छत्तीसगढ़ में नक्सलियों की उपराजधानी के नाम से चर्चित सैकड़ों एकड़ में फैला जगरगुंडा गांव अब केवल 30 से 40 एकड़ में ही सिमट कर रह गया है। राष्ट्रपिता महात्मा गांधी को मानने वाले इस गांधीवादी गांव को नक्सल कमांडर जगन्ना, पापाराव और फिर हिड़मा ने अपने कब्जे में लिया था। गांधीजी की मूर्ति तोड़ी, बैंक लूटा, सड़कें काटी, स्कूल भवन तोड़ा, बाजार बंद करवाया और वोट देने पर ग्रामीणों की उंगलियां काटने की धमकी दी थी।
नक्सलियों की क्रूरता इतनी हावी थी कि हालात ऐसे हुए कि ग्रामीण दाने-दाने को मोहताज हो गए थे। नक्सलियों का खौफ ऐसा था कि सरकार को हेलीकॉप्टर से राशन पहुंचाना पड़ता था। लेकिन, अब बदलते वक्त के साथ गांव की तस्वीर और ग्रामीणों की तकदीर भी बदलती जा रही है। इस गांव को अब फोर्स ने अपने सुरक्षा घेरे में रखा है। गनतंत्र पर गणतंत्र की जीत हुई है। इसी गांव से दैनिक भास्कर ने ग्राउंड रिपोर्ट की है।
पढ़िए पूरी खबर.....
संभागीय मुख्यालय जगदलपुर से करीब 200 किमी दूर दक्षिण बस्तर के दंतेवाड़ा, बीजापुर और सुकमा इन तीन जिलों की सरहद पर सुकमा जिले का जगरगुंडा गांव बसा हुआ है। जब हम इस गांव में पहुंचे तो हमें यहां सबसे पहले गांव का एक 42 साल का ग्रामीण मिला। वो इसी गांव का मूल निवासी था। जिसने हमें गांव के बारे में जानकारी दी। ग्रामीण ने बताया कि, सालों पहले जगरगुंडा गांव में शांति थी। लोग अपने हिसाब से जिंदगी जीते थे। गांव वाले संविधान को मानते थे, महात्मा गांधी को पूजते थे। गांव में उनकी मूर्ति भी स्थापित की गई थी।
लेकिन, साल 1980-85 के बीच माओवादी कमांडर जगन्ना सबसे पहले इस गांव में आया। उसने बंदूक के दम पर ग्रामीणों पर राज किया। फिर जगन्ना जब यहां से दूसरे एरिया में गया तो नक्सली कमांडर पापाराव ने उसकी जिम्मेदारी संभाली। कुछ समय बाद पास के ही पूवर्ती गांव के रहने वाले नक्सली कमांडर हिड़मा को इस गांव में दबदबा बनाए रखने जिम्मेदारी दी गई थी। नक्सलियों ने अपना वर्चस्व बनाए रखने सबसे पहले महात्मा गांधी की मूर्ति को तोड़ा। कुल्हाड़ी से सिर को धड़ से अलग कर दिया था।
फिर गांव में स्थित बैंक को लूटकर जला दिया था। गांव तक पहुंचने वाली सारी सड़कों को सैकड़ों जगह से काट दिया गया। गांव तक पहुंचने वाले हर एक मार्ग में माओवादियों ने IED बिछा रखी थी। इस पूरे गांव को अपने कब्जे में ले लिया। एक समय यह इलाका इमली समेत अन्य वनोपज संग्रहण के लिए पूरे बस्तर का सबसे बड़ा जोन हुआ करता था। यहां दूर दराज से व्यापारी इमली खरीदने पहुंचते थे। ग्रामीणों ने बताया कि, माओवादी कमांडर हिड़मा ने व्यापारियों को बाजार न आने की धमकी दी थी और बाजार को बंद करवा दिया था।
धीरे-धीरे यह इलाका माओवादियों की उपराजधानी के नाम से इलाके में चर्चित होने लगा। जिस जगह गांधी जी की मूर्ति स्थापित की गई थी उसे गांधी चौक के नाम से जाना जाता था। ग्रामीण ने हमें बस्ती के बीच की वो जगह भी दिखाई जहां नक्सली कमांडर हिड़मा समेत अन्य लीडर्स जनअदालत लेते थे। गलतियां करने वालों को जनअदालत में सजा देते थे। गांव ने नक्सलियों का गन-तंत्र हावी हो गया था। यहां नक्सलियों की जनताना सरकार चलने लगी थी।
