प्रदेश में कोरोना से स्वस्थ बच्चों में मल्टीसिस्टम इन्फ्लामेट्री सिस्टम (एमआईएस) के अटैक का खतरा पैदा हो गया है। संक्रमण की दोनों लहरों के दौरान अब तक रायपुर और बिलासपुर में ही 100 से ज्यादा बच्चे इससे संक्रमित हो चुके हैं। केवल राजधानी में इस तरह के 60 से ज्यादा केस आ चुके हैं।
एम्स में 10 व निजी अस्पतालाें व क्लीनिक में 40 से ज्यादा केस आए हैं। भिलाई में दो केस मिले, दोनों स्वस्थ हैं। राहत की बात यह रही है कि अब तक एक भी बच्चे की मौत अब तक नहीं हुई है। पीडियाट्रिशियन का कहना है कि समय पर एमआईएस का इलाज समय पर शुरू होने पर बीमारी गंभीर होने का खतरा कम हो जाता है। दूसरी लहर में एमआईएस के केस ज्यादा अा रहे हैं। अचानक बढ़ रही इस बीमारी के बारे में शिशु रोग विशेषज्ञ बता रहे हैं कि वो सबकुछ जो एक पैरेंट्स के लिए जानना जरूरी है।
ये हैं लक्षण
शरीर में बनी एंटीबॉडी के रिएक्शन का असर; डॉ. अतुल जिंदल, एडिशनल प्रोफेसर पीडियाट्रिक, एम्स
एमआईएस यानी मल्टी सिस्टम इंफ्लामेट्री सिंड्रोम बीमारी कोरोना संक्रमण के 4 से 6 सप्ताह बाद हो सकता है। अब तक की रिसर्च के मुताबिक यह कोरोना से मुकाबला करने के लिए शरीर में बनी एंटीबॉडी के रिएक्शन का असर है। इम्यून सिस्टम के ओवर रिएक्शन की वजह से भी ऐसा होता है। प्रदेश में जितने बच्चे एमआईएस से पीड़ित हुए हैं, उनमें ज्यादातर बच्चों में कोरोना के लक्षण हल्के या नहीं के बराबर थे। इसके बावजूद बच्चों में कोरोना के वायरस तो थे, जिससे वे संक्रमित हुए थे। एक बार इस संक्रमण से मुक्त होने पर बच्चों के शरीर में एंटीबॉडी बन जाती हैं। यही एंटीबॉडी बच्चों के शरीर में प्रतिक्रिया करती है। यह एलर्जी भी पैदा कर सकती है। इस रेयर बीमारी के मामले देश के कुछ राज्यों में आए थे। तब बच्चों में बुखार, स्किन में रैशेज, आंखों में इंफेक्शन व गैस्ट्राे इंटेस्टाइनल समस्या हुई थी। कुछ गंभीर मामलों में बच्चों के कई अंग फेल हो सकते हैं।
सामान्य संक्रमण, इलाज से ठीक हो रहे मरीज; डॉ. सुशील कुमार, शिशु रोग विशेषज्ञ, अपोलो अस्पताल
एमआईएस-सी में आंखें लाल हो जाती हैं। हथेली में लालपन आने लगता है। दस्त एवं पेट दर्द की पीड़ा भी होती है। जांच करने पर पता चलता है कि संक्रमण के सूचक जैसे न्यूट्रोफ़िल्स, सीआरपी, ईएसआर काफी बढ़े हुए हैं। उन्हें अन्य सामान्य इंफेक्शन नहीं है। कोविड का सीरोलॉजी टेस्ट पॉजिटिव आता है। ईको टेस्ट करने पर कुछ मरीजों के दिल और उसकी नलियों में भी सूजन का पता चलता है। कुछ मरीजों के क्लौटिंग सिस्टम में भी गड़बड़ी रहती है। जिससे डी-डायमर बढ़ा मिलता है। ऐसे मरीजों को स्ट्राइड, इम्युनोग्लोबिन एवं खून पतला करने वाली दवाएं जैसे एस्प्रिन एवं इनोक्साप्रिन की जरूरत पड़ती है, जो समय पर अस्पताल पहुंच जाते हैं वे ठीक हो जाते हैं। पालक को ध्यान देना होगा कि यदि बच्चे या परिवार के किसी सदस्य को कोरोना हुआ है और उनमें एेसे लक्षण दिखतें हैं तो तुरंत हॉस्पिटल जाएं। अधिकांश मरीज बिल्कुल ठीक हो रहे हैं।
कई अंगों को डैमैज करता है, इलाज जरूरी; डॉ. एपी सावंत, सेंट्रल एग्जीक्यूटिव बोर्ड के सदस्य
कोरोना संक्रमित बच्चों में संक्रमण के बाद वायरस के विरुद्ध एंटी बॉडी बनने लगती है। यह वायरस को खत्म करने की कोशिश करती है, लेकिन इसके बाद भी वायरस खत्म नहीं हुआ और मरीज को एंटी वायरल दवाएं भी नहीं मिली तो उसके शरीर में वायरस के विरुद्ध जहरीले तत्व (साइटोकाइन स्टॉर्म) बनने लगते हैं। यही स्थिति मल्टी सिस्टम इंफ्लैमेटरी सिंड्रोम को जन्म देती है। इस साइटोकाइन स्टॉर्म को अंकुश में रखने के लिए ही डॉक्टर स्टेरायड देते हैं। समय पर मरीज को स्टेराइड नहीं दिया गया तो साइटोकाइन स्टॉर्म इतना ज्यादा बन जाता है कि वायरस के साथ ही वह शरीर के अंदरुनी अंगों को नुकसान पहुंचा देता है। इसलिए इसकी चपेट में आने वालों की जान बचाने के लिए बीमारी की क्विक पहचान कर सही इलाज जरूरी है। नहीं तो डैमेज हुए अंदरुनी अंग एकाएक काम करना बंद कर देते हैं।
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