक्टूबर तक बढ़ा दिया। उसके बाद फिर से पंजीयन का पोर्टल खोल दिया गया।
दरअसल छत्तीसगढ़ में OBC की आबादी सामान्य रूप से 52% मानी जाती है। बताया जा रहा है, पिछले महीने तक पूरी आबादी में एक करोड़ 20 लाख के आसपास लोगों का ही डेटा जुटाया जा सका है। जो आंकड़े जुटाए गए हैं उसके मुताबिक यह आबादी वास्तविक रूप से केवल 41% हो रही है। वहीं आर्थिक रूप से कमजोर सामान्य वर्ग की आबादी 2 से 3% के बीच है। दुर्ग जिले के ग्रामीण क्षेत्रों में सर्वाधिक 72% आबादी OBC की है। दुर्ग के शहरी क्षेत्रों में OBC की आबादी 40% आ रही है। बेमेतरा जिले के ग्रामीण क्षेत्रों में 62% आबादी OBC की है। वहीं रायपुर के ग्रामीण क्षेत्रों में भी OBC की आबादी 61% आ रही है। प्रदेश के अनुसूचित क्षेत्रों में इनकी आबादी 30.35% ही बताई जा रही है।
आरक्षण बचाने की कवायद में शुरू हुआ था सर्वेक्षण
राज्य सरकार ने 2019 में अन्य पिछड़ा वर्ग के आरक्षण को 14% से बढ़ाकर 27% कर दिया था। वहीं केंद्र सरकार के कानून के मुताबिक आर्थिक रूप से कमजोर सामान्य वर्ग के लोगों को भी 10% आरक्षण दे दिया था। इसकी वजह से कुल आरक्षण 50% निर्धारित सीमा पार कर 82% तक पहुंच गया। प्रभावित वर्गों में कुछ लोगों ने उच्च न्यायालय में इसे चुनौती दी। उच्च न्यायालय ने इस पर रोक लगा दिया। सरकार से आरक्षण बढ़ाने के आधार पर अधिकृत आंकड़ा मांगा। इसी के बाद राज्य सरकार ने क्वांटिफायबल डाटा आयोग का गठन किया।
अब आरक्षण कानून को ही कह दिया गया असंवैधानिक
पिछले महीने ही उच्च न्यायालय ने 2012 से चल रहे एक मुकदमें में छत्तीसगढ़ में 58% आरक्षण को असंवैधानिक बताकर रद्द कर दिया। उसके बाद से छत्तीसगढ़ की राजनीति में भूचाल आया हुआ है। सरकार ने अपील में जाने की बात कही है। लेकिन उसके लिए वह क्वांटिफायबल डाटा आयोग के आंकड़े चाहती है ताकि अदालत में बताने के लिए उसके पास सभी वर्गों की संख्या का वैज्ञानिक आधार हो। राज्य सरकार इस आंकड़े को आधार बनाकर नया विधेयक लाने की भी तैयारी में है।
अगर आप छूट गए हैं तो इस लिंक से पंजीयन
छत्तीसगढ़ क्वांटिफायबल डाटा आयोग ने अन्य पिछड़ा वर्ग एवं आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों के सर्वे के लिए नया पंजीयन लिंक https://cgqdc.in/cgqdc-user-registration जारी किया है। इन वर्गो के जिन व्यक्तियों ने अब तक पंजीयन नहीं कराया है या जो छूट गए हैं, वे इस लिंक पर अपना पंजीयन खुद ही कर सकते हैं।
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