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लोगों की आमदनी घटी, सरकार की बढ़ी:पहली बार इनकम और कॉरपोरेट टैक्स से ज्यादा कमाई सरकार ने पेट्रोल और डीजल से की

नई दिल्ली2 वर्ष पहलेलेखक: स्कन्द विवेक धर
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कोरोना संक्रमण और लॉकडाउन की वजह से जब देश में ज्यादातर लोगों की आमदनी में घट रही थी, तब राहत देने की बजाय सरकार ने महंगे पेट्रोल-डीजल का बोझ डाल दिया। इसका नतीजा ये हुआ कि पहली बार सरकार की आयकर से ज्यादा कमाई पेट्रोल-डीजल पर टैक्स से हुई है।

आंकड़ों के मुताबिक आयकर के रूप में लोगों ने 4.69 लाख करोड़ रुपए भरे, जबकि पेट्रोल-डीजल पर एक्साइज ड्यूटी और वैट के रूप में 5.25 लाख करोड़ रुपए से ज्यादा चुकाने पड़े। वहीं, कंपनियों ने इस दौरान सबसे कम 4.57 लाख करोड़ रुपए कॉरपोरेट टैक्स भरा। पेट्रोल-डीजल पर एक्साइज और वैट के अलावा आधा दर्जन से ज्यादा छोटे टैक्स, शुल्क व सेस लगते हैं, जो इससे अलग हैं।

वित्त वर्ष 2020-21 में पेट्रोलियम उत्पादों की बिक्री से सरकार को 5.25 लाख करोड़ रुपए टैक्स मिला। इसमें केंद्र सरकार की ओर से वसूली गई एक्साइज ड्यूटी और राज्याें का वैट शामिल है। वैट का आंकड़ा सिर्फ दिसंबर तक का है। यानी मार्च तिमाही में राज्यों को हुई आमदनी इसमें शामिल नहीं है।

वहीं, इसी दौरान सरकारी खजाने में आयकर के रूप में 4.69 लाख करोड़ रुपए आए। जबकि कंपनियों ने कॉरपोरेट टैक्स के रूप में 4.57 लाख करोड़ रुपए ही जमा किए। वित्त वर्ष 2019-20 में पेट्रोल-डीजल पर एक्साइज, वैट के रूप में 4.23 लाख करोड़ रुपए वसूले गए।

आयकर 4.80 लाख करोड़ रुपए आया। जबकि कंपनियों ने सर्वाधिक 5.56 लाख करोड़ रुपए कॉरपोरेट टैक्स के रूप में भरा। खास बात यह है कि 2020-21 में पेट्रोल-डीजल की बिक्री इससे पहले के वर्ष से 10.50 फीसदी कम होने के बावजूद सरकार की टैक्स से कमाई इतनी ज्यादा हुई है।

सात साल में ईंधन पर टैक्स से कमाई दो गुना से ज्यादा बढ़ी

महंगे पेट्रोल-डीजल का असर गरीबों पर ज्यादा

अर्थशास्त्री प्रो. अरुण कुमार कहते हैं, पेट्रोल-डीजल पर लगने वाला टैक्स अप्रत्यक्ष कर होता है। अर्थशास्त्र में इन्हें रिगरेसिव टैक्स माना गया है। आमदनी के अनुपात में देखें तो गरीब के लिए यह टैक्स प्रतिशत अधिक होता है।

लोगों की डिस्पोजेबल इनकम घटी
प्रो. कुमार ने बताया कि महंगे ईंधन से महंगाई बढ़ती है। साथ ही कमाई का एक हिस्सा इस पर चले जाने से लोगों की डिस्पोजेबल इनकम घट रही है। निजी मांग कम हो रही है। इसकी भरपाई सरकारी मांग से पूरी नहीं की जा सकती। सरकार को प्रत्यक्ष करों से संग्रह बढ़ाना चाहिए और पेट्रोल-डीजल पर टैक्स में कमी करनी चाहिए।