धान के कटोरे के रूप में मशहूर छत्तीसगढ़ में किसानों को 2500 रुपए प्रति क्विंटल मूल्य मिल रहा है, फिर भी लागत के मुकाबले एक एकड़ में सिर्फ 9500 रुपए ही मुनाफा मिल रहा है। इसमें 6 महीने तक किसान और उसके परिवार की मेहनत का मूल्य नहीं जुड़ा है। यदि प्रतिदिन 100 रुपए मजदूरी जोड़ें तो किसानों को कोई लाभ नहीं मिलता। सिर्फ धान ही नहीं, बल्कि अन्य फसलों में भी श्रम और लागत के मुकाबले मुनाफा बेहद कम है। सोयाबीन की लागत कम होने के कारण रकबा घटकर आधे से भी कम हो गया है।
क्या है जमीनी हकीकत ?
ये आंकड़े अच्छी परिस्थिति के लिए हैं। जिन इलाकों में सिंचाई की सुविधा नहीं है, वहां प्रति एकड़ 1000 रुपए की सिंचाई पर भी किसान खर्च करते हैं। बस्तर में 6 क्विंटल प्रति एकड़ उत्पादन होता है, जबकि धमतरी, राजिम में 20 क्विंटल तक भी उत्पादन होता है। हालांकि 5 फीसदी क्षेत्र में ही ऐसा उत्पादन होता है।
छत्तीसगढ़ में पलायन की बड़ी वजह भी यही
छत्तीसगढ़ में 80 फीसदी छोटे किसान हैं, जिनके पास एक हेक्टेयर यानी ढाई एकड़ की औसत जमीन है। इसलिए ज्यादातर किसान व उनका परिवार पहले बड़े किसानों के यहां मजदूरी करते हैं। उसके बाद अपना खेत बोते हैं। इसमें भी बड़ी संख्या में लोग पलायन कर जाते हैं।
एक्सपर्ट्स व्यू - राष्ट्रीय औसत के मुताबिक समर्थन मूल्य तय किया जाता है
कृषि वैज्ञानिक डॉ. संकेत ठाकुर कहते हैं कि पिछले दस सालों में एक सरकारी कर्मचारी के वेतन में वृद्धि और फसल के समर्थन मूल्य में वृद्धि की तुलना करें तो बहुत बड़ा अंतर नजर आता है। किसान जितनी मेहनत करते हैं, उसका मूल्य ही नहीं मिलता। हर राज्य और अलग-अलग क्षेत्र में लागत अलग है, जबकि राष्ट्रीय औसत के मुताबिक समर्थन मूल्य तय किया जाता है। इस पर बदलाव बेहद जरूरी है।
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