मुख्यमंत्री भूपेश बघेल सबकी समस्याएं सुन रहे थे। अचानक एक डीआरजी जवान ने हाथ उठाया तो मुख्यमंत्री बोले- उन्हें माइक दो...। जवान ने कहा- सर, पहले मैं नक्सली था, फिर सरेंडर किया। फोर्स में भर्ती हुआ। अब थानेदार हूं। आपसे हाथ मिलाना चाहता हूं। सीएम बोले-अरे, इधर आओ...और गले लगा लिया। फिर कंधे पर हाथ रखकर कहा, मेरे साथ इनकी तस्वीरें लीजिए।
डीजीपी समेत पुलिस के तमाम आला अफसरों के बीच उस जवान के हौसले को सबने सराहा और मौजूद भीड़ ने तो जमकर तालियां बजाईं। ये मौका था, जब मुख्यमंत्री भूपेश बघेल जनता के बीच पहुंच रहे हैं। सरकार कैसे काम कर रही है, ये जान रहे हैं। खुद की समीक्षा कर रहे हैं। अधिकारियों को नाकामी पर फौरन सजा भी दे रहे हैं।
उत्तर छत्तीसगढ़ के सरगुजा से हुआ आगाज दूसरे दौर में सीधे दक्षिण छत्तीसगढ़ कोंटा पहुंचा है। सफर जारी है। राजधानी से 486 किमी दूर कोंटा का बस स्टैंड एक तरफ पंडाल से सजा हुआ था और दूसरी तरफ हैलीपेड, जहां सैकड़ों नज़रें आसमान पर थीं, कि कब मुख्यमंत्री का उड़नखटोला यहां उतरेगा।
किसी के हाथ में उम्मीदों के कागज तो किसी की आंख में भविष्य के सपने थे। इंतजार लंबा था, लेकिन जैसे ही हेलिकॉप्टर की आवाज़ आई, हर आम आदमी के चेहरे पर मुस्कान आ गई। सीएम तकरीबन 2 बजे पहुंचे। सरकार के सफर पर भेंट मुलाकात के दौरान वे जनता से रूबरू हुए। आते ही राम-राम और जय जोहार कर सीधे कनेक्ट हुए।
आसपास के तकरीबन 15 गांव के लोगों से सीधी बातचीत शुरू की। कोई औपचारिकता नहीं। मरईगुड़ा के कुछ किसान मुख्यमंत्री के लिए मिर्च, अरहर, चना, ज्वार, कपास, तिल लेकर आए थे। खुद की उगाई हुई। भेंट करने के लिए। सीएम ने पूछा- मुझे पहचानते हो...।
बेहद सीधी सादी गोंडी मिली भाषा में वो किसान बोला- भूपेश बघेल तो हो...मुख्यमंत्री हो...। वहां मौजूद सारे लोग हंस पड़े। सीएम बोले- बहुत पहले कोंटा आया था। सरकार बनने के बाद पहली बार आया हूं। ये बताओ कि राजीव गांधी किसान योजना का फायदा लिया या नहीं...। मरईगुड़ा का किसान अर्जुन, लक्ष्मण कोरसी खड़े हुए।
बोले- सर, कोई कर्जा नहीं है अब। सब छूट गया। पहले रहता था। अब मुनाफा कमाते हैं। बस ये चना, ज्वार, अरहर इन सबके लिए एक कोल्ड स्टोरेज खुलवा देते तो अच्छा रहता। जगदलपुर जाना पड़ता है। सीएम ने कहा- ये आप लोग खुद करेंगे। कलेक्टर इसमें आपकी मदद करेंगे।
आप लोग बनाओ, हम साथ देंगे और कलेक्टर की तरफ मुखातिफ़ होकर उन्हें कुछ निर्देश दिए। अभी मरईगुड़ा के ये किसान बैठे ही थे कि कोंटा की ही महिला सुदेश्वरी बोली- सर, हम चार लोगों ने मिलकर एक साल में दो लाख का गोबर बेचा है। 50-50 हजार रुपए बांट भी लिया। सीएम ने मजाक किया- खर्चा कर दिया या बचा है...। ठेठ बस्तरिया अंदाज में उस महिला ने कहा, नहीं सर, खत्म हो गया, लेकिन बहुत कुछ ले लिया।
