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आदिवासी समाज ने आरक्षण पर तिहरी रणनीति बनाई:कानूनी-राजनीतिक लड़ाई के लिए कोर कमेटी, तमिलनाडू, कर्नाटक, झारखंड की व्यवस्था का अध्ययन होगा,मंत्रियों को भी जिम्मेदारी

रायपुर5 महीने पहले
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आबकारी मंत्री कवासी लखमा और विधायक बृहस्पत सिंह ने समाज के फैसलों की जानकारी दी। - Dainik Bhaskar
आबकारी मंत्री कवासी लखमा और विधायक बृहस्पत सिंह ने समाज के फैसलों की जानकारी दी।

छत्तीसगढ़ उच्च न्यायालय के फैसले से आरक्षण की व्यवस्था बदल जाने के बाद अभी तक सरकार पर आश्रित दिख रहा आदिवासी समाज बेचैन हो रहा है। छत्तीसगढ़ सर्व आदिवासी समाज के भारत सिंह धड़े ने अब इस लड़ाई के लिए तिहरी रणनीति तय की है। इसके लिए कानूनी, राजनीतिक और सामाजिक स्तर पर कोर कमेटी का गठन करने का फैसला किया है। यह कमेटी ही पूरी लड़ाई का संचालन करेगी।

छत्तीसगढ सर्व आदिवासी समाज की मंगलवार शाम रायपुर के सर्किट हाउस में बैठक हुई। इसमें राज्य सरकार के आदिवासी समाज के मंत्रियाें और कांग्रेस विधायकों को भी बुलाया गया था। मंत्री कवासी लखमा, अनिला भेंडिया, विधायक बृहस्पत सिंह आदि तमाम नेता वहां पहुंचे। तय हुआ कि इस मामले में समाज ने सर्वोच्च न्यायालय में याचिका दायर की है। उसको पूरा समर्थन दिया जाएगा। इसके लिए आदिवासी समाज तीन अध्ययन दल बना रहा है। यह दल तमिलनाडू, कर्नाटक और झारखंड जाकर वहां की आरक्षण व्यवस्था का अध्ययन करेगा। इस दल की दिलचस्पी यह जानने में होगी कि इन राज्यों में आदिवासी समाज को बढ़ा आरक्षण कैसे मिल पाया है। इसके अलावा वहां 50% से अधिक आरक्षण की व्यवस्था कैसे बची है, इसको भी जानने की कोशिश होगी।

प्रदेश के उद्योग और आबकारी मंत्री कवासी लखमा ने बताया, इस अध्ययन दल की रिपोर्ट जरूरत के मुताबिक सरकार और न्यायालय में पेश की जा सकती है। उन्होंने बताया, समाज के विधायकों-मंत्रियों को सरकार के साथ समन्वय का जिम्मा दिया गया है। हम सरकार के भीतर के लोग हैं। हमको जिम्मेदारी दी गई है कि सरकार के साथ मुख्यमंत्री के साथ लगातार इस मामले में बैठक करते रहें। हर सप्ताह, हर 10-15 दिन में इसपर चर्चा कर समाज की चिंताओं और कानूनी स्थिति से अवगत कराते रहें।

विधानसभा के विशेष सत्र की भी बात

मंत्री कवासी लखमा ने कहा, अंत में विधानसभा का विशेष सत्र भी बुलाया जाएगा। इसके लिए सरकार भी तैयार है। मुख्यमंत्री भी तैयार हैं। सरकार आदिवासी समाज के साथ है। उनको जनसंख्या के अनुपात में 32% आरक्षण का लाभ दिला के रहना है। यही संकल्प है। कांग्रेस विधायक बृहस्पत सिंह का कहना था, उन लोगों ने मुख्यमंत्री भूपेश बघेल से मुलाकात की है। उन्होंने भरोसा दिया है कि क्वांटिफायबल डाटा आयोग की रिपोर्ट मिलते ही विधानसभा का विशेष सत्र बुलाकर इस समस्या का निराकरण कर लिया जाएगा।

इधर सर्वोच्च न्यायालय ने सरकार को नोटिस दिया है

सर्व आदिवासी समाज की बेचैनी के बीच बिलासपुर उच्च न्यायालय के आरक्षण फैसले के विरोध में पांच याचिकाएं सर्वोच्च न्यायालय में लग चुकी हैं। इसमें से चार व्यक्तिगत हैं और एक संगठन की ओर से है। सोमवार को योगेश ठाकुर और प्रकाश ठाकुर की याचिका पर सर्वोच्च न्यायालय ने राज्य सरकार और गुरु घासीदास साहित्य एवं संस्कृति अकादमी को नोटिस जारी कर चार सप्ताह में जवाब मांगा है। बताया जा रहा है, कुछ और लोग भी सर्वोच्च न्यायालय जाने के लिए वकीलों से सलाह ले रहे हैं।

आरक्षण मामले में अब तक क्या-क्या हुआ

राज्य सरकार ने 2012 आरक्षण के अनुपात में बदलाव किया था। इसमें अनुसूचित जनजाति वर्ग का आरक्षण 20% से बढ़ाकर 32% कर दिया गया। वहीं अनुसूचित जाति का आरक्षण 16% से घटाकर 12% किया गया। इसको गुरु घासीदास साहित्य एवं संस्कृति अकादमी ने उच्च न्यायालय में चुनौती दी। बाद में कई और याचिकाएं दाखिल हुईं। छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने 19 सितम्बर को इसपर फैसला सुनाते हुये राज्य के लोक सेवा आरक्षण अधिनियम को रद्द कर दिया। इसकी वजह से आरक्षण की व्यवस्था खत्म होने की स्थिति पैदा हो गई है। शिक्षण संस्थाओं में भी आरक्षण खत्म हो गया है। भर्ती परीक्षाओं का परिणाम रोक दिया गया है। वहीं कॉलेजों में काउंसलिंग नहीं हो पा रही है।

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