जब छत्तीसगढ़ राज्य का गठन हुआ और सलवा जुड़ूम का दौर शुरू हुआ तो हालात और अधिक बिगड़ने लगे। माओवादियों ने क्रूर रवैया अपनाना शुरू किया। ग्रामीणों की पिटाई, उन्हें घर से बेघर करना यह आम बात हो गई थी। जनअदालत लगाकर सीधे मौत की सजा दी जा रही थी। लेकिन, धीरे-धीरे किसी तरह फोर्स इलाके ने में अपनी दस्तक देन शुरू की। और अब हालात कुछ और हैं।
अब ऐसा है गांव
वैसे तो यह गांव सैकड़ों एकड़ में फैला हुआ है। लेकिन वर्तमान में सिर्फ 30 से 40 एकड़ के दायरे में पूरी बस्ती बसी हुई है। जितने जगह में ग्रामीण निवास करते हैं उस इलाके को फोर्स ने अपने कब्जे में कर रखा है। इस कैंपस के अंदर करीब 200 परिवार और 2000 से ज्यादा लोग आज भी निवास करते हैं। फोर्स ने लोहे की बाड़ी बनाकर गांव की घेराबंदी की है। गांव तक पहुंचने सड़कें बनाई गई हैं गांव के अंदर आने के लिए कुल 3 गेट है। इनमें से एक गेट बीजापुर, दूसरा गेट सुकमा और तीसरा दंतेवाड़ा की तरफ खुलता है। तीनों गेट पर CRPF का चेक पोस्ट है।
इसी कैंपस के अंदर जगरगुंडा का थाना भी है। हालांकि, सुरक्षा को देखते हुए यहां कितने जवान तैनात किए गए हैं इसे सार्वजनिक नहीं किया जा सकता है। CG राज्य के गठन के बाद अब पहला ऐसा मौका है कि, गांव में बाजार भरने लगा है। आस-पास के करीब 56 गांव के ग्रामीण बाजार करने पहुंचते हैं। साथ ही सड़क बनने और फोर्स की सुरक्षा होने की वजह से अब एक बार फिर से बाहर के व्यापारी भी दुकान लगाने आ रहे हैं।
फिर से स्थापित की गई गांधी जी की मूर्ति
जब इस इलाके को फोर्स ने अपने कब्जे में लिया तो फिर से गांधी जी की मूर्ति स्थापित की गई। स्कूल, छात्रावास भवन बनने शुरू हुए। कुछ बनकर तैयार भी हो गए। ग्रामीणों ने बताया कि गांव के बीच स्थित गांधी चौक से दंतेवाड़ा, बीजापुर और सुकमा तीनों की दूरी करीब 80 से 81 किमी ही है। स्वतंत्रता दिवस हो या फिर गणतंत्र दिवस अब एक बार फिर से इस गांव में राष्ट्रध्वज तिरंगा फहराया जाता है।
कैंपस के बाहर अब भी हिड़मा का है राज
ग्रामीणों की सुरक्षा के लिए जवानों ने गांव को तार की बाड़ी से घेर रखा है। इस सुरक्षा घेरे के अंदर रह रहे ग्रामीण खुद को सुरक्षित मानते हैं। ग्रामीणों का कहना है कि, पहले इस गांव में चुनाव तो होता था, लेकिन नक्सलियों के उंगली काटने वाले फरमान की वजह से कोई ग्रामीण वोट डालने नहीं जाता था। हालांकि, अब भी चुनाव होता है, गांव वाले वोट भी देते हैं। लेकिन, उंगली पर अमिट स्याही नहीं लगवाते हैं। इसकी बड़ी वजह है कि कैंपस के बाहर का इलाका अब भी माओवादी कमांडर हिड़मा के कब्जे में है। वहां नक्सलियों की जनताना सरकार चलती है। आए दिन हिड़मा इलाके में वारदात को अंजाम देता रहता है।
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