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  • Raipur To Pay Tribute To Brahmalin Shankaracharya Swaroopanand Saraswati: Organizing On September 17 In Collectorate's Town Hall, Dharmacharyas, Chief Minister And Ministers Will Also Attend

ब्रह्मलीन शंकराचार्य को श्रद्धांजलि देगा रायपुर:कलेक्ट्रेट के टाउनहॉल में 17 सितंबर को आयोजन, धर्माचार्य, मुख्यमंत्री समेत कई लोग होंगे शामिल

रायपुर9 महीने पहले
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रायपुर शहर ब्रह्मलीन जगद्गुरु शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती को श्रद्धा सुमन अर्पित करने की तैयारी में है। प्रतिष्ठित दूधाधारी मठ के महंत और राज्य गौ सेवा आयोग के अध्यक्ष रामसुंदर दास श्रद्धांजलि सभा आयोजित कर रहे हैं। यह आयोजन 17 सितम्बर को शाम 6 बजे से रायपुर कलेक्ट्रेट परिसर स्थित टाउन हॉल में होगा।

इस आयोजन में प्रदेश के सभी प्रमुख मठों-मंदिरों के महंत-धर्माचार्य, मुख्यमंत्री भूपेश बघेल, कृषि मंत्री रविंद्र चौबे सहित तमाम नेता, सामाजिक-धार्मिक संगठनों से जुड़े लोग और आम जनता शामिल होने वाली है। हिंदू धर्म में सबसे प्रतिष्ठित ज्योर्तिमठ बद्रीनाथ और शारदा पीठ द्वारका के शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती का 11 सितम्बर को 98 वर्ष की आयु में निधन हो गया था। उन्होंने नरसिंहपुर के झोतेश्वर स्थित परमहंसी गंगा आश्रम में अंतिम सांस ली। वे लंबे समय से अस्वस्थ चल रहे थे। स्वामी स्वरूपानंदजी आजादी की लड़ाई में जेल भी गए थे। उन्होंने राम मंदिर निर्माण के लिए लंबी कानूनी लड़ाई भी लड़ी थी। छत्तीसगढ़ प्रांत से भी उनका गहरा नाता था। रायपुर के बोरियाकला स्थित उनके आश्रम में माता राजराजेश्वरी की स्फटिक की दुर्लभ प्रतिमा स्थापित है। इस प्रतिमा को उन्होंने विशेष रूप से नेपाल से स्फटिक की शिला मंगाकर तैयार करवाया था। अविभाजित दुर्ग जिले के गांवों में उन्होंने कई पदयात्राएं की थीं। प्रदेश के प्रत्येक क्षेत्र में उनके दीक्षित किए हुए शिष्य हैं। अस्वस्थ हाेने से पहले छत्तीसगढ़ के विभिन्न क्षेत्रों में उनका आना-जाना भी लगा रहता था।

युवावस्था में ऐसे दिखते थे स्वामी स्वरूपानंद।
युवावस्था में ऐसे दिखते थे स्वामी स्वरूपानंद।

मध्य प्रदेश के सिवनी जिले में हुआ था जन्म

शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती का जन्म 2 सितंबर 1924 को मध्यप्रदेश के सिवनी जिले में जबलपुर के पास दिघोरी गांव में हुआ था। उनके पिता धनपति उपाध्याय और मां का नाम गिरिजा देवी था। माता-पिता ने इनका नाम पोथीराम उपाध्याय रखा। मात्र 9 साल की उम्र में उन्होंने घर छोड़ कर तीर्थ यात्राएं शुरू कीं। इसी दौरान वह काशी पहुंचे और वहां ब्रह्मलीन स्वामी करपात्री महाराज से वेद-वेदांग और शास्त्रों की शिक्षा ली। देश में अंग्रेजों से मुक्ति की लड़ाई चल रही थी तो वे भी आंदोलन में कूद पड़े। 19 साल की उम्र में वह क्रांतिकारी साधु के रूप में प्रसिद्ध हुए। आंदोलनों की वजह से उन्होंने वाराणसी की जेल में 9 महीने और मध्यप्रदेश की जेल में 6 महीने की सजा भी काटी।

मुख्यमंत्री भूपेश बघेल भी शंकराचार्य स्वरूपानंद जी के भक्तों में शामिल हैं।
मुख्यमंत्री भूपेश बघेल भी शंकराचार्य स्वरूपानंद जी के भक्तों में शामिल हैं।

1981 में बनाए गए थे शंकराचार्य

स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती अपने गुरु करपात्री महाराज के राजनीतिक दल, राम राज्य परिषद के अध्यक्ष भी रहे। 1950 में उन्होंने शारदा पीठ के तत्कालीन शंकराचार्य स्वामी ब्रह्मानन्द सरस्वती से दण्ड संन्यास की दीक्षा ली। उसके बाद उनका नाम स्वामी स्वरूपानन्द सरस्वती हो गया। 1981 में उन्होंने शंकराचार्य का पद संभाला। उसके बाद से वे धार्मिक-आध्यात्मिक मामलों में लगातार सक्रिय रहे। समाज और राजनीति को भी उन्होंने गहरे तक प्रभावित किया।