नक्सल प्रभावित बस्तर के सिलगेर में सीआरपीएफ कैम्प के विरोध का अनसुलझा विवाद राज्य सरकार और सत्ताधारी पार्टी कांग्रेस को भारी पड़ सकता है। सर्व आदिवासी समाज सिलगेर में हुई गोलीबारी और घटना के बाद सरकार की प्रतिक्रिया से काफी नाराज है। आज रायपुर के भैरव नगर स्थित आदिवासी नागरची गोंडवाना भवन में हुई छत्तीसगढ़ सर्व आदिवासी समाज की बैठक में आदिवासी प्रतिनिधियों ने साफ तौर पर कह दिया कि इस मामले में उन्हें सरकार और कांग्रेस पार्टी पर भरोसा नहीं रह गया।
सर्व आदिवासी समाज के कार्यकारी प्रदेश अध्यक्ष बीएस रावटे ने कहा, सिलगेर में जो हुआ वह सरकार की मनमानी है। भाजपा के शासनकाल में सारकेगुड़ा में ऐसा ही हुआ था। पुलिस ने पंडुम त्यौहार मना रहे गांव वालों को मार डाला। बाद में नक्सली बता दिया। जांच में पुलिस वाले दोषी पाए गए लेकिन किसी को सजा नहीं हुई। 15 वर्ष तक भाजपा की मनमानी झेल चुके आदिवासियों को कांग्रेस से उम्मीद थी। लेकिन उनके यहां भी सिलगेर हो रहा है। तीन दिन तक प्रदर्शन चला तो कोई नक्सली नहीं था। जब पुलिस वालों ने गोली चला दी तो नक्सली हमला बता दिया। सरकार हर बार यही करती है। किसी को मारने के बाद उसे नक्सली और ईनामी बता देती है। रावटे ने कहा, किसी को मारने के बाद नक्सली बताने का खेल अब बंद होना चाहिए। सरकार के पास सबूत है तो एक-एक नक्सली की सूची जारी कर आदिवासी समाज भी तो पहचाने कि उनके बीच कौन नक्सली रह रहा है। गोंडवाना भवन में हुई कार्यकारिणी की पहली बैठक में समाज के संरक्षक और पूर्व केंद्रीय मंत्री अरविंद नेताम, प्रदेश अध्यक्ष और पूर्व सांसद सोहन पोटाई, और जय लक्षमी ठाकुर सहित कई जिलों के प्रतिनिधि शामिल हुए थे।
आंदोलन के बाद भी कार्रवाई नहीं
बीएस रावटे ने कहा, सिलगेर में आदिवासी समाज के लंबे आंदोलन के बाद सरकार ने कोई कार्रवाई नहीं की। उल्टे हम लोगों को वहां जाने से रोका। कांग्रेस विधायकाें की जो समिति बनाई उसमें समाज के किसी व्यक्ति को नहीं रखा। ऐसे में इस कमेटी पर हमारा भरोसा नहीं है। आदिवासी बहुल क्षेत्रों में पेसा कानून लागू होता है। उसे प्रभावी करने का वादा किया गया था, लेकिन कांग्रेस ने उसे भी पूरा नहीं किया।
19 जुलाई से 9 अगस्त तक आंदोलन
सिलगेर में कोई कार्रवाई नहीं होने से भड़का सर्व आदिवासी समाज 19 जुलाई से प्रदेश भर में आंदोलन शुरू करने जा रहा है। कार्यकारी प्रदेश अध्यक्ष बीएस रावटे ने बताया, प्रदेश के सभी ब्लॉक मुख्यालयों में लगातार प्रदर्शन किया जाएगा। प्रदर्शन का पहला चरण 9 अगस्त आदिवासी दिवस तक चलेगा। सरकार ने बात नहीं मानी तो यह आंदोलन लंबा खिंचेगा। इस प्रदर्शन के दौरान सर्व आदिवासी समाज सिलगेर में मारे गए चार लोगों के परिवार को एक-एक करोड़ और घायलों को 20-20 लाख रुपए का मुआवजा देने की मांग उठाएंगे। मृतकों के परिवार से किसी को योग्यतानुसार सरकारी नौकरी देने की भी मांग उठेगी।
स्कूलों में भर्ती और पदोन्नति में आरक्षण भी मुद्दा
कार्यकारिणी की बैठक में स्वामी आत्मानंद इंग्लिश मीडियम स्कूलों में शिक्षकों की भर्ती में आरक्षण रोस्टर का पालन नहीं होने के आरोप लगे। प्रतिनिधियों का कहना था, प्रत्येक स्कूल में अलग-अलग विज्ञापन निकल रहा है। ऐसे में फिजिक्स, केमिस्ट्री, मैथमेटिक्स जैसे विषयों में जहां एक-एक पद ही हैं वहां भर्ती सामान्य हो रही है। आरक्षित वर्गों का हक मारा जा रहा है। सरकार पदोन्नति में आरक्षण मुद्दे पर भी हाथ पर हाथ धरे बैठी है।
क्या हुआ था सिलगेर में
नक्सलियों के खिलाफ अभियान में जुटे सुरक्षा बल बीजापुर-सुकमा जिले की सीमा पर स्थित सिलगेर गांव में एक कैम्प बना रहे हैं। स्थानीय ग्रामीण इस कैम्प का विरोध कर रहे हैं। ग्रामीणों का आरोप है कि सुरक्षा बलों ने कैम्प के नाम पर उनके खेतों पर जबरन कब्जा कर लिया है। ऐसे ही एक प्रदर्शन के दौरान 17 मई को सुरक्षा बलों ने गोली चला दी। इसमें तीन ग्रामीणों की मौत हो गई। भगदड़ में घायल एक गर्भवती महिला की कुछ दिन बाद मौत हुई है। पुलिस का कहना था, ग्रामीणों की आंड़ में नक्सलियों ने कैम्प पर हमला किया था। जिसकी वजह से यह घटना हुई। लंबे गतिरोध और चर्चाओं के बाद 10 जून को ग्रामीण आंदोलन स्थगित कर सिलगेर से वापस लौटे हैं।
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