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- Political Rhetoric Intensified In Chhattisgarh: Congress Said, Without Returning The Bill, The Governor's Question To The Government Is Not Appropriate, BJP Said Reservation Ended Because Of Congress
आरक्षण पर सरकार से सवाल पर बवाल:कांग्रेस बोली-विधेयक लौटाए बिना राज्यपाल के सवाल उचित नहीं, BJP ने कहा-कांग्रेस की वजह से खत्म हुआ आरक्षण
आरक्षण को लेकर कांग्रेस-बीजेपी में वार पलटवार भी जारी है।
छत्तीसगढ़ में आरक्षण विधेयक को लेकर राज्यपाल ने सरकार ने 10 सवाल पूछे हैं। इसकी वजह से आरक्षण कानून लागू होने की संभावना कम होती जा रही है। इन हालात में राजनीतिक बयानबाजी तेज होने लगी है। कांग्रेस ने कहा है कि विधेयकों को लौटाए बिना राज्यपाल का सरकार से 10 सवाल पूछना उचित नहीं है। वहीं भाजपा का कहना है कि यह स्थिति कांग्रेस और उसके सहयोगियों की वजह से ही बनी है।
प्रदेश कांग्रेस संचार विभाग के अध्यक्ष सुशील आनंद शुक्ला ने गुरुवार को कहा, आरक्षण संशोधन विधेयक विधानसभा ने सर्वसम्मति से पारित कर राजभवन भेजा है। राज्यपाल को तत्काल इसमें हस्ताक्षर करना चाहिए था। जो 10 सवाल उन्होंने सरकार से पूछे थे यह विधेयक के साथ भेजना था। नियमत: राजभवन उस विधेयक में न एक शब्द जोड़ सकता है और न एक शब्द भी कम कर सकता है। ऐसे में जो भी संशोधन करना है वह विधानसभा को करना है। अगर वह विधेयक राज्य सरकार के पास आता तो वह उनकी शंकाओं का निराकरण करती।
सुशील आनंद शुक्ला
शुक्ला ने कहा, जो 10 सवाल किये गये हैं, उसमें सीधे-सीधे राजनीति झलक रही है। भाजपा नेता जिस तरह के बयान दे रहे हैं राजभवन उसी तरह के सवाल सरकार से कर रहा है, जो उचित नहीं है। आरक्षण संशोधन विधेयक सर्व समाज के हितों के लिए बनाया गया है। इधर भाजपा विधायक दल के पूर्व नेता धरमलाल कौशिक का कहना है, भाजपा को दबाव बनाने की जरूरत नहीं है। मुख्यमंत्री की वजह से ही लोगों का आरक्षण छीना गया है। जब भाजपा की सरकार थी तो 32% आरक्षण हम लोगों ने पारित किया था। उसका लाभ भी मिल रहा था। मुख्यमंत्री के सहयोगी लोग ही उसके खिलाफ कोर्ट गये। जब कोर्ट से आरक्षण निरस्त हो गया तो उन सहयोगियों को सम्मानित करने का काम भी हुआ।
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धरमलाल कौशिक।
कांग्रेस बोली, भाजपा नेता अब राज्यपाल से क्यों नहीं मांग रहे आरक्षण
प्रदेश कांग्रेस प्रवक्ता धनंजय सिंह ठाकुर ने कहा, न्यायालय का फैसला आने के बाद भाजपा ने आरक्षण बहाली को लेकर राजभवन तक पैदल मार्च किया। अब जब आरक्षण विधेयकों पर हस्ताक्षर नहीं होने के चलते बहाली नहीं हो पा रही है तो भाजपा के वही नेता राजभवन जाने से क्यों डर रहे हैं। आखिर भाजपा नेताओं को आरक्षण विधेयक पर हस्ताक्षर होने से डर क्यों लग रहा है। ठाकुर ने सवाल उठाया कि क्या भाजपा के केंद्रीय नेतृत्व ने प्रदेश के भाजपा नेताओं को इस आरक्षण विधेयक के खिलाफ खड़ा होने का फरमान जारी किया है?
