बिहार के मिथिला क्षेत्र की पहचान से जुड़ा मखाना छत्तीसगढ़ में भी जड़ें फैला रहा है। रायपुर, धमतरी और महासमुंद के बेहद सीमित क्षेत्र में इसकी खेती हाे रही है। मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने रविवार को रायपुर के लिंगाडीह गांव में छत्तीसगढ़ के पहले मखाना प्रसंस्करण केंद्र का वर्चुअल उद्घाटन किया। इस दौरान यहां मखाने की खेती करने वाले दिवंगत किसान कृष्ण कुमार चंद्राकर के नाम पर लिंगाडीह के फार्म से उत्पादित मखाने को दाऊजी ब्रांड से लांच किया गया।
लिंगाडीह के मखाना खेती, प्रसंस्करण एवं विपणन केंद्र के गजेन्द्र चंद्राकर और मखाने की खेती कर रहे ओजस फार्म की मनीषा चंद्राकर ने मखाने की खेती के तकनीकी और आर्थिक पहलुओं पर बात की। गजेन्द्र चंद्राकर ने मखाने की खेती पर प्रस्तुतिकरण दिया। उन्होंने बताया, लिंगाडीह के मखाना खेती, प्रसंस्करण एवं विपणन केंद्र द्वारा किसानों को मखाना खेती हेतु निःशुल्क तकनीकी जानकारी दी जा रही है। मखाना प्रक्षेत्र का समय-समय पर भ्रमण कराया जा रहा है और किसानों को मखाने की खेती का प्रशिक्षण भी दिया जा रहा है।
यह केंद्र किसानों के लिए मखाना बीज उपलब्ध कराता है, वहीं मखाने की खरीदी भी कर रहा है। उद्घाटन समारोह में कृषि मंत्री रविंद्र चौबे, राज्यसभा सांसद छाया वर्मा, राज्य खनिज विकास निगम के अध्यक्ष गिरीश देवांगन, मुख्यमंत्री के सलाहकार प्रदीप शर्मा, मुख्यमंत्री के अपर मुख्य सचिव सुब्रत साहू और जनसम्पर्क आयुक्त दीपांशु काबरा आदि मौजूद रहे।
तालाब और गहरे खेतों में हो सकती है फसल
गजेंद्र चंद्राकर ने बताया, मखाने की खेती अधिकतर तालाबों में होती है। तालाब के साथ - साथ एक से डेढ़ फीट गहरे खेत में भी मखाने की खेती की जा सकती है। उन्होंने यह भी बताया कि मखाने की खेती से प्रति एकड़ लगभग 70 हजार रुपए का शुद्ध लाभ अर्जित किया जा सकता है।
क्या है यह मखाना
उद्यानिकी विभाग के अफसरों ने बताया, यह महत्वपूर्ण जलीय पौधा है। इसे आमतौर पर मखाना, गोरगन नट अथवा फॉक्स नट कहा जाता है। यह तालाबों, जलीय क्षेत्रों, दलदली भूमि और बारहमासी जलभराव क्षेत्रों में उगाया जाता है। इसका 80% उत्पादन बिहार में होता है। यह औषधीय गुणों से भरपूर है। इसमें प्रोटीन, एंटी ऑक्सीडेंट, विटामिन, कैल्शियम और दूसरे पोषक तत्व पाए जाते हैं। सर्वाधिक मांग पूजा-पाठ और व्रत में होती है। स्नैक्स और नमकीन बनाने में भी इसका उपयोग होता है।
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