बता दें कि कोंटा छत्तीसगढ़ का एकदम दक्षिण ध्रुव है, जो तेलंगाना-आंध्रा से लगता है। जहां गोंडी या तेलुगु ज्यादा बोली जाती है। इस बीच सभा जब अचानक एक महिला खड़ी हुई और उसने छत्तीसगढ़ी में कहा- पांव परत हंव..कईसे हव। मुख्यमंत्री यहां छत्तीसगढ़ी सुनकर थोड़ा रुके और मुस्कुराए। बोले- कोंटा में छत्तीसगढ़ी बोलत हव, कहां ले हव जी...। उस महिला ने भी बताया कि गोठान में अब तक उसने 3000 किलो गोबर बेचा है, जिससे उसे 6000 रुपए मिले हैं।
राजीव गांधी न्याय योजना, भूमिहीन कृषि मजदूर योजना, गोठान योजना, खाद इन सब पर बात चल रही थी। कहीं से कोई शिकायत नहीं थी। बेहद हल्के फुल्के अंदाज में संवाद चल रहा था। यहां एक परिवार ऐसा बैठा हुआ था, जिनका घर चिंतलनार, एर्राबोर में नक्सलियों ने 2011 में जला दिया था।
तकरीबन 200 घर थे। आज यहां मुत्ता नुप्पो, राजू नुप्पो, भीमा, दर्मा ये सब मुआवजे के लिए आए थे। इन्हें दो-दो लाख रुपए का चेक मिलना था। चेहरे पर खुशी थी। इतने साल पहले आशियाना राख हुआ था, ज़िंदगी खाक हुई थी...उस वक्त को तो नहीं लौटा पाएंगे लेकिन बच्चों की खुशी खरीदने के लिए थोड़ी सी रकम काम आएगी। उन आंखों की चमक बयां करना मुश्किल है।
आत्मानंद स्कूल का टॉपर राहुल बोला- थैंक यू
इस भीड़ के एक कोने में राहुल चांडक भी था। सुकमा के आत्मानंद स्कूल का स्टुडेंट, जिसने दसवीं में टॉप किया। 96 प्रतिशत नंबर लाए। पिता की दुकान है और उसने आत्मानंद जैसे स्कूल के कांसेप्ट के लिए मुख्यमंत्री भूपेश बघेल से थैंक्स कहा और एक छोटी सी मांग भी की कि इस इलाके में ऐसे स्कूल और खोले जाएं और अंग्रेजी की शिक्षा को और बढ़ावा दिया जाए, क्योंकि यहां के बच्चे होनहार है।
पहले रोड उड़ाते थे, अब बचाते हैं
ये अनोखी बात थी कि सीएम की सुरक्षा में डीआरजी जवान शामिल थे। इनमें कई ऐसे हैं जो पहले नक्सली थी। उन्होंने सरेंडर किया और बाद में फोर्स में भर्ती हो गए। इन्हीं में से एक मड़क्कम मुदराज (36) ने सीएम से हाथ मिलाने की इच्छा जताई और मुख्यमंत्री ने गले लगा लिया। तस्वीरें खिंचवाईं। मडक्क्म ने बताया कि वो पहले जनमिलिशिया का सदस्य था।
सरेंडर के बाद आरक्षक, हवलदार, एएसआई और अब किस्टाराम थाने में डीआरजी का थानेदार है। पहले रोड उड़ाते थे, अब बचाते हैं। पहले हर थाने में मेरे खिलाफ एफआईआर रहती थी नक्सल मामलों में, अब मैं दर्ज करता हूं। मेरी टीम ने 27 नक्सलियों को मारा। शादी करनी थी। पत्नी सिमनी मरईगुड़ा में रहती थी। मान नहीं रही थी। उसे भी नक्सल ट्रेनिंग देने की कोशिश की, लेकिन उसने मुझे बदल दिया।
घोषणाएं: कई गांवों में खुलेंगे स्कूल
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