राज्यपाल ने बुधवार को सरकार से पूछे थे 10 सवाल
राज्यपाल ने 13 दिनों बाद भी आरक्षण संशोधन विधेयकों पर हस्ताक्षर नहीं किए हैं। वहीं विधेयक को फिर से विचार करने के लिए भी सरकार को नहीं लौटाया। बुधवार को राजभवन ने राज्य सरकार को 10 सवालों की एक फेहरिस्त भेजी। इसमें अनुसूचित जाति और जनजाति को सामाजिक, आर्थिक और शैक्षणिक दृष्टि से पिछड़ा मानने का आधार पूछा गया है। इसके जरिये राजभवन ने कुछ कानूनी सवाल भी उठाये हैं। इसके बाद से विधेयकों के कानून बनने की संभावना टलती जा रही है।
आरक्षण मामले में अब तक क्या-क्या हुआ है
- 19 सितम्बर को गुरु घासीदास साहित्य एवं संस्कृति अकादमी मामले में उच्च न्यायालय का फैसला आया। इसमें छत्तीसगढ़ में आरक्षण पूरी तरह खत्म हो चुका है।
- शुरुआत में कहा गया कि इसका असर यह हुआ कि प्रदेश में 2012 से पहले का आरक्षण रोस्टर लागू हो गया है। यानी एससी को 16%, एसटी को 20% और अन्य पिछड़ा वर्ग को 14% आरक्षण मिलेगा।
- सामान्य प्रशासन विभाग ने विधि विभाग और एडवोकेट जनरल के कार्यालय से इसपर राय मांगी। लेकिन दोनों कार्यालयों ने स्थिति स्पष्ट नहीं की।
- सामान्य प्रशासन विभाग ने सूचना के अधिकार के तहत बताया कि हाईकोर्ट के फैसले के बाद 29 सितम्बर की स्थिति में प्रदेश में कोई आरक्षण रोस्टर क्रियाशील नहीं है।
- आदिवासी समाज ने प्रदेश भर में आंदोलन शुरू किए। राज्यपाल और मुख्यमंत्री को मांगपत्र सौंपा गया। सर्व आदिवासी समाज की बैठकों में सरकार के चार-चार मंत्री और आदिवासी विधायक शामिल हुए।
- लोक सेवा आयोग और व्यापमं ने आरक्षण नहीं होने की वजह से भर्ती परीक्षाएं टाल दीं। जिन पदों के लिए परीक्षा हो चुकी थीं, उनका परिणाम रोक दिया गया। बाद में नये विज्ञापन निकले तो उनमें आरक्षण रोस्टर नहीं दिया गया।
- सरकार ने 21 अक्टूबर को उच्चतम न्यायालय में विशेष अनुमति याचिका दायर कर उच्च न्यायालय का फैसला लागू होने से रोकने की मांग की। शपथपत्र पर लिखकर दिया गया है कि उच्च न्यायालय के फैसले के बाद प्रदेश में भर्तियां रुक गई हैं।
- राज्यपाल अनुसूईया उइके ने मुख्यमंत्री को पत्र लिखकर हालात पर चिंता जताई। सुझाव दिया कि सरकार आरक्षण बढ़ाने के लिए अध्यादेश लाए अथवा विधानसभा का विशेष सत्र बुलाए।
- सरकार ने विधेयक लाने का फैसला किया। एक-दो दिसम्बर को विधानसभा सत्र बुलाने का प्रस्ताव राजभवन भेजा गया, उसी दिन राज्यपाल ने उसकी अनुमति दे दी और अगले दिन अधिसूचना जारी हो गई।
- 24 नवम्बर को मुख्यमंत्री भूपेश बघेल की अध्यक्षता में हुई कैबिनेट की बैठक में आरक्षण संशोधन विधेयकों के प्रस्ताव के हरी झंडी मिल गई।
- 2 दिसम्बर को तीखी बहस के बाद विधानसभा ने सर्वसम्मति से आरक्षण संशोधन विधेयकों को पारित कर दिया। इसमें एससी को 13%, एसटी को 32%, ओबीसी को 27% और सामान्य वर्ग के गरीबों को 4% का आरक्षण दिया गया। जिला कॉडर की भर्तियों में जनसंख्या के अनुपात में आरक्षण तय हुआ। ओबीसी के लिए 27% और सामान्य वर्ग के गरीबों के लिए 4% की अधिकतम सीमा तय हुई।
- 2 दिसम्बर की रात को ही पांच मंत्री विधेयकों को लेकर राज्यपाल से मिलने पहुंचे। यहां राज्यपाल ने जल्दी ही विधेयकों पर हस्ताक्षर का आश्वासन दिया। अगले दिन उन्होंने सोमवार तक हस्ताक्षर कर देने की बात कही। उसके बाद से विधेयकों पर हस्ताक्षर की बात टलती रही।
- 14 दिसम्बर को राजभवन ने सरकार को पत्र लिखकर 10 सवाल पूछे।
राजभवन ने आरक्षण विधेयक नहीं लौटाया:सरकार से 10 सवाल पूछे, इसमें SC-ST को सामाजिक, आर्थिक और शैक्षणिक तौर पर पिछड़ा बताने का आधार भी