• Hindi News
  • Local
  • Chhattisgarh
  • Raipur
  • Raj Bhavan Did Not Return The Reservation Bill: Asked 10 Questions From The State Government, Including The Basis Of Calling SC ST Socially, Economically And Educationally Backward

राजभवन ने आरक्षण विधेयक नहीं लौटाया:सरकार से 10 सवाल पूछे, इसमें SC-ST को सामाजिक, आर्थिक और शैक्षणिक तौर पर पिछड़ा बताने का आधार भी

रायपुर6 महीने पहले
  • कॉपी लिंक

छत्तीसगढ़ में आरक्षण विधेयकों पर सत्ता प्रतिष्ठानों के टकराव का मंच पूरी तरह तैयार है। राज्यपाल ने 12 दिनों बाद भी आरक्षण संशोधन विधेयकों पर हस्ताक्षर नहीं किए हैं। वहीं विधेयक को फिर से विचार करने के लिए भी सरकार को नहीं लौटाया। अब राजभवन ने राज्य सरकार को 10 सवालों की एक फेहरिस्त भेजी है। इसमें अनुसूचित जाति और जनजाति को सामाजिक, आर्थिक और शैक्षणिक दृष्टि से पिछड़ा मानने का आधार पूछा गया है। इसके जरिये राजभवन ने कुछ कानूनी सवाल भी उठाये हैं।

उच्च पदस्थ सूत्रों से मिली जानकारी के मुताबिक राजभवन ने पूछा है कि क्या इस विधेयक को पारित करने से पहले अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति का कोई डाटा जुटाया गया था? अगर जुटाया गया था तो उसका विवरण। 1992 में आये इंद्रा साहनी बनाम भारत संघ मामले में उच्चतम न्यायालय ने आरक्षित वर्गों के लिए आरक्षण 50% से अधिक करने के लिए विशेष एवं बाध्यकारी परिस्थितियों की शर्त लगाई थी। उस विशेष और बाध्यकारी परिस्थितियों से संबंधित विवरण क्या है।

उच्च न्यायालय में चल रहे मामले में सरकार ने आठ सारणी दी थी। उनको देखने के बाद न्यायालय का कहना था, ऐसा कोई विशेष प्रकरण निर्मित नहीं किया गया है जिससे आरक्षण की सीमा को 50% से अधिक किया जाए। ऐसे में अब राज्य के सामने ऐसी क्या परिस्थिति पैदा हो गई जिससे आरक्षण की सीमा 50% से अधिक की जा रही है। राजभवन ने यह भी पूछा है कि सरकार यह भी बताये कि प्रदेश के अनुसूचित जाति और जनजाति के लोग किस प्रकार से समाज के सामाजिक, आर्थिक और शैक्षणिक रूप से पिछड़ों की श्रेणी में आते हैं।

राजभवन के इस कदम से आरक्षण विधेयक पूरी तरह फंस गया है।
राजभवन के इस कदम से आरक्षण विधेयक पूरी तरह फंस गया है।

राजभवन ने जानना चाहा है कि आरक्षण पर चर्चा के दौरान मंत्रिमंडल के सामने तमिलनाडु, कर्नाटक और महाराष्ट्र में 50% से अधिक आरक्षण का उदाहरण रखा गया था। उन तीनों राज्यों ने तो आरक्षण बढ़ाने से पहले आयोग का गठन कर उसका परीक्षण कराया था। छत्तीसगढ़ ने भी ऐसी किसी कमेटी अथवा आयोग का गठन किया हो तो उसकी रिपोर्ट पेश करे। राजभवन ने क्वांटिफायबल डाटा आयोग की रिपोर्ट भी मांगी है।

वहीं विधेयक के लिए विधि विभाग का सरकार को मिली सलाह की जानकारी मांगी गई है। राजभवन में अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और अन्य पिछड़ा वर्ग को आरक्षण देने के लिए बने कानून में सामान्य वर्ग के गरीबों के आरक्षण की व्यवस्था पर भी सवाल उठाए हैं। तर्क है कि उसके लिए अलग विधेयक पारित किया जाना चाहिए था। राजभवन ने यह भी जानना चाहा है कि अनुसूचित जाति और जनजाति के व्यक्ति सरकारी सेवाओं में चयनित क्यों नहीं हो पा रहे हैं।

सरकार की भर्तियों में अनुसूचित जाति, जनजाति के कम होने का आधार भी मांगा गया है।
सरकार की भर्तियों में अनुसूचित जाति, जनजाति के कम होने का आधार भी मांगा गया है।

बड़ा सवाल प्रशासन की दक्षता का भी उठाया

राजभवन ने सरकार से जो जानना चाहा है उसमें बड़ा सवाल प्रशासन की दक्षता का भी है। सरकार ने आरक्षण का आधार अनुसूचित जाति और जनजाति के दावों को बताया है। वहीं संविधान का अनुच्छेद 335 कहता है कि सरकारी सेवाओं में नियुक्तियां करते समय अनुसूचित जाति और जनजाति समाज के दावों का प्रशासन की दक्षता बनाये रखने की संगति के अनुसार ध्यान रखा जाएगा। अब राजभवन ने पूछा है कि सरकार यह बताये कि इतना आरक्षण लागू करने से प्रशासन की दक्षता पर क्या असर पड़ेगा इसका कहीं कोई सर्वे कराया गया है?

