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गिरदावरी में कटे रकबे को सुधरवाने अंचल के किसानों ने धान खरीदी के पहले दिन से ही आंदोलन किया था परंतु अंतिम दिन तक संघर्ष जारी रखने के बाद भी रकबे में सुधार नहीं हो पाने से सैकड़ों किसान धान बेचने से वंचित रह गए और मायूस होकर प्रशासन को कोस रहे हैं। कुल 1150 आवेदनों में से 101 का ही निराकरण हो पाया यानी इतने किसान धान बेच पाए। नायब तहसीलदार ममता ठाकुर का कहना है कि इनमें से आधे आवेदन आधारहीन हैं जबकि इन्हीं आधारहीन किसानों ने समर्थन मूल्य पर धान बेचा था। गौरतलब है कि किसानों ने 8 दिसंबर को चक्का जाम की चेतावनी दी थी जिस पर सिमगा एसडीएम डीआर रात्रे ने 7 दिसंबर को ही एक सप्ताह में संशोधन करने का आश्वासन देते हुए चक्का जाम स्थगित करवा दिया था परंतु डेढ़ माह बाद जानकारी मिली कि किसानों द्वारा दिए गए 1150 आवेदनों में महज 101 का ही सुधार हो पाया था। आक्रोशित किसानों ने 25 जनवरी को एक बार फिर नायब तहसीलदार कार्यालय का घेराव कर नायब तहसीलदार से सुधार नहीं हो पाने के संबंध में सवाल किया। इस पर नायब तहसीलदार ममता ठाकुर ने अपनी ओर से रकबा सुधारकर प्रक्रिया को आगे बढ़ाने का आश्वासन दिया। उनके जवाब से असंतुष्ट किसान 27 जनवरी को सिमगा एसडीएम कार्यालय जाकर धरने पर बैठ गए तब एसडीएम डीआर रात्रे ने सुहेला और सिमगा दोनों के नायब तहसीलदारों सहित जिला खाद्य शाखा में रकबा सुधार होने का हवाला देकर बलौदाबाजार भेज दिया। कलेक्टर सुनील जैन के निर्देश पर संयुक्त कलेक्टर लवीना पांडेय ने भी संशोधन की दिशा में मोर्चा संभाला परंतु समस्या यथावत रही और केवल एक किसान गोरदी के अजय साहू का रकबा ही सुधर पाया वह भी अधूरा रहा। भारतीय किसान संघ के प्रचार प्रमुख नवीन शेष ने बलौदाबाजार को एक फसली क्षेत्र होना बताकर कहा कि शासन किसानों का रकबा सुधारकर उनका धान खरीदने का मौका दे तभी किसानों के साथ न्याय हो पाएगा।
नायब तहसीलदार ने आधारहीन का अर्थ समझाया
आधारहीन आवेदनों का आशय बताते हुए नायब तहसीलदार ममता ठाकुर ने कहा कि पिछले साल धान खरीदी ऑफलाइन हुई थी लेकिन इस बार गिरदावरी के बाद स्ट्रिक्टली ऑनलाइन कर दिया गया। उन्होंने बताया कि बंटवारा, फौती, बंदोबस्त आदि के बाद किसानों का रिकॉर्ड पटवारी पंजी में सुधर नहीं पाया रहा होगा जो गिरदावरी के दौरान पकड़ में नहीं आ पाया होगा। इस कारण ऑनलाइन में पुराना रिकॉर्ड ही दर्ज हो गया इसीलिए गत वर्ष तक ऑफलाइन में किसान ऋण पुस्तिका के आधार पर ऋण भी ले रहे थे और धान भी बेच रहे थे परंतु इस बार ऑनलाइन में दर्ज नहीं हो पाया।
ऑफलाइन में पड़त भूमि भी दर्ज थी : नायब तहसीलदार ने स्पष्ट किया कि भाइयों के बीच पूर्व में भूमि का बंटवारा तो हो गया था परंतु हिस्सेदार के पास अब तक ऋण पुस्तिका नहीं होने से पंजीयन पुरानी ऋण पुस्तिका के आधार पर ही रह गया। बहुत से लोगों ने पड़त भूमि भी ऑफलाइन में दर्ज करवा रखी थी जिसमें इस बार वे धान नहीं बेच पाए। बंदोबस्त के बाद किसानों का रिकॉर्ड सुधर नहीं पाया। हालांकि गत वर्ष तक किसान ऋण पुस्तिका के आधार पर ऋण भी ले रहे थे और धान भी बेच रहे थे।
4 दिन पहले बताना था किसानों को: एसडीएम
मामले में सिमगा एसडीएम डीआर रात्रे ने कहा कि उन्होंने संशोधन हेतु 22 किसानों को बलौदाबाजार की खाद्य शाखा भेजा था। तकनीकी समस्या केवल सिमगा की नहीं अलबत्ता पूरे छत्तीसगढ़ की है। यदि सुधार नहीं हो पाने की जानकारी किसानों द्वारा 4 दिन पहले दी गई होती तो शायद सभी किसानों का रकबा सुधर गया होता।
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