राज्यपाल के इस कदम पर भी विवाद की छाया

राज्यपाल ने सरकार से अब जो सवाल पूछे हैं उनपर विवाद गहरा सकता है। संवैधानिक विधि के विशेषज्ञ बी.के. मनीष का कहना है, राज्यपाल द्वारा मांगी गई जानकारी अभी की परिस्थितियों में उनके क्षेत्राधिकार के बाहर है। राज्यपाल विधेयकों के पारित होने से पूर्व किसी भी चरण पर यह जानकारी मांग सकती थीं। अथवा आशंका की अभिव्यक्ति शासन से कर सकती थीं। विधेयक के पारित होने के बाद राज्यपाल को उसके बारे में जांच करने और उसके बारे में जानकारी एकत्रित करने का अधिकार तभी प्राप्त हो सकता है, जबकि वह अनुच्छेद 200 के तहत पहले यह घोषणा करें कि वे विधेयकों पर अनुमति नहीं दे रही हैं।

तो क्या फंस गये आरक्षण विधेयक?

राजभवन के इस रुख से सवाल खड़ा हो गया है कि क्या छत्तीसगढ़ में आरक्षण विधेयक फंस गये है? विधानसभा के पूर्व प्रमुख सचिव देवेंद्र वर्मा का कहना है कि विधेयक शुरू से ही फंसे हुए हैं। उनका कहना है कि आरक्षण में अधिकतम सीमा 50%का निर्धारण उच्चतम न्यायालय ने इंदिरा साहनी(मंडल कमीशन)केस में किया है। इससे पहले महाराष्ट्र में आरक्षण की सीमा 50% से अधिक करने पर महाराष्ट्र के कानून को उच्चतम न्यायालय निरस्त कर चुका है। अभी भी तमिलनाडु, हरियाणा और कर्नाटक की 50% की सीमा को परीक्षण करने सम्बन्धी याचिकाएं उच्चतम न्यायालय में लम्बित हैं।

ऐसे में राज्यपाल आसानी से विधेयकों पर हस्ताक्षर नहीं करने वालीं। संविधान का अनुच्छेद 200 के तहत राज्यपाल के सामने प्रस्तुत विधेयक पर विवेकाधिकार है कि वे अनुमति देते हैं, नहीं देते हैं अथवा राष्ट्रपति को विचार के लिए भेजती हैं। वे अनुमति कब देती हैं उसकी कोई समय-सीमा निर्धारित नहीं है। अगर राज्यपाल विधेयकों को वापस करतीं तो उसके साथ एक नोट भी देतीं, जिसपर विधानसभा में फिर से विचार कर पारित करना पड़ता। उसके बाद वे विधेयकों को अनुमति देने से नहीं रोक सकतीं। लेकिन वह अनुमति भी कब देंगी उसकी सीमा तय नहीं है।

विधेयक पारित करने के बाद पांच मंत्री दो दिसम्बर की रात राज्यपाल से हस्ताक्षर का आग्रह का आये थे।
विधेयक पारित करने के बाद पांच मंत्री दो दिसम्बर की रात राज्यपाल से हस्ताक्षर का आग्रह का आये थे।

मुख्यमंत्री ने भाजपा पर लगाया है अड़ंगा डालने का आरोप

वहीं मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने आरोप लगाया है कि राज्यपाल इस विधेयक पर हस्ताक्षर को तैयार थीं। भाजपा के नेता उनपर ऐसा नहीं करने का दबाव बना रहे हैं। इधर राजभवन ने शुरुआती समीक्षा के बाद विधेयक को फिर से विचार करने के लिए सरकार को लौटाने की तैयारी कर ली है।

रायपुर हेलीपैड पर पत्रकारों से चर्चा में मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने कहा, जो राज्यपाल यह कहे कि मैं तुरंत हस्ताक्षर करुंगी, अब वह किंतु-परंतु लगा रही हैं। इसका मतलब यह है कि वह तो चाहती थीं, भोली महिला हैं। आदिवासी महिला है और निस्छल भी है। लेकिन जो भाजपा के लोग हैं जो दबाव बनाकर रखें हैं उस कारण से उनको किंतु-परंतु करना पड़ा कि मैं तो सिर्फ आदिवासी के लिए बोली थी। आरक्षण का बिल एक वर्ग के लिए नहीं होता, यह सभी वर्गों के लिए होता है। यह प्रावधान है जो भारत सरकार ने किया है, जो संविधान में है। मैंने अधिकारियों से बात की थी कि इसको अलग-अलग ला सकते हैं। उन्होंने कहा नहीं, यह तो एक ही साथ आएगा। उसके बाद बिल प्रस्तुत हुआ। अब क्यों हिला-हवाली हो रही है। मुख्यमंत्री ने दो टूक शब्दों में कह दिया कि विधानसभा से सर्व सम्मति से एक्ट पारित हुआ है तो राजभवन में रोका नहीं जाना चाहिए। तत्काल इसको दिया जाना चाहिए।पढ़ें पूरी खबर

आरक्षण मामले में अब तक क्या-क्या हुआ है

  • 19 सितम्बर को गुरु घासीदास साहित्य एवं संस्कृति अकादमी मामले में उच्च न्यायालय का फैसला आया। इसमें छत्तीसगढ़ में आरक्षण पूरी तरह खत्म हो चुका है।
  • शुरुआत में कहा गया कि इसका असर यह हुआ कि प्रदेश में 2012 से पहले का आरक्षण रोस्टर लागू हो गया है। यानी एससी को 16%, एसटी को 20% और अन्य पिछड़ा वर्ग को 14% आरक्षण मिलेगा।
  • सामान्य प्रशासन विभाग ने विधि विभाग और एडवोकेट जनरल के कार्यालय से इसपर राय मांगी। लेकिन दोनों कार्यालयों ने स्थिति स्पष्ट नहीं की।
  • सामान्य प्रशासन विभाग ने सूचना के अधिकार के तहत बताया कि हाईकोर्ट के फैसले के बाद 29 सितम्बर की स्थिति में प्रदेश में कोई आरक्षण रोस्टर क्रियाशील नहीं है।
  • आदिवासी समाज ने प्रदेश भर में आंदोलन शुरू किए। राज्यपाल और मुख्यमंत्री को मांगपत्र सौंपा गया। सर्व आदिवासी समाज की बैठकों में सरकार के चार-चार मंत्री और आदिवासी विधायक शामिल हुए।
  • लोक सेवा आयोग और व्यापमं ने आरक्षण नहीं होने की वजह से भर्ती परीक्षाएं टाल दीं। जिन पदों के लिए परीक्षा हो चुकी थीं, उनका परिणाम रोक दिया गया। बाद में नये विज्ञापन निकले तो उनमें आरक्षण रोस्टर नहीं दिया गया।
  • सरकार ने 21 अक्टूबर को उच्चतम न्यायालय में विशेष अनुमति याचिका दायर कर उच्च न्यायालय का फैसला लागू होने से रोकने की मांग की। शपथपत्र पर लिखकर दिया गया है कि उच्च न्यायालय के फैसले के बाद प्रदेश में भर्तियां रुक गई हैं।
  • राज्यपाल अनुसूईया उइके ने मुख्यमंत्री को पत्र लिखकर हालात पर चिंता जताई। सुझाव दिया कि सरकार आरक्षण बढ़ाने के लिए अध्यादेश लाए अथवा विधानसभा का विशेष सत्र बुलाए।
  • सरकार ने विधेयक लाने का फैसला किया। एक-दो दिसम्बर को विधानसभा सत्र बुलाने का प्रस्ताव राजभवन भेजा गया, उसी दिन राज्यपाल ने उसकी अनुमति दे दी और अगले दिन अधिसूचना जारी हो गई।
  • 24 नवम्बर को मुख्यमंत्री भूपेश बघेल की अध्यक्षता में हुई कैबिनेट की बैठक में आरक्षण संशोधन विधेयकों के प्रस्ताव के हरी झंडी मिल गई।
  • 2 दिसम्बर को तीखी बहस के बाद विधानसभा ने सर्वसम्मति से आरक्षण संशोधन विधेयकों को पारित कर दिया। इसमें एससी को 13%, एसटी को 32%, ओबीसी को 27% और सामान्य वर्ग के गरीबों को 4% का आरक्षण दिया गया। जिला कॉडर की भर्तियों में जनसंख्या के अनुपात में आरक्षण तय हुआ। ओबीसी के लिए 27% और सामान्य वर्ग के गरीबों के लिए 4% की अधिकतम सीमा तय हुई।
  • 2 दिसम्बर की रात को ही पांच मंत्री विधेयकों को लेकर राज्यपाल से मिलने पहुंचे। यहां राज्यपाल ने जल्दी ही विधेयकों पर हस्ताक्षर का आश्वासन दिया। अगले दिन उन्होंने सोमवार तक हस्ताक्षर कर देने की बात कही। उसके बाद से विधेयकों पर हस्ताक्षर की बात टलती रही।

छत्तीसगढ़ में आरक्षण पर टकराव बढ़ा:CM बोले-भाजपा ने राज्यपाल पर बनाया बिल पर हस्ताक्षर न करने का दबाव;इधर राजभवन विधेयक लौटाने की तैयारी में

खबरें और भी